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Electoral Bonds: सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड को असंवैधानिक बताकर किया खारिज, कंपनी एक्ट में हुआ संशोधन भी रद्द

Supreme Court Scraps Electoral Bonds: सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने मोदी सरकार की लाई चुनावी बॉन्ड स्कीम को किया रद्द. SBI को 12 अप्रैल 2019 से अब तक जारी सभी चुनावी बॉन्ड का पूरा ब्योरा चुनाव आयोग को सौंपने का आदेश.

Supreme Court Scraps Electoral Bonds: सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने मोदी सरकार की लाई चुनावी बॉन्ड स्कीम को किया रद्द. SBI को 12 अप्रैल 2019 से अब तक जारी सभी चुनावी बॉन्ड का पूरा ब्योरा चुनाव आयोग को सौंपने का आदेश.

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Viplav Rahi
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Supreme Court scraps Electoral Bonds: सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने चुनावी बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया है. (File Photo : ANI)

Supreme Court calls Electoral Bonds Scheme Unconstitutional: सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने चुनावी बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया है. देश की सबसे बड़ी अदालत ने कहा कि राजनीतिक दलों की फंडिंग के स्रोत के बारे में जानना मतदाताओं का मौलिक अधिकार है. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कंपनी एक्ट की धारा 182 में किए गए उस संशोधन को भी रद्द कर दिया है, जिसके जरिए घाटे वाली कंपनियों को भी राजनीतिक चंदा देने की छूट दी गई थी. अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि चुनावी बॉन्ड में फंड देने वाले को गुमनाम रखने की व्यवस्था सूचना के अधिकार और संविधान की धारा 19 (1) (ए) के खिलाफ है. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड को गोपनीय बनाने के लिए इनकम टैक्स एक्ट के प्रावधानों और जन प्रतिनिधित्व कानून की धारा 29C में किए गए बदलावों को भी रद्द कर दिया है. चुनावी बॉन्ड योजना को मोदी सरकार ने पहली बार 2017 में शुरू किया था. इस योजना का एलान तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने बजट भाषण में किया था. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ ने यह आदेश सुनाते हुए कहा कि इस बारे में संविधान पीठ ने दो अलग-अलग लेकिन सर्वसम्मत फैसले दिए हैं. 

चुनावी बॉन्ड को बेनामी बनाना गलत : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि चुनावी बॉन्ड को बेनामी बनाना संविधान के तहत मिले सूचना के अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन हैं.सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करने वाले बैंक यानी स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को इन्हें बंद करने का निर्देश भी दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने स्टेट बैंक को निर्देश दिया है कि वो 12 अप्रैल 2019 से लेकर अब तक जारी किए सभी चुनावी बॉन्ड से फंडिंग प्राप्त करने वाले राजनीतिक दलों का पूरा विवरण 6 मार्च 2024 तक चुनाव आयोग को सौंप दे. लाइव लॉ के मुताबिक कोर्ट ने चुनाव आयोग को यह पूरा विवरण एसबीआई से प्राप्त होने के एक हफ्ते के भीतर यानी 13 मार्च 2024 तक सार्वजनिक करने का आदेश भी दिया है. आयोग को यह सारी जानकारी 13 मार्च तक अपनी वेबसाइट पर जारी करने को कहा गया है. पांच जजों की संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा है कि कानून में बदलाव करके राजनीतिक दलों को गुमनाम तरीके से असीमित फंडिंग की इजाजत देना मनमाना कदम था.

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सुप्रीम कोर्ट ने नहीं मानी सरकार की दलील

सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए काले धन से निपटने की सरकार की दलील न्यायसंगत नहीं है. लाइव लॉ के मुताबिक भारत के मुख्य न्यायाधीश ने अपने फैसले में कहा कि राजनीतिक दलों की फंडिंग दो वजहों से की जाती है - एक तो किसी राजनीतिक दल को समर्थन देने के लिए या फिर उसके बदले में कोई फायदा पाने के लिए. सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बी आर गवई, जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की संविधान पीठ ने पिछले साल 2 नवंबर को इस मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.

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कंपनी एक्ट में संशोधन को भी किया खारिज

लाइव लॉ के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने कॉरपोरेट पोलिटिकल फंडिंग को असीमित खुली छूट देने के लिए कंपनी एक्ट में किए गए संशोधन को भी असंवैधानिक करार दिया है. लाइव लॉ के अनुसार सीजेआई ने कहा कि ऐसा करने से फंडिंग के बदले फायदा उठाने की संभावना के बारे में जानने के नागरिकों के अधिकार का उल्लंघन होता है. उन्होंने कहा कि चुनावी बांड स्कीम को असंवैधानिक घोषित किए जाने के बाद कंपनी एक्ट के सेक्शन 182 में किया गया संशोधन बेअसर हो गया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राजनीतिक प्रक्रिया को प्रभावित करने की क्षमता किसी व्यक्ति के मुकाबले कंपनियों में कहीं ज्यादा होती है. कंपनियों द्वारा फंडिंग किया जाना शुद्ध रूप से व्यावसायिक लेनदेन होता है. ऐसे में कंपनियों और व्यक्तियों को बराबरी पर रखने के लिए कंपनी अधिनियम की धारा 182 में किया गया संशोधन साफ तौर पर मनमानी भरा है. चीफ जस्टिस ने कहा कि इस संशोधन से पहले, घाटे में चल रही कंपनियों को राजनीतिक चंदा देने की छूट नहीं थी. लेकिन संशोधन के जरिए घाटे वाली कंपनियों को भी राजनीतिक चंदे की छूट दे दी गई. ऐसा करते समय इस बात को नजरअंदाज किया गया कि घाटे वाली कंपनियां सिर्फ गलत फायदा उठाने के मकसद से राजनीतिक डोनेशन दे सकती हैं. सेक्शन 182 में किए गए संशोधन में मुनाफा कमाने वाली कंपनियों और घाटे में चल रही कंपनियों के बीच कोई फर्क नहीं किया जाना साफ तौर पर मनमानी भरा कदम है.

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चुनावी बॉन्ड से मिली बेनामी और असीमित फंडिंग की सुविधा 

चुनावी बॉन्ड को पारदर्शिता के खिलाफ बताने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि इलेक्टोरल बॉन्ड को बेनामी बनाने के बाद मतदाताओं को यह पता नहीं चलता कि किस व्यक्ति, कंपनी या संगठन ने किस पार्टी को और कितना पैसा दिया है. इससे पहले पार्टियों को चंदा देने वाले उन सभी लोगों, कंपनियों या संगठनों के विवरण का खुलासा करना पड़ता था जिन्होंने 20,000 रुपये से अधिक का डोनेशन दिया हो. लेकिन 2017 में लाए गए चुनावी बॉन्ड में व्यक्तियों और कंपनियों को गुमनाम रूप से और बिना किसी लिमिट के राजनीतिक दलों को फंड देने की छूट दे दी गई. हालांकि मोदी सरकार दलील देती रही है कि कैश डोनेशन की जगह चुनावी बॉन्ड के जरिए चंदा दिए जाने से राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ती है. लेकिन बॉन्ड के बेनामी होने के कारण सरकार के इस दावे पर गंभीर सवाल उठते रहे हैं. 

Supreme Court Electoral Bond