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Safe Investment : निवेश का सुरक्षित विकल्प चुनना चाहते हैं तो आपके लिए म्युचुअल फंड एसआईपी बेहतर है. (Pixabay)
Benefits of Early Investing : आज के दौर में बच्चे जल्द से जल्द आत्मनिर्भर बनना चाहते हैं. खास तौर से मेट्रो शहरों में युवा कम उम्र से ही अर्निंग मेंबर बन जाते हैं. एक तरह से कह लें तो उनमें जागरुकता भी बढ़ रही है. लेकिन क्या यही जागरुकता निवेश और बचत के मामले में भी है. क्या ये युवा नौकरी शुरू करते ही अपने रिटायरमेंट या नॉन वर्किंग ईयर्स के बारे में सोचते हैं. आमतौर पर बहुत से मामलों में इसका जवाब नहीं होगा. क्योंकि अर्निंग शुरू होने के कुछ साल वे अपनी तुरंत की जरूरतों और शौक पूरा करने पर ज्यादा खर्च करते हैं. इसलिए रिटायरमेंट के लिए फाइनेंशियल प्लानिंग उनकी प्राथमिकता में पीछे रह जाता है. लेकिन ये गलती कर वे कंपाउंडिंग की ताकत (Power of Compounding) का फायदा लेने में उन लोगों से पीछे रह जाते हैं, जिन्होंने समय पर निवेश शुरू कर दिया.
लक्ष्य पूरा करने में न रह जाएं पीछे
फाइनेंशियल एडवाइजर भी ये सलाह देते रहते हैं कि जितना जल्दी हो सके, भविष्य के बारे में सोचकर फाइनेंशियल प्लानिंग शुरू करें (Early Investing) और लगातार निवेश बनाए रखते हुए अपनी प्लानिंग में अनुशासित बने रहें. निवेश की योजना बनाने में जितनी देरी या लापरवाही होगी, आप अपने फाइनेंशियल टारगेट (Financial Planning) को पूरा करने में उतना ही पीछे होते जाएंगे. कम उम्र में निवेश शुरू करने का मतलब है कि फाइनेंशियल टारगेट को पूरा करने के लिए ज्यादा समय. वहीं लंबी अवधि में निवेश से आपको कंपाउंडिंग (Magic of Compounding)का पूरा फायदा भी मिलता है. निवेश का सुरक्षित विकल्प चुनना चाहते हैं तो आपके लिए म्युचुअल फंड एसआईपी बेहतर है. वहीं स्माल सेविंग्स स्कीम उनके लिए बेहतर है जो बाजार का रिस्क जरा भी नहीं लेना चाहते हैं.
1 लाख का निवेश बन गया 10 लाख, इन 5 स्मॉलकैप स्कीम ने किया बड़ा कमाल, 10 साल में 940% तक रिटर्न
उदाहरण से समझें
इस बात को हम एक उदाहरण से समझ सकते हैं. मान लिया 3 दोस्तों X, Y और Z ने एक साथ नौकरी शुरू की. X ने 25 साल की उम्र से फाइनेंशियल प्लानिंग शुरू किया, जबकि Y ने 30 की उम्र और Z ने 35 की उम्र से निवेश करना शुरू किया. तीनों ने एक ही म्यूचुअल फंड स्कीम में एक समान एसआईपी शुरू किया. एक ही स्कीम होने से तीनों ने अनुमानित रिटर्न 12 फीसदी सालाना माना. रिटायरमेंट की उम्र 55 साल तय की. ऐसे में X, Y और Z के पास निवेश के लिए 30 साल, 25 साल और 20 साल मिल गया है.
निवेशक X: 30 साल का लक्ष्य
मंथली SIP: 5000 रुपये
अवधि: 30 साल
अनुमानित रिटर्न: 12% सालाना
कुल निवेश: 18 लाख रुपये
30 साल बाद फंड: 1,76,49,569 रुपये (1.8 करोड़)
फायदा: 1,58,49,569 रुपये (1.6 करोड़)
निवेशक Y: 25 साल का लक्ष्य
मंथली SIP: 5000 रुपये
अवधि: 25 साल
अनुमानित रिटर्न: 12% सालाना
कुल निवेश: 15 लाख रुपये
30 साल बाद फंड: 94,88,175 रुपये (95 लाख रुपये)
फायदा: 79,88,175 रुपये (करीब 80 लाख रुपये)
निवेशक Z: 20 साल का लक्ष्य
मंथली SIP: 5000 रुपये
अवधि: 20 साल
अनुमानित रिटर्न: 12% सालाना
कुल निवेश: 12 लाख रुपये
30 साल बाद फंड: 49,95,740 रुपये (करीब 50 लाख रुपये)
फायदा: 37,95,740 रुपये (करीब 38 लाख रुपये)
क्या मिला रिजल्ट
-पहले केस में निवेश के लिए 30 साल का समय मिल गया और कुल 18 लाख निवेश के बदले कुल फंड 1.8 करोड़ हो गया. यानी करीब 1.6 करोड़ का फायदा हुआ.
-दूसरे केस में निवेश के लिए 25 साल का समय मिला और कुल 15 लाख निवेश के बदले कुल फंड 95 लाख रुपये हुआ और करीब 80 लाख रुपये का फायदा हुआ.
-तीसरे केस में निवेश के लिए 20 साल का समय मिला और कुल 12 लाख निवेश के बदले कुल फंड करीब 50 लाख रुपये हुआ और करीब 38 लाख रुपये का ही फायदा हुआ.
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कितना दिख रहा है अंतर
आप खुद तय कर सकते हैं कि 18 लाख निवेश कर 1.80 करोड़ पाना चाहेंगे, कि 15 लाख के बदले 95 लाख या 12 लाख के बदले सिर्फ 50 लाख. यहां निवेशक Z ने अगर 10 साल पहले निवेश शुरू किया होता तो उसे सिर्फ 6 लाख और निवेश बढ़ाने पर 50 लाख के बदले 1.80 करोड़ मिल गए होते जो 1.30 करोड़ ज्यादा है. यही कंपाउंडिंग की ताकत है. इसी तरह से यहां निवेशक Y ने अगर 5 साल पहले निवेश शुरू किया होता तो उसे सिर्फ 3 लाख और निवेश बढ़ाने पर 95 लाख के बदले 1.80 करोड़ मिल गए होते जो 85 लाख रुपये ज्यादा है.