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One nation, one election : मोदी सरकार का बड़ा फैसला, ‘एक देश, एक चुनाव’ को कैबिनेट की मंजूरी

‘One nation, one election’ gets Cabinet nod : मोदी सरकार ने ऐतिहासिक कदम उठाते हुए ‘एक देश, एक चुनाव’ के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. बुधवार को कैबिनेट ने इस प्रस्ताव पर मुहर लगाई.

‘One nation, one election’ gets Cabinet nod : मोदी सरकार ने ऐतिहासिक कदम उठाते हुए ‘एक देश, एक चुनाव’ के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. बुधवार को कैबिनेट ने इस प्रस्ताव पर मुहर लगाई.

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Viplav Rahi
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‘One nation, one election’ : मोदी कैबिनेट ने एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए ‘एक देश, एक चुनाव’ के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. (File Photo : PTI)

‘One nation, one election’ gets Cabinet nod :  मोदी सरकार ने एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए ‘एक देश, एक चुनाव’ प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. यह निर्णय केंद्रीय कैबिनेट ने बुधवार को लिया, जिससे सरकार देश में एक साथ चुनाव कराए जाने की दिशा में एक कदम और आगे बढ़ गई है. सरकार ने यह कदम पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित समिति की सिफारिशों को मंजूर करते हुए उठाया है. मोदी कैबिनेट के इस फैसले की जानकारी केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने मीडिया को दी है. वैष्णव ने इस फैसले की जानकारी देते हुए कहा कि मंजूर किए गए प्रस्ताव के तहत पहले चरण में लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव एक साथ होंगे, जबकि दूसरे चरण में स्थानीय निकाय चुनाव होंगे, जो पहले चरण के 100 दिनों के भीतर कराए जाएंगे. कोविंद समिति ने लोकसभा चुनाव 2024 की घोषणा से कुछ समय पहले मार्च में सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी. 

मोदी सरकार का घोषित एजेंडा

- केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में घोषणा की थी कि मोदी सरकार अपने तीसरे कार्यकाल में एक देश, एक चुनाव की नीति को लागू करके रहेगी और गठबंधन राजनीति के कारण इसमें कोई अड़चन नहीं आने दी जाएगी.

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- 2014 से ही यह एनडीए सरकार का एक प्रमुख वादा रहा है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी बार-बार इस पर जोर देते रहे हैं.

- मोदी सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल में ही पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में इस प्रस्ताव पर विचार करने के लिए एक आयोग का गठन किया था, जिसने इस प्रस्ताव को मंजूर करने की सिफारिश की थी.

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सरकार का क्या है दावा ?

- एक देश, एक चुनाव से बार-बार चुनावी खर्चों में कमी आएगी.

- प्रशासनिक स्थिरता सुनिश्चित होगी.

- जनता और सरकार का ध्यान विकास कार्यों पर अधिक रहेगा.

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कोविंद कमेटी ने सिफारिश 

कोविंद कमेटी ने सिफारिश की थी कि केंद्र सरकार “एक बार लागू अस्थायी उपाय” के तहत लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद एक “तय तारीख” (appointed date) की पहचान करे. उस तारीख के बाद चुनी गईं सभी राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल संसद के साथ ही समाप्त माना जाएगा. इससे केंद्र और राज्य सरकारों के चुनाव एक साथ कराए जा सकेंगे. कोविंद कमेटी ने यह सुझाव भी दिया है कि अविश्वास प्रस्ताव पास होने, किसी को बहुमत नहीं मिलने या किसी अन्य घटना के कारण संसद या राज्य विधानसभा के समय से पहले भंग होने की स्थिति में नए चुनाव केवल संसद या विधानसभा की बाकी बची हुई अवधि या “अधूरे कार्यकाल” के लिए कराए जाने चाहिए.

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विपक्ष कर रहा है प्रस्ताव का विरोध 

कांग्रेस समेत देश की कई प्रमुख विपक्षी पार्टियां इस प्रस्ताव का विरोध कर रही हैं, लेकिन मोदी सरकार का रुख शुरू से ही साफ है कि वो इस प्रस्ताव को हर हाल में लागू करके रहेगी. लोकसभा में इस बार बीजेपी को अपने दम पर बहुमत नहीं मिलने के बावजूद मौजूदा एनडीए सरकार ने देश में एक साथ चुनाव लागू करने के अपने इरादे को दोहराना जारी रखा है, जिसके लिए संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता होगी. मंगलवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि “एक राष्ट्र, एक चुनाव” की योजना भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार के मौजूदा कार्यकाल में ही लागू की जाएगी. उन्होंने लोकसभा चुनाव के बाद अपने पहले 100 दिनों में केंद्र सरकार की उपलब्धियों पर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए यह बात कही थी.

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एक देश, एक चुनाव मतलब क्या है?

‘एक देश, एक चुनाव’ का मतलब यह है कि देश में लोकसभा के चुनाव के साथ ही साथ सभी राज्यों की विधानसभाओं और स्थानीय निकायों (नगरपालिका और पंचायत चुनाव) के चुनाव भी करा लिए जाएं. मोदी सरकार का दावा है कि इस प्रस्ताव के लागू होने पर पूरे देश में एक ही समय पर सभी चुनाव कराए जाएंगे, जिससे चुनावी प्रक्रिया में सरलता और समय की बचत होगी. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि जिन विधानसभाओं के कार्यकाल पूरे नहीं हुए, क्या उन्हें जबरन वक्त से पहले भंग किया जाएगा? या जिनके कार्यकाल पूरे हो गए हैं, क्या उन्हें आगे बढ़ाया जाएगा? या फिर बचे हुए समय के दौरान वहां राष्ट्रपति शासन लागू रहेगा? ऐसे कई सवाल हैं, जिनके जवाब मिलने अभी बाकी हैं. ऐसे में सरकार के इस कदम से इस मुद्दे पर राजनीतिक तकरार बढ़ने की पूरी आशंका रहेगी.

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