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Budget 2024 Expectations: करदाताओं को मिलेगी राहत? आगामी बजट में टैक्स कट से जुड़े इन 10 बदलावों की उम्मीद

Budget 2024 Expectations: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा कल पेश की जाने वाली बजट से करदाताओं को कई उम्मीदें हैं. उन्हीं में से कुछ की लिस्ट यहां चेक कर सकते हैं.

Budget 2024 Expectations: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा कल पेश की जाने वाली बजट से करदाताओं को कई उम्मीदें हैं. उन्हीं में से कुछ की लिस्ट यहां चेक कर सकते हैं.

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FE Hindi Desk
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आगामी बजट से करदाताओं को काफी उम्मीदें हैं. (Image: FE)

बीते कुछ महीनों से लगातार बढ़ रही महंगाई दर, घट रही आमदनी और जीवन यापन की बढ़ती लागत से प्रभावित करदाता वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से काफी उम्मीद लगाए बैठे हैं. दरअसल वित्त मंत्री कल यानी मंगलवार 23 जुलाई को देश का आम बजट पेश करेंगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल का यह पहला और पूर्ण बजट होगा. करदाताओं को उम्मीद है कि मोदी सरकार आगामी बजट में उनकी चिंताओं का समाधान करेंगी. करदाताओं के प्रमुख अपेक्षाओं में इनकम टैक्स स्लैब रेट में बदलाव, धारा 80C डिडक्शन लिमिट को बढ़ाना, स्टैंडर्ड डिडक्शन लिमिट को बढ़ाना, घर खरीदारों और निवेशकों के लिए अधिक टैक्स बेनिफिट देना और न्यू टैक्स रिजीम में बदलाव जैसे कई शामिल है.

शार्दुल अमरचंद मंगलदास एंड कंपनी के वरिष्ठ सलाहकार संजीव मल्होत्रा का ​​मानना है कि बजट से पहले इनकम टैक्स कट की लगातार मांग के बावजूद मौजूदा समय इस बदलाव को लागू करने के लिए उपयुक्त है. बीते कई की सालों की महंगाई दर से मध्यम वर्ग पर काफी असर पड़ा है, जिससे उनके लिए किसी प्रकार की राहत की आशा करना उचित हो गया है. 7%-8% जीडीपी ग्रोथ दर के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था स्थिर प्रतीत होती है. ग्रोथ को और अधिक बढ़ाने के लिए कंजप्शन ड्रिवेन स्टेटेजी (consumption-driven strategy) की ओर बढ़ना जरूरी है. इस बदलाव में व्यक्तियों को अधिक डिस्पोजल इनकम (disposable income) प्रदान करने के लिए कर ब्रैकेट का पुनर्गठन शामिल होगा.

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बैंक बाजार डॉट कॉम के सीईओ आदिल शेट्टी का मानना है कि करदाताओं को बेसब्री से बजट घोषणाओं का इंतजार है जिससे उनकी खर्च योग्य आय में बढ़ोतरी होगी. यह साल अलग नहीं है; करदाताओं को ओल्ड रिजीम के तहत अधिक टैक्स बेनिफिट की उम्मीद है. उनका कहना है कि न्यू रिजीम अधिक लोगों को टैक्स के बाद अपनी आय का एक बड़ा हिस्सा बनाए रखने की अनुमति देगी. वित्त मंत्री द्वारा कल पेश की जाने वाली बजट से करदाताओं को क्या कुछ उम्मीदें हैं उनकी एक लिस्ट यहां चेक कर सकते हैं.

धारा 80C का निराकरण

2014 के बाद से आयकर अधिनियम की धारा 80सी की समीक्षा नहीं की गई है, और अब कर बचत के इस अहम पहलू में बदलाव करना जरूरी है. धारा 80C हाउसिंग लोन अमाउंट रिपेमेंट, टैक्स सेविंग एफडी, ईपीएफ, बच्चों की स्कूल फीस और जीवन बीमा प्रीमियम जैसे तमाम वित्तीय दायित्वों को कवर करती है. करदाताओं के लिए लाभ को अधिकतम करने के लिए, धारा 80सी को रणनीतिक रूप से सुव्यवस्थित करना फायदेमंद होगा. लोन रिपेमेंट और इंश्योरेंस प्रीमियम को अलग करके, सरकार निवेश के लिए अधिक केंद्रित और कुशल कर प्रोत्साहन प्रदान कर सकती है.

