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SEBI: भारत की पहली महिला सेबी प्रमुख माधबी पुरी बुच इसी शुक्रवार 28 फरवरी को अपने पद से रिटायर हुईं हैं. Photograph: (FE File) (Express Archive Photo)
मनी लॉन्ड्रिंग प्रिवेंशन एक्ट के तहत आने वाली स्पेशल कोर्ट ने मुंबई एंटी करप्शन ब्यूरो को एक शिकायत के आधार पर सेबी की पूर्व चीफ माधबी पुरी बुच और पांच अन्य के खिलाफ शेयर बाजार में धोखाधड़ी और अनियमितता करने से जुड़े मामले में एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया है. कोर्ट के आदेश के बाद सेबी और बीएसई ने अपना पक्ष रखा है.
सेबी ने इस मामले में जारी बयान में कहा है कि शिकायतकर्ता ने जिन अधिकारियों पर आरोप लगाया है वे उस समय अपने पद पर नहीं थे. बयान में कहा गया है कि कोर्ट ने बिना सेबी को नोटिस जारी किए या तथ्य रखने का मौका दिए ही इस आवेदन को मंजूरी दे दी. सेबी ने शिकायतकर्ता को एक जाना-पहचाना फिजूल और बार-बार मुकदमेबाजी करने वाला व्यक्ति बताया है. रविवार को जारी प्रेस रिलीज में कहा गया है कि सेबी की तरफ से स्पेशल कोर्ट के आदेश को चुनौती देने के लिए जल्द ही उचित कानूनी कदम उठाए जाएंगे.
इस मामले में बीएसई ने भी बयान जारी करके अपना पक्ष रखा है. बीएसई ने कहा है कि इस मामले में जिस अधिकारी पर आरोप लगाए गए हैं, वे उस समय अपने पद पर नहीं थे और न ही इस कंपनी से किसी तरह जुड़े थे. बाम्बे स्टॉक एक्सचेंज ने कहा - आवेदन फिजूल और जानबूझकर परेशान करने के लिए दिया गया लगता है. कोर्ट ने बीएसई को नोटिस जारी किए बिना या तथ्य पेश करने का मौका दिए बगैर ही इस आवेदन को स्वीकार कर लिया. बीएसई की तरफ से इस मामले में जरूरी कानूनी कदम उठाए जा रहे हैं.
कोर्ट के आदेश को चुनौती देने के लिए कानूनी कदम उठाएगी सेबी
रविवार को सेबी ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की, जिसमें बताया गया कि सपन श्रीवास्तव की शिकायत माधबी पुरी बुच, तीन मौजूदा डब्ल्यूटीएम यानी होल टाइम मेंबर्स (WTMs) और दो बीएसई अधिकारियों के खिलाफ दायर की गई थी. कैल्स रिफाइनरीज (Cals Refineries Ltd) को साल 1994 में लिस्टिंग की अनुमति दी गई थी और अगस्त 2017 में इसे ट्रेडिंग से निलंबित कर दिया गया था और आज तक यह निलंबित है.
सेबी के मुताबिक बुच या तीनों डब्ल्यूटीएम संबंधित समय पर अपने-अपने पदों पर नहीं थे और विशेष अदालत ने नियामक संस्था को तथ्य रिकॉर्ड पर रखने का अवसर दिए बिना ही आदेश पारित कर दिया. इसमें कहा गया है, "हालांकि ये अधिकारी संबंधित समय पर अपने-अपने पदों पर नहीं थे, फिर भी अदालत ने बिना कोई नोटिस जारी किए या सेबी को तथ्यों को रिकॉर्ड पर रखने का कोई अवसर दिए बिना आवेदन को अनुमति दे दी. शिकायतकर्ता सपन श्रीवास्तव को एक आदतन मुकदमा करने वाले के रूप में जाना जाता है, जिनके कई पिछले आवेदन अदालत में खारिज हो चुके हैं और उनमें से कुछ मामलों में उन पर जुर्माना भी लगाया जा चुका है. नियामक प्राधिकरण ने कहा कि वह आदेश को चुनौती देने के लिए “उचित कानूनी कदम” उठाएगा. बयान में कहा गया है, “सेबी सभी मामलों में उचित विनियामक अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है.
BSE ने अपने बयान में क्या कहा?
