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Shiv Sena Controversy: उद्धव ठाकरे को बड़ा झटका, स्पीकर ने शिंदे गुट को बताया असली शिवसेना, अयोग्यता की सभी अर्जियां खारिज

Shiv Sena Controversy: महाराष्ट्र विधानसभा के स्पीकर राहुल नार्वेकर ने शिवसेना के 2018 के संविधान को मानने से इनकार करते हुए कहा, उद्धव ठाकरे को एकनाथ शिंदे को शिवसेना से निकालने का अधिकार नहीं था.

Shiv Sena Controversy: महाराष्ट्र विधानसभा के स्पीकर राहुल नार्वेकर ने शिवसेना के 2018 के संविधान को मानने से इनकार करते हुए कहा, उद्धव ठाकरे को एकनाथ शिंदे को शिवसेना से निकालने का अधिकार नहीं था.

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Viplav Rahi
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Shiv Sena vs Shiv Sena: महाराष्ट्र के स्पीकर राहुल नार्वेकर ने एकनाथ शिंदे गुट को असली शिवसेना बताकर बाला साहेब ठाकरे के बेटे उद्धव ठाकरे को एक और बड़ा झटका दिया है. (Photo : Indian Express)

Maharashtra Speaker rules in favour of CM Shinde, declares his faction as real Shiv Sena: महाराष्ट्र में शिवसेना बनाम शिवसेना की लड़ाई में पार्टी के संस्थापक बाला साहेब ठाकरे के बेटे उद्धव ठाकरे को एक और बड़ा झटका लगा है. राज्य विधानसभा के स्पीकर राहुल नार्वेकर ने शिवसेना में बगावत के बाद विधायकों की अयोग्यता के मसले पर अपना फैसला लंबे इंतजार के बाद बुधवार को सुनाया. इस फैसले में उन्होंने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंद के गुट को ही असली शिवसेना घोषित किया है. इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी कहा कि उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) ने शिवसेना प्रमुख के तौर पर एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) को पार्टी से निकालने का जो आदेश दिया था, वो मान्य नहीं है. उद्धव ठाकरे गुट ने स्पीकर के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का एलान किया है.

कोई भी विधायक अयोग्य नहीं ठहराया गया

नार्वेकर ने कहा कि 21 जून 2022 को शिवसेना में दो गुट बन जाने के बाद सुनील प्रभु शिवसेना के चीफ व्हिप नहीं रह गए थे. इसके साथ ही स्पीकर ने शिंदे गुट के विधायकों को अयोग्य ठहराने की सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया. दिलचस्प बात यह है कि नार्वेकर ने उन सभी अर्जियों को भी खारिज कर दिया, जो शिंदे गुट की तरफ से उद्धव ठाकरे गुट के विधायकों को अयोग्य ठहराने के लिए दी गई थीं. यानी कुल मिलाकर स्पीकर ने अपने फैसले में किसी भी विधायक को अयोग्य नहीं ठहराया है. 

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2018 का शिवसेना संविधान मान्य नहीं : नार्वेकर

नार्वेकर ने अपने फैसले में कहा कि शिवसेना के 2018 के संविधान पर विचार करने की उद्धव ठाकरे गुट की दलील को माना नहीं जा सकता. उन्होंने कहा कि शिवसेना (Shiv Sena) के 2018 का संविधान संविधान चुनाव आयोग के पास जमा नहीं किया गया था. लिहाजा उसे मान्य नहीं किया जा सकता. उन्होंने कहा कि शिवसेना की तरफ से पार्टी का जो संविधान 1999 में चुनाव आयोग के पास जमा कराया गया था, उन्होंने उसे ही तमाम मुद्दों का फैसला करने के लिए वैध माना है. नार्वेकर ने बताया कि उन्हें शिवसेना का 1999 में जमा किया गया संविधान चुनाव आयोग ने मुहैया कराया है और वही पार्टी का वास्तविक संविधान माना जाएगा. नार्वेकर ने कहा कि 1999 के संविधान के मुताबिक शिवसेना प्रमुख को किसी भी व्यक्ति को पार्टी से निकालने का अधिकार नहीं है. उन्होंने कहा कि इस संविधान में शिवसेना की राष्ट्रीय कार्यकारिणी को ही पार्टी का सर्वोच्च निकाय (Supreme Body) माना गया है.नार्वेकर ने कहा कि शिवसेना में नेतृत्व की संरचना के बारे में कोई भी फैसला उसके इसी संविधान के आधार पर किया जा सकता है.

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नार्वेकर ने कहा कि किसी राजनीतिक पार्टी में दो गुट बन जाएं, तो सबसे प्रमुख सवाल यह होता है कि बहुमत किसके पास है और दो गुट बनने के बाद विधानसभा में शिंदे गुट को शिवसेना के 55 में से 37 विधायकों का समर्थन हासिल था. महाराष्ट्र स्पीकर का यह फैसला आने से पहले चुनाव आयोग भी शिंदे गुट को असली शिवसेना बता चुका है.

स्पीकर के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे : उद्धव ठाकरे गुट

स्पीकर राहुल नार्वेकर के फैसले को उद्धव ठाकरे के ग्रुप ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का एलान किया है. शिवसेना UBT के नेता संजय राउत ने कहा कि महाराष्ट्र विधानसभा के स्पीकर ने जो फैसला सुनाया, वो दिल्ली से लिखकर आया था. उन्होंने सिर्फ उसे घोषित किया है. राउत ने कहा कि आज जो शिवसेना के 'मालिक' बने बैठे हैं, उनका पार्टी की स्थापना के समय जन्म भी नहीं हुआ था. राउत ने आरोप लगाया कि यह सब शिवसेना को खत्म करने की बीजेपी की साजिश का हिस्सा है. लेकिन इससे शिवसेना खत्म होने वाली नहीं है. उन्होंने कहा कि वे स्पीकर के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे. 

इस फैसले से लोकतंत्र मजबूत होगा : केसरकर

महाराष्ट्र की एकनाथ शिंदे सरकार के मंत्री दीपक केसरकर ने स्पीकर नार्वेकर के फैसले का स्वागत करते हुए कहा है कि इससे लोकतंत्र और मजबूत होगा. उन्होंने कहा कि स्पीकर के फैसले ने बता दिया है कि पार्टी के भीतर अंदरूनी तौर पर लोकतंत्र होना चाहिए. कोई भी व्यक्ति पार्टी के दूसरे लोगों से विचार-विमर्श किए बिना, अकेले ही तमाम अधिकारों का इस्तेमाल नहीं कर सकता.

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