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Fixed Income Funds Benefit : फिक्स्ड इनकम सिक्योरिटीज में कम अस्थिरता होती है, और ये बाजार के उतार-चढ़ाव से कम प्रभावित होते हैं. (Pixabay)
Fixed Income Funds Benefits & Risk : जैसे-जैसे महंगाई बढ़ रही है, निवेशक बाजार में अस्थिरता और आर्थिक अनिश्चितता के बावजूद अपने निवेश पर लगातार बेहतर रिटर्न चाहते हैं. फिक्स्ड इनकम म्यूचुअल फंड एक ऐसा निवेश विकल्प है, जो स्थिरता और संभावित बेहतर रिटर्न दे सकता है. फिक्स्ड इनकम म्यूचुअल फंड (Fixed Income Funds) निवेश का वह विकल्प है जो मुख्य रूप से गवर्नमेंट सिक्योरिटीज, कॉर्पोरेट बॉन्ड, डिबेंचर और अन्य मनी मार्केट जैसे एसेट क्लास में निवेश करता है. इन फंड का लक्ष्य पोर्टफोलियो में शामिल सिक्योरिटीज से रेगुलर इंटरेस्ट पेमेंट के माध्यम से निवेशकों के लिए इनकम जेनरेट करना है. ये एक तरह से डेट फंड होते हैं. तो क्या फिक्स्ड इनकम फंड में निवेशकों की कमाई फिक्स होती है.
फिक्स्ड इनकम फंड के कंपोनेंट
फिक्स्ड इनकम फंड निवेश के तरीके के आधार पर म्यूचुअल फंड की एक अलग कैटेगरी नहीं हैं. इन फंडों में डेट फंड, मनी मार्केट फंड, एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड (ईटीएफ) या डिपॉजिट सर्टिफिकेट (सीडी या फिक्स्ड डिपॉजिट स्कीम) शामिल हो सकते हैं.
डेट फंड: डेट फंड (Debt Funds) शेयर बाजार में निवेश नहीं करते हैं, बल्कि सरकारी और कॉर्पोरेट बॉन्ड और अन्य सुरक्षित विकल्पों को प्राथमिकता देते हैं. इनमें जोखिम कम होता है और रिटर्न स्टेबल होता है.
मनी मार्केट फंड: मनी मार्केट फंड (Money Market Funds) स्थिर आय वाले साधनों जैसे ट्रेजरी बिल, निगमों द्वारा जारी किए गए कमर्शियल पेपर, सीडी में निवेश करते हैं. ये ब्याज दरों में किसी भी बढ़ोतरी से सीधे प्रभावित होते हैं और इसलिए 90 दिनों तक के शॉर्ट टर्म निवेश के लिए बेहतर होते हैं.
एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड (ETF): ईटीएफ इंडेक्स फंड हैं जो स्टॉक की तरह एक्सचेंज पर लिस्ट होते हैं और उनमें ट्रेड किया जाता है. ईटीएफ को कैश मार्केट में खरीदा और बेचा जा सकता है. गोल्ड ईटीएफ इसके सबसे लोकप्रिय है.
फिक्स्ड इनकम म्यूचुअल फंड की विशेषताएं
इस फंड का उद्देश्य बॉन्ड्स और अन्य फिक्स्ड इनकम सिक्योरिटी में निवेश कर रिटर्न जेनरेट करना है. इसका मतलब यह है कि ये फंड बॉन्ड खरीदते हैं और निवेश पर ब्याज आय अर्जित करते हैं.
फिक्स्ड इनकम सिक्योरिटीज में कम अस्थिरता होती है, और ये बाजार के उतार-चढ़ाव से कम प्रभावित होते हैं.
डेट फंड्स को डेट और मुद्रा बाजार उपकरण (जैसे कमर्शियल पेपर्स, ट्रेजरी बिल और बहुत कुछ) दोनों में निवेश किया जाता है. यह एक विविध पोर्टफोलियो वाले डेट फंड्स की विशेषता को आगे लाता है और बैंक डिपॉजिट की तुलना में अधिक रिटर्न दे सकता है.
डेट फंड्स पर ब्याज मिलता है, जिसका भुगतान योजना में अंडरलाइंग बॉन्ड और डिबेंचर द्वारा किया जाता है, साथ ही मूल्य वृद्धि की संभावना भी होती है.
इसके अलावा, इन फंड्स में आमतौर पर लॉक-इन अवधि नहीं होती है. इसका मतलब है कि निवेशक जब चाहें एग्जिट लोड और अन्य खर्चों, अगर कोई हो, के अधीन फंड से अपना पैसा निकाल सकते हैं.
जब फिक्स्ड इनकम फंड्स की तुलना अन्य म्यूचुअल फंड (जैसे इक्विटी) से की जाती है, तो उन्हें जोखिम में अपेक्षाकृत कम माना जाता है. यह आपके पोर्टफोलियो को संतुलित करके और ओवरआल जोखिम को कम करके आपके निवेश पोर्टफोलियो को कुछ स्थिरता भी देता है.
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रिस्क फ्री नहीं हैं ये विकल्प
अगर ब्याज दरें बढ़ने लगती हैं, तो बांड की कीमतें गिरती हैं और अगर दरें कम होती हैं तो बांड की कीमतें बढ़ जाती हैं. बांड की कीमत में इस बदलाव से कैपिटल गेंस होगा या कैपिटल लॉस. यह रिटर्न का पहला सोर्स है. रिटर्न का दूसरा सोर्स बांड की कूपन रेट के आधार पर बांड पर हासिल होने वाला ब्याज है. यानी कहा जा सकता है कि फिक्स्ड इनकम के विकल्प पूरी तरह से रिस्क फ्री नहीं हैं. इनमें से कुछ जोखिम ये हैं.....
इंटरेस्ट रेट रिस्क
क्रेडिट रिस्क
लिक्विडिटी से जुड़ा रिस्क
महंगाई से जुड़ा रिस्क
किसके लिए ठीक है विकल्प
फिक्स्ड इनकम फंड सिर्फ उन्हीं निवेशकों के लिए बेहतर विकल्प हैं, जो बाजार के जोखिम से दूर रहना चाहते हैं और सतर्क होर निवेश करते हैं. ये इक्विटी फंड की तरह ग्रोथ के अवसर प्रदान नहीं करते हैं, इसलिए रिटर्न भी कम होता है. हालांकि, निवेशकों के लिए यह समझदारी होगी कि वे अपना कुछ पैसा फिक्स्ड इनकम या डेट फंड में लगाएं, जिससे उनका पोर्टफोलियो बैलेंस हो सके. इससे आर्थिक मंदी की स्थिति में उनका सारा पैसा जोखिम में जाने से बच जाता है.
(sources : Amfi, financial websites)