/financial-express-hindi/media/media_files/5gpbyMFtkQs6ojlHurPl.jpg)
यह संस्थागत व्यवस्था पहचान और संभावित बाजार दुरुपयोग की रोकथाम के अलावा सिक्योरिटीज में ‘फ्रंट-रनिंग’ और धोखाधड़ी वाले लेनदेन पर नजर रखेगी. (Image: Reuters)
सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया यानी सेबी (SEBI) के डायरेक्टर बोर्ड ने म्यूचुअल फंड को संचालित करने वाले नियमों में मंगलवार को बदलाव किया. इसके तहत एसेट मैनेजमेंट कंपनियों (AMCs) को संभावित बाजार दुरुपयोग रोकने के लिए एक ‘संस्थागत व्यवस्था’ स्थापित करना जरूरी बनाने का फैसला किया गया है. यह संस्थागत व्यवस्था पहचान और संभावित बाजार दुरुपयोग की रोकथाम के अलावा सिक्योरिटीज में ‘फ्रंट-रनिंग’ और धोखाधड़ी वाले लेनदेन पर नजर रखेगी. यहां फ्रंट-रनिंग का मतलब कीमत को प्रभावित करने वाली संवेदनशील जानकारी के आधार पर ब्रोकर का कारोबार करना है.
AMCs में फ्रंट-रनिंग और धोखाधड़ी पर नकेल कसने की तैयारी
सेबी ने म्यूचुअल फंड में ‘फ्रंट-रनिंग’ और भेदिया कारोबार पर लगाम लगाने के लिए मंगलवार को कदम उठाया. इसके तहत सेबी डायरेक्टर बोर्ड ने फैसला किया कि एसेट मैनेजमेंट कंपनियों (AMCs) को संभावित बाजार दुरुपयोग की पहचान और निवारण के लिए एक संस्थागत तंत्र (regulatory framework) बनाना होगा. इसके साथ ही डायरेक्टर बोर्ड ने ऐसे रेगुलेटर फ्रेमवर्क के लिए म्यूचुअल फंड का संचालन करने वालीं एसेट मैनेजमेंट कंपनी के मैनेजमेंट की जिम्मेदारी और जवाबदेही बढ़ाने का फैसला लिया.
सेबी ने डायरेक्टर बोर्ड की बैठक के बाद जारी एक बयान के मुताबिक, नियामक चाहता है कि एएमसी गलतियों के खिलाफ आवाज उठाने वाले ‘व्हिसिल ब्लोअर’ तंत्र बनाकर पारदर्शिता को बढ़ावा दे. सेबी के निदेशक मंडल की पिछले डेढ़ महीने में यह पहली बैठक है. इसके पहले 15 मार्च को बैठक हुई थी. एएमसी से संबंधित गड़बड़ी में फ्रंट रनिंग, भेदिया कारोबार और संवेदनशील जानकारी का दुरुपयोग शामिल हैं. जब कोई ब्रोकर या निवेशक गोपनीय जानकारी के आधार पर किसी कारोबार में शामिल होता है, उसे ‘फ्रंट रनिंग’ कहते हैं. यह ऐसी संवेदनशील जानकारी होती है, जिससे परिसंपत्ति की कीमत प्रभावित होती है.
SEBI की बैठक के फैसले
सेबी का यह फैसला एक्सिस एएमसी और भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) से संबंधित दो ‘फ्रंट-रनिंग’ मामलों में जारी आदेश के बीच आया है. सेबी (SEBI) के डायरेक्टर बोर्ड की बैठक के बाद जारी बयान में कहा गया कि संस्थागत व्यवस्था में संस्थागत व्यवस्था यानी रेगुलेटरी फ्रेमवर्क से एएमसी के कर्मचारियों, डीलरों, स्टॉक ब्रोकरों या किसी अन्य संबंधित संस्थाओं द्वारा संभावित गड़बड़ी का पता लगाने और सूचना देने की उम्मीद की जाती है. इसमें खास तरह की गड़बड़ी की पहचान, निगरानी और पता लगाने के लिए उन्नत निगरानी प्रणाली, आंतरिक नियंत्रण प्रक्रियाएं और वृद्धि प्रक्रियाएं शामिल होनी चाहिए.
एक्सिस एएमसी मामले में ब्रोकर-डीलरों, कुछ कर्मचारियों और संबंधित संस्थाओं को एएमसी के कारोबारों को ‘फ्रंट-रनिंग’ में लिप्त पाया गया था. वहीं एलआईसी मामले में, एक सूचीबद्ध बीमा कंपनी के एक कर्मचारी को सौदों की ‘फ्रंट-रनिंग’ करते हुए पाया गया था.
सेबी ने बयान में कहा, "हाल में सामने आए मामलों को ध्यान में रखते हुए निदेशक मंडल ने संभावित बाजार दुरुपयोग की पहचान और निवारण के लिए एएमसी को एक व्यवस्थित रेगुलेटरी बनाने के लिए सेबी (म्यूचुअल फंड) विनियम, 1996 में संशोधन को मंजूरी दी.'' जहां सेबी इस संस्थागत तंत्र की विस्तृत रूपरेखा को निर्धारित करेगा वहीं म्यूचुअल फंड निकाय 'एसोसिएशन ऑफ म्यूचुअल फंड्स इन इंडिया' (एम्फी) सेबी के परामर्श से ऐसे संस्थागत तंत्र के लिए विस्तृत मानकों को तय करेगा.
इसके अलावा सेबी ने म्यूचुअल फंड के लिए समान अवसर देने के लिए स्पांसर की ग्रुप कंपनीज की सिक्योरिटी के संबंध में निष्क्रिय योजनाओं के लिए विवेकपूर्ण मानदंडों को सुव्यवस्थित किया है. वर्तमान में, म्यूचुअल फंड योजनाओं को प्रायोजक की समूह कंपनियों में अपने नेट एसेट वैल्यू (NAV) का 25 फीसी से अधिक निवेश करने की अनुमति नहीं है.
बयान के मुताबिक इसके अलावा अपनी योजनाओं के निवेश को पूरी तरह से समाप्त करने में असमर्थता के संबंध में पूर्ववर्ती उद्यम पूंजी कोष यानी वेंचर कैपिटल फंड (VCF) नियमों के तहत पंजीकृत वीसीएफ के समक्ष आने वाले मुद्दों के समाधान को लेकर सेबी के डायरेक्टर बोर्ड ने प्रस्ताव को मंजूरी दी है. इस प्रस्ताव के तहत ऐसे वीसीएफ को वैकल्पिक निवेश कोष यानी अल्टरनेटिव इनवेस्टमेंट फंड (AIF) नियमों में स्थानांतरित होने और अघोषित निवेश के मामले में एआईएफ के लिए उपलब्ध सुविधाओं का लाभ उठाने का विकल्प मिलेगा.