कोर्ट के आदेश के बाद बीएसई की ओर से बयान सामने आया है. बीएसई ने अपने बयान में मामले का जिक्र करते हुए कहा - मुंबई की एसीबी कोर्ट ने सेबी के कुछ अधिकारियों, बीएसई के पूर्व चेयरमैन और वर्तमान एमडी और सीईओ के खिलाफ दायर एक आवेदन को मंजूरी दे दी है. इस आवेदन में 1994 में कैल्स रिफाइनरीज कंपनी की बीएसई में लिस्टिंग के दौरान हुई कथित अनियमितताओं की जांच के लिए एफआईआर दर्ज करने की मांग की गई थी. बीएसई ने कहा - मामले में नामित अधिकारी उस समय अपने पद पर नहीं थे और न ही इस कंपनी से किसी तरह जुड़े थे. यह आवेदन फिजूल और परेशान करने वाले स्वभाव का है. कोर्ट ने बीएसई को नोटिस जारी किए बिना या तथ्य पेश करने का मौका दिए बगैर ही इस आवेदन को स्वीकार कर लिया. बीएसई इस मामले में जरूरी कानूनी कदम उठा रही है. एक जिम्मेदार बाजार संस्थान के तौर पर, बीएसई नियामक अनुपालन और पारदर्शिता बनाए रखने के प्रति प्रतिबद्ध है.
क्या है पूरा मामला?
इससे पहले शनिवार को मुंबई की स्पेशल कोर्ट ने रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री को देखने के बाद कहा कि आरोपों से संज्ञेय अपराध का पता चलता है, जिसकी जांच जरूरी है. नियामक चूक और मिलीभगत के प्रथम दृष्टया सबूत हैं, जिसकी निष्पक्ष और निष्पक्ष जांच की जरूरत है. कानून प्रवर्तन और सेबी की निष्क्रियता के कारण धारा 156(3) सीआरपीसी के तहत न्यायिक हस्तक्षेप की जरूरत है."
शिकायत में एसीबी को एफआईआर दर्ज करने और “प्रस्तावित आरोपियों” द्वारा किए गए कथित अपराधों की जांच करने का निर्देश देने की मांग की गई थी, जिसमें बुच, तीन सेबी होल टाइम मेंबर्स और बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) के अध्यक्ष प्रमोद अग्रवाल और सीईओ सुंदररामन राममूर्ति शामिल हैं. स्पेशल कोर्ट ने एसीबी को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, सेबी अधिनियम, भारतीय दंड संहिता और अन्य लागू कानूनों के प्रासंगिक प्रावधानों के तहत एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया.
स्पेशल जज एसई बांगर ने शिकायतकर्ता सपन श्रीवास्तव (Sapan Shrivastava) की याचिका पर यह आदेश जारी किया था. श्रीवास्तव ने खुद को पत्रकार बताया है. याचिका में आरोप लगाया गया था कि नियामक अधिकारियों की कथित मिलीभगत से एक कंपनी को स्टॉक एक्सचेंज में फर्जी तरीके से लिस्ट किया गया. श्रीवास्तव ने दावा किया कि उन्होंने और उनके परिवार ने 13 दिसंबर 1994 को कैल्स रिफाइनरीज लिमिटेड (Cals Refineries Ltd) के शेयरों में निवेश किया था, जो बीएसई में लिस्टेड थी, और उन्हें भारी नुकसान हुआ था. उन्होंने आरोप लगाया कि सेबी और बीएसई ने कंपनी के अपराधों की अनदेखी की, इसे कानून के खिलाफ लिस्ट किया और निवेशकों के हितों की रक्षा करने में विफल रहे.
श्रीवास्तव ने आरोप लगाया कि सेबी अधिकारियों ने कंपनी की लिस्टिंग की अनुमति देकर बाजार में हेरफेर और कॉर्पोरेट धोखाधड़ी को बढ़ावा दिया. उन्होंने कहा कि पुलिस और नियामक अधिकारियों ने उनकी शिकायत पर कार्रवाई नहीं की, जिसके कारण उन्हें अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा. अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के पिछले फैसलों का हवाला दिया और कहा, “आरोपों की गंभीरता, लागू कानूनों और स्थापित कानूनी मिसालों पर विचार करते हुए, यह अदालत सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत जांच का निर्देश देना उचित समझती है. आदेश के अनुसार, जांच की निगरानी स्पेशल कोर्ट द्वारा की जानी चाहिए और 30 दिनों के भीतर स्थिति रिपोर्ट अदालत को सौंपी जानी चाहिए.