80C कटौती सीमा में बढ़ोतरी

इनकम टैक्स की धारा 80C की अव्यवस्था को दूर करने के अलावा, धारा 80C कटौती सीमा में बदलाव करदाताओं की लंबे समय से चली आ रही इच्छा रही है. आखिरी संशोधन 2014 में किया गया था, जिसमें सीमा बढ़ाकर 1.5 लाख रुपये कर दी गई थी. बैंकबाजार के मुताबिक महंगाई दर और बढ़ते खर्चों को ध्यान में रखते हुए, 2014 से अपरिवर्तित 1.5 लाख रुपये की मौजूदा 80सी सीमा को कम से कम 2 लाख रुपये तक बढ़ाया जाना चाहिए. यह वृद्धि करदाताओं को अधिक बचत करने और वित्तीय साधनों में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करेगी.

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इनकम टैक्स स्लैब में बदलाव

इनकम टैक्स ब्रैकेट में बदलाव को लेकर काफी चर्चाएं चल रही हैं. जानकारों का मानना ​​है कि मूल छूट सीमा 100,000 रुपये तक बढ़ सकती है और इसी तरह क्रमिक स्लैब में भी 100,000 रुपये - 200,000 रुपये की वृद्धि देखी जा सकती है. ये आंकड़े मामूली लग सकते हैं लेकिन राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को देखते हुए, वित्र मंत्री के पास सीमित बैंडविड्थ हो सकता है.

न्यू टैक्स रिजीम में लोगों को मिल सकती है ज्यादा राहत

दो समानांतर टैक्स रिजीम कुछ समय तक रहने की संभावना है, हालांकि, सरकार करदाताओं के लिए न्यू रिजीम विकल्प की ओर बढ़ने के लिए इसके तहत कुछ और राहत दे सकती है. आदिल शेट्टी कहते हैं कि ज्यादातर करदाता न्यू रिजीम में महंगाई का सामना करने से जुड़े कमियों के चलते ओल्ड रिजीम विकल्प चुन लेते हैं. ऐसे में करदाताओं को न्यू रिजीम की ओर आकर्षित करने करने के लिए इसमें अधिक टैक्स बेनिफिटे देने की जरूरत होगी.

स्टैंडर्ड डिडक्शन में हो सकती है बढ़ोतरी

नौकरीपेशेवर लोगों के लिए वित्त वर्ष 2018-19 से शुरू यात्रा भत्ता और चिकित्सा प्रतिपूर्ति पर छूट नहीं मिलेगी, क्योंकि वे अब स्टैंडर्ड के लिए पात्र हैं. बढ़ते चिकित्सा और फ्यूल खर्चों को संबोधित करने के लिए, मानक कटौती सीमा को मौजूदा 50,000 रुपये से बढ़ाकर 100,000 रुपये प्रति वर्ष करना चाहिए. यह बदलाव बिजनेस या प्रोफेशन से कमाई करने वालों के साथ भी समानता लाएगा, जिनके पास वास्तविक खर्चों का क्लेम करने या अपनी ग्रॉस इनकम के एक निश्चित हिस्से के आधार पर टैक्स रिजीम चुनने का विकल्प है.

घर खरीदने वालों के लिए टैक्स छूट

घर खरीदार जो हाउसिंग लोन के जरिए खुद के सपनों का घर खरीदते हैं, वे टैक्स बेनिफिट पा सकते हैं. आयकर अधिनियम की धारा 24 होम लोन ईएमआई पर भुगतान किए गए एन्युअल इनरेस्ट पर 2 लाख रुपये तक की कटौती की अनुमति देती है, जबकि धारा 80C भुगतान की गई लोन अमाउंट के लिए 1.5 लाख रुपये तक की कटौती की अनुमति देती है. टैक्स एक्सपर्ट का सुझाव है कि होम लोन की ब्याज दरों और आवास की कीमतों में उल्लेखनीय वृद्धि को देखते हुए धारा 24 के तहत कटौती को कम से कम 5 लाख रुपये तक बढ़ाया जाना चाहिए. इसके अलावा वे धारा 80C के तहत हाउसिंग लोन अमाउंट पर टैक्स छूट की सीमा बढ़ाने या विशेष रूप से होम लोन के लिए एक अलग से टैक्स बेनिफिट दिए जाने का प्रस्ताव करते हैं.

