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Mutual Fund Investment: अमेरिका में ब्याज दरें घटने का भारत के इक्विटी फंड्स पर क्या होगा असर? किन सेक्टर्स को हो सकता है फायदा

Rate Cut Impact : यूएस फेडरल रिजर्व के ब्याज दरें 50 बेसिस पॉइंट्स घटाने के फैसले का भारत में म्यूचुअल फंड्स के प्रदर्शन पर क्या असर पड़ सकता है?

Rate Cut Impact : यूएस फेडरल रिजर्व के ब्याज दरें 50 बेसिस पॉइंट्स घटाने के फैसले का भारत में म्यूचुअल फंड्स के प्रदर्शन पर क्या असर पड़ सकता है?

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Viplav Rahi
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Rate Cut Impact : अमेरिका में ब्याज दरें घटाने का भारत के निवेशकों पर क्या असर पड़ सकता है? (Image : Pixabay)

Rate Cut Impact on Equity Mutual Funds : यूएस फेडरल रिजर्व के ब्याज दरें 50 बेसिस पॉइंट्स (bps) घटाने के एलान बाद बहुत सारे निवेशकों के मन में यह सवाल उठ सकता है कि इसका उनके म्यूचुअल फंड इनवेस्टमेंट पर क्या असर पड़ सकता है? डेट फंड्स पर ब्याज दरों के असर की बात तो आमतौर पर की जाती है, लेकिन क्या इसका असर इक्विटी फंड्स पर भी पड़ता है? अगर हां, तो क्या और कैसे? दरअसल, ब्याज दरों में बदलाव का असर अलग-अलग एसेट क्लासेस पर होता है, जिसमें इक्विटी म्यूचुअल फंड्स भी शामिल हैं.

ब्याज दरों का इक्विटी म्यूचुअल फंड्स पर असर

जब ब्याज दरें कम होती हैं, तो कंजम्प्शन और बिजनेस के लिए कर्ज लेना सस्ता हो जाता है, जिससे आर्थिक गतिविधियों में तेजी आती है. इससे शेयर बाजारों को भी फायदा होता है, क्योंकि कंपनियों की कमाई बढ़ने की उम्मीद रहती है. विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे समय में फ्लेक्सी-कैप और मल्टी-कैप फंड्स में निवेश बढ़ाना सही रणनीति साबित हो सकती है. ये फंड्स अलग-अलग सेक्टर्स में निवेश करते हैं. इस डायवर्सिफिकेशन से रिस्क को कम करने में मदद मिलती है.

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किन सेक्टर्स को होगा फायदा?

ब्याज दरों में कमी का सीधा असर इन सेक्टर्स पर पड़ सकता है:

टेक्नोलॉजी: टेक्नोलॉजी आधारित कंपनियों का प्रदर्शन बेहतर हो सकता है, क्योंकि सस्ती फंडिंग उन्हें अपने इनोवेशन को और तेज करने में मदद करती है.

फाइनेंशियल सर्विसेज: ब्याज दरों में गिरावट से बैंकिंग और फाइनेंशियल सर्विसेज से जुड़े शेयरों को फायदा होता है, क्योंकि उनके लिए कर्ज की लागत घटती है.

रियल एस्टेट : हाउसिंग मार्केट को भी ब्याज दरों में कमी से फायदा होता है, क्योंकि कर्ज सस्ता हो जाता है.

ऑटोमोबाइल और कंज्यूमर ड्यूरेबल : ब्याज दरें घटने से ईएमआई पर बिकने वाली गाड़ियों और महंगे कंज्यूमर ड्यूरेबल आइटम्स की बिक्री बढ़ने की उम्मीद रहती है. यानी इस सेक्टर्स की कंपनियों के शेयर्स को भी लाभ हो सकता है. 

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क्या होनी चाहिए निवेश की रणनीति?

ब्याज दरें घटने पर ऊपर बताए गए सभी सेक्टर्स में निवेश करने वाले इक्विटी फंड्स को लाभ हो सकता है. इसका एक मतलब