/financial-express-hindi/media/media_files/2CqkA1BuYfO3YOJXmgu7.jpg)
Sebi ने राइट्स इश्यू को बढ़ावा देने के मकसद से एक नया कंसल्टेशन पेपर जारी किया है. (File Photo : Reuters)
Sebi on rights issue: भारत के मार्केटरेगुलेटर सेबी (SEBI) ने राइट्स इश्यू को बढ़ावा देने के मकसद से एक नया कंसल्टेशन पेपर (consultation paper) पेश किया है. सेबी के इस कंसल्टेशन पेपर में कई ऐसे सुझाव दिए गए हैं, जिनसे शेयर्स के राइट्स इश्यू के लिए डिस्क्लोजर (disclosure) पहले की तुलना में आसान होगा और इश्यू का प्रोसेसिंग टाइम भी घटेगा. सेबी ने ये अहम सुझाव निवेशकों समेत तमाम पक्षों की प्रतिक्रियाएं जानने के लिए मंगलवार को जारी किए हैं. सेबी का मानना है कि उसके सुझावों पर अमल होने से कंपनियों के फंड जुटाने के लिए तरीकों में राइट्स इश्यू के इस्तेमाल को बढ़ावा मिलेगा. सेबी ने अपने कंसल्टेशन पेपर में इस बात पर चिंता भी जाहिर की है कि पिछले आंकड़ों के मुताबिक कंपनियों ने फंड जुटाने के लिए राइट्स इश्यू का इस्तेमाल बहुत कम किया है.
ऑफर लेटर को सरल बनाने का सुझाव
सेबी ने राइट्स इश्यू के 'ऑफर लेटर' (Letter of Offer) को सरल बनाने और उसमें केवल राइट्स इश्यू से संबंधित जानकारी, जैसे इश्यू का उद्देश्य, कीमत, रिकॉर्ड डेट और एंटाइटलमेंट अनुपात (entitlement ratio) जैसी जानकारी को शामिल करने का प्रस्ताव दिया है. सेबी का कहना है कि "राइट्स इश्यू के मामले में, किसी निवेशक के लिए निवेश निर्णय लेते समय केवल अतिरिक्त जानकारी की जरूरत होती है. जैसे इश्यू का उद्देश्य, कीमत, एंटाइटलमेंट अनुपात, प्रमोटर की भागीदारी वगैरह. इसलिए, यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि राइट्स इश्यू के माध्यम से किसी कंपनी में निवेश करना लगभग सेकेंडरी मार्केट से शेयर खरीदने जैसा है. इसलिए राइट्स इश्यू के मामले में, ऐसी कोई जरूरत नहीं है कि इश्यू से संबंधित जानकारी के अलावा उस जानकारी को भी इकट्ठा किया जाए, जो पहले से ही सार्वजनिक क्षेत्र में उपलब्ध है."
राइट्स इश्यू में लगने वाला समय घटेगा
मौजूदा व्यवस्था के तहत गैर-फास्ट ट्रैक राइट्स इश्यू (non-fast track rights issue) के बोर्ड अप्रूवल से लेकर ट्रेडिंग के दिन तक, पूरी प्रक्रिया में औसतन 317 दिन लगते हैं. वहीं फास्ट ट्रैक राइट्स इश्यू में औसतन 126 दिन लगते हैं. लेकिन सेबी ने अपने कंसल्टेशन पेपर में इस समय को घटाकर T+20 कार्य दिवस तक लाने का इरादा जाहिर किया है.
जरूरी न हो मर्चेंट बैंकर की नियुक्ति
सेबी ने राइट्स इश्यू के लिए मर्चेंट बैंकर की नियुक्ति की जरूरत को समाप्त करने का सुझाव भी दिया है. इसके अलावा, रेगुलेटर ने उन गतिविधियों को रजिस्ट्रार-टू-इश्यू (Registrar to Issue) या स्टॉक एक्सचेंजों को सौंपने का प्रस्ताव दिया है, जिन्हें अभी मर्चेंट बैंकर द्वारा किया जाता है. सेबी ने यह भी प्रस्ताव दिया है कि आवेदन की वैधता (validation) और आवंटन के आधार (basis of allotment) को अंतिम रूप देना, जिसे अभी रजिस्ट्रार-टू-इश्यू द्वारा किया जाता है, स्टॉक एक्सचेंजों और डिपॉजिटरीज़ (depositories) द्वारा भी साथ-साथ किया जा सकता है.
Also read : Mutual Fund : 3 लाख को 12 लाख बनाने वाला म्यूचुअल फंड! क्या आपको करना चाहिए निवेश
मॉनिटरिंग एजेंसी की नियुक्ति अनिवार्य हो
मार्केट रेगुलेटर ने जो सुझाव दिए हैं, उनमें राइट्स इश्यू में चुनिंदा निवेशकों (selective investors) को शेयर अलॉटमेंट की सुविधा देने और इश्यू के लिए जांच और संतुलन (checks and balances) की व्यवस्था को मजबूत करने जैसे प्रस्ताव भी अहम हैं. सेबी ने सभी प्रकार के इक्विटी शेयरों के राइट्स इश्यू से होने वाली आय के उपयोग की निगरानी के लिए एक 'निगरानी एजेंसी' (monitoring agency) की नियुक्ति को अनिवार्य बनाने का प्रस्ताव भी दिया है. मौजूदा नियमों के तहत, अगर इश्यू लाने वाली कंपनी 50 करोड़ रुपये से कम के शेयर जारी करती है, तो उसे निगरानी एजेंसी नियुक्त करने की जरूरत नहीं होती.
ट्रेडिंग सस्पेंड रहने के दौरान राइट्स इश्यू पर रोक
सेबी ने अपने कंसल्टेशन पेपर में सिफारिश की है कि अगर किसी कंपनी के शेयरों की ट्रेडिंग सस्पेंड है, तो उस दौरान इसे राइट्स इश्यू लाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. जबकि मौजूदा नियमों के तहत राइट्स इश्यू लाने के लिए ऐसी कोई शर्त लागू नहीं है. सेबी के इन प्रस्तावों का उद्देश्य राइट्स इश्यू को फंड जुटाने का एक पसंदीदा तरीका बनाना है, क्योंकि सेबी ने देखा है कि वित्त वर्ष 2023-24 (FY24) के दौरान राइट्स इश्यू के माध्यम से जुटाई गई रकम अन्य उपलब्ध तरीकों, मसलन QIPs और प्रिफरेंशियल अलॉटमेंट (preferential allotments) की तुलना में काफी कम रही है. इसके अलावा राइट्स इश्यू की संख्या भी काफी कम रही है. सेबी ने अपने इन प्रस्तावों पर 10 सितंबर तक आम लोगों की प्रतिक्रियाएं मांगी हैं.
सेबी ने सुझाव दिया है कि जारीकर्ता को प्रस्तावित सरल 'ऑफर लेटर' में कुछ जानकारी का खुलासा करने के लिए बाध्य किया जा सकता है. इसमें कम से कम तीन वर्षों के लिए लिस्टिंग समझौते (listing agreement) या LODR नियमों का पालन न करने के विवरण, शिकायतों के निपटारे का प्रतिशत और अगर निपटारे 95 प्रतिशत से कम है, तो उसके कारण और कोई शो-कॉज़ नोटिस का विवरण शामिल हो सकता है.