हेल्थ इंश्योरेंस प्रीमियम पर टैक्स छूट लिमिट बढ़ेगी

सैलरी पाने वाले करदाताओं को उम्मीद है कि इस बार बजट में सरकार हेल्थ इंश्योरेंस प्रीमियम पर इनकम टैक्स की धारा 80D के तहत टैक्स छूट सीमा को 25,000 रुपये से बढ़ाकर 50,000 रुपये कर सकती है. इस बदलाव से बड़ी संख्या में करदाताओं को राहत मिलेगी और हेल्थ इंश्योरेंस का दायरा भी बढ़ेगा. इसी तरह, वरिष्ठ नागरिकों के लिए हेल्थ इंश्योरेंस प्रीमियम पर धारा 80D के तहत टैक्स छूट की सीमा बढ़ाकर 100,000 रुपये करने की जरूरत है. यह बदलाव कोविड-19 के बाद बीमा प्रीमियम में उल्लेखनीय वृद्धि के कारण महत्वपूर्ण है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि स्वास्थ्य देखभाल सभी के लिए सस्ती बनी रहे.

कैपिटल गेन टैक्स स्ट्रक्चर हो सकता है सरल

भारत में कैपिटल गेन टैक्स स्ट्रक्चर बेहद जटिल है, जिसमें विभिन्न प्रकार की एसेट्स के लिए अलग-अलग दरें और लॉन्ग टर्म के रूप में एलिजिबिलिटी हासिल करने की अलग-अलग अवधि होती है. मिसाल के लिए, लिस्टेड इक्विटी शेयर्स के लिए 12 महीने की होल्डिंग पीरियड की जरूरत होती है, रियल एस्टेट के लिए 24 महीने और डेट इंस्ट्रूमेंट के लिए 36 महीने की होल्डिंग पीरियड होती है. केपीएमजी के मुताबिक इसजटिलता के ऐतिहासिक कारण हो सकते हैं, टैक्स स्ट्रक्चर को सरल बनाने के सरकार के उद्देश्य के अनुरूप एक अधिक समान पूंजीगत लाभ कर संरचना पर विचार करना फायदेमंद हो सकता है

एचआरए टैक्स छूट नियमों में बदलाव

संगठित क्षेत्र (Organised Sector) की ज्यादातर कंपनियां अपने कर्मचारियों को हाउस रेंट अलाउंस (HRA) यानी मकान किराया भत्ता देते हैं, जो उनकी सैलरी या कॉस्ट टू कंपनी (CTC) का पार्ट होता है. यह रकम इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 10(13A) के तहत टैक्स फ्री होती है. करदाताओं के लिए यह एक अहम छूट है, खासकर उनके लिए जो नौकरी के चलते अपने घर से दूर किसी किराए के मकान में रहते हैं.

मौजूदा टैक्स फॉर्मूले के मुताबिक सिर्फ चार शहर - चेन्नई, मुंबई, दिल्ली और कोलकाता जैसे मेट्रो सिटी में 50% सैलरी बेसिस पर छूट के लिए पात्र हैं, वहीं गैर मेट्रो शहरों में रहने वाले नौकरीपेशा वालों के लिए 40% सैलरी बेसिस पर छूट मिलती है. हालांकि, बेंगलुरु, हैदराबाद, गुरुग्राम और पुणे जैसे शहर भी तेजी से महंगे हुए हैं. उम्मीद है कि इन शहरों में रह रहे लोगों को 50% सैलरी बेसिस पर छूट में शामिल करने के लिए आम बजट 2024 में एचआरए नियमों को बदलाव किया जा सकता है.

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बैंक जमा पर मिले ब्याज पर बढ़ सकती है टैक्स छूट की लिमिट

बैंक, सहकारी समिति या पोस्ट ऑफिस में जमा पर मिले ब्याज पर आयकर कानून की धारा 80TTA के तहत 10,000 रुपये तक की छूट मिलती है. हालांकि, बैंक जमा पर ब्याज के लिए मौजूदा 10,000 रुपये की छूट सीमा अपर्याप्त है और मौजूदा वक्त में इसे कम से कम 50,000 रुपये तक बढ़ाया जाना चाहिए.

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