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Rat Hole Mining: क्या है रैट होल माइनिंग? सिलक्यारा रेस्क्यू ऑपरेशन को रैट माइनर्स ने कैसे दिया अंजाम

Uttarkashi Tunnel rescue: Rat hole Mining एक ऐसी पद्धति है जिसमें मजदूर (माइनर्स) बेहद संकरी सुंरगों (नैरो बिल) के भीतर जाकर खुदाई करते हैं.

Uttarkashi Tunnel rescue: Rat hole Mining एक ऐसी पद्धति है जिसमें मजदूर (माइनर्स) बेहद संकरी सुंरगों (नैरो बिल) के भीतर जाकर खुदाई करते हैं.

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Mithilesh Kumar
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Rat-Hole Mining in Uttarkashi Rescue

Rat hole Mining: आइए जानते हैं कि क्या है रैट माइनिंग सिस्टम? और यह पद्धति कैसे काम करती है?

Rat-Hole Mining Impacts: उत्तरकाशी में निर्माणाधीन सिलक्यारा सुरंग में फंसे 41 मजदूरों के लिए मंगलवार यानी आज का दिन अहम रहा. रेस्क्यू टीम को आज बड़ी सफलता मिली. टनल में करीब 17 दिन से फंसे मजदूरों को निकालने के लिए रैट माइनिंग सिस्टम बेहद कारगर साबित हुई. इस सिस्टम द्वारा टनल के भीतर हाथ से ड्रिलिंग की गई. रैट माइनर्स ने 57 मीटर तक इस ड्रिलिंग को अंजाम दिया. मजदूरों को टनल से बाहर निकालने के लिए अंतिम चरण में रैट माइनिंग सिस्टम का इस्तेमाल किया गया. आइए जानते हैं कि क्या है रैट माइनिंग सिस्टम? और यह पद्धति कैसे काम करती है?

रैट होल माइनिंग क्या है?

रैट-होल माइनिंग एक ऐसी पद्धति है जिसमें मजदूर (माइनर्स) कोयला निकालने के लिए बेहद संकरी सुंरगों (नैरो बिल) में जाते हैं. फिलहाल यहां मलबे को सकंरी सुरंगों से बाहर निकालने के लिए रैट माइनर्स ने काम किया. रैट-होल माइनिंग गैर-कानूनी और विवादित है.

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पूर्वोत्तर के राज्य मेघालय में यह प्रथा थी. माइनर्स गड्ढे खोदकर चार फीट चौड़ाई वाले संकरे गड्ढों में उतरते थे, जहां सिर्फ एक व्यक्ति के आने जाने के लिए जगह होती है. वे बांस की सीढ़ियों और रस्सियों का इस्तेमाल करके नीचे उतरते थे, फिर गैंती, फावड़े और टोकरियों का इस्तेमाल करके हाथ से कोयला निकालते थे.

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रैट माइनर्स ने टनल में ऐसे दिया काम को अंजाम? 

सिलक्यारा रेस्क्यू ऑपरेशन को सफल बनाने के लिए कई विकल्प आजमाए गए. ऑगर मशीन में लगातार आ रही गड़बड़ी और अन्य विकल्प के असफल होने के बीच सोमवार को छह सदस्यीय रैट माइनर्स की टीम को तैनात किया गया. उसके बाद हाथ से खोदाई कराने का फैसला किया गया. मजदूरों की कुशल टीम रैट होल माइनिंग पद्धति का इस्तेमाल करके हाथ से मलबा हटाने का काम किया.

एक्सपर्ट ने बताया कि एक आदमी खुदाई करता है, दूसरा मलबा इकट्ठा करता है और तीसरा उसे बाहर निकालने के लिए ट्रॉली पर रखता है. जानकार हाथ से मलबे को हटाने के लिए 800 मिमी पाइप के अंदर काम किए. बताया गया कि इस दौरान उन्होंने फावड़ा और दूसरे उपकरण का इस्तेमाल किए. सकरें सुरंग के भीतर रैट माइनर्स के पर्याप्त आक्सीजन मिलती रहे इसके लिए ब्लोअर भी लगाए गए थे. हाथ से ड्रिलिंग काफी मेहनत वाला काम है और खुदाई करने वालों को कई बार खुदाई करनी पड़ी. ऐसे में कुशल रैट माइनर्स को काम पर लगाया जाता है.

बता दें कि दिवाली के दिन यानी 12 नवंबर 2023 को तड़के करीब 5 बजकर 30 मिनट पर सिलक्यारा से बड़कोट के बीच बन रही सुरंग में धंसाव हो गया. सुरंग के सिल्क्यारा हिस्से में 60 मीटर की दूरी में मलबा गिरने के कारण यह घटना हुई. 41 मजदूर सुरंग के अंदर सिलक्यारा पोर्टल से 260 मीटर से 265 मीटर अंदर रिप्रोफाइलिंग का काम कर रहे थे, तभी सिलक्यारा पोर्टल से 205 मीटर से 260 मीटर की दूरी पर मिट्टी का धंसाव हुआ और सभी 41 मजदूर टनल में फंस गए. 

घटना की सूचना राज्य और केंद्र सरकार की एजेंसियों को दी गई और उपलब्ध पाइपों के जरिए सुरंग में फंसे हुए मजदूरों को ऑक्सीजन, पानी, बिजली, पैक भोजन की सप्लाई के साथ रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू किया गया. फंसे हुए मजदूरों से वॉकी-टॉकी के जरिए भी संचार स्थापित किया गया है.

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