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कोर्ट ने SIT को तुरंत अपनी जांच शुरू करने और 12 सितंबर तक अपनी रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया गया है. (Image: IE File)
सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात के जामनगर में रिलायंस फाउंडेशन के वाइल्डलाइफ रेस्क्यू और रिहैबिलिटेशन सेंटर ‘वनतारा’ की जांच के लिए स्पेशल इनवेस्टिगेशन टीम (SIT) बनाने का आदेश दिया. इस SIT का नेतृत्व सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस जे चेलमेश्वर (Justice J Chelameswar) करेंगे. जस्टिस जे चेलमेश्वर के अध्यक्षता वाली एसआईटी में उत्तराखंड और तेलंगाना हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस राघवेंद्र चौहान, मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर IPS हेमंत नगराले और एडिशनल कमिश्नर कस्टम्स IRS अनीश गुप्ता शामिल हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि SIT वनतारा सेंटर में जानवरों की खरीद-फरोख्त, खासकर हाथियों की, और वाइल्डलाइफ (प्रोटेक्शन) एक्ट, 1972 तथा जूलॉज के नियमों के पालन की जांच करे. यह आदेश दो पब्लिक इंटरेस्ट पिटीशनों (PILs) के आधार पर आया है. एक वकील सी आर जया सुकीन और दूसरी याचिकाकर्ता देव शर्मा ने जुलाई में कोल्हापुर के मंदिर से हाथी ‘महादेवी’ को वनतारा में ले जाने के विवाद के बाद दायर की थी.
SIT में पूर्व उत्तराखंड और तेलंगाना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस राघवेंद्र चौहान, पूर्व मुंबई पुलिस कमिश्नर हेमंत नागराले और एडिशनल कमिश्नर कस्टम्स अनिश गुप्ता भी शामिल होंगे. कोर्ट ने SIT से कहा कि वे फौरन अपनी जांच शुरू करें और 12 सितंबर तक रिपोर्ट जमा करें.
जांच में ये चीजें शामिल होंगी
अंतरराष्ट्रीय नियम और कानूनों का पालन: CITES और जीवित जानवरों के आयात-निर्यात संबंधी नियम.
पशु देखभाल और कल्याण: पशु पालन के मानक, चिकित्सकीय देखभाल, जानवरों की मृत्यु और कारण.
अन्य शिकायतें: सेंटर का उद्योग क्षेत्र के पास होना, निजी या शोकेस संग्रह, प्रजनन और संरक्षण कार्यक्रम, जल और कार्बन क्रेडिट का दुरुपयोग, वन्यजीव तस्करी और वित्तीय गड़बड़ियां.
कोर्ट ने कहा कि SIT की जांच केवल सत्य और तथ्य जानने के लिए है, ताकि अदालत सही जानकारी के आधार पर निर्णय ले सके. कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि इस आदेश का मतलब यह नहीं कि वनतारा या कोई सरकारी संस्था गलत कर रही है.
क्या हैं बड़े आरोप?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिकाएं अखबार, सोशल मीडिया और NGO रिपोर्ट्स पर आधारित हैं और इनमें आरोप बहुत व्यापक हैं. जैसे कि जानवरों की अवैध खरीद, कैद में दुरुपयोग, वित्तीय गड़बड़ी और मनी लॉन्ड्रिंग. हालांकि, इन आरोपों के समर्थन में ठोस सबूत नहीं हैं.
कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि आम तौर पर ऐसे आरोपों वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया जाता, लेकिन इस मामले में स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच कराना न्याय की दृष्टि से उचित है, ताकि पता चल सके कि आरोप सही हैं या नहीं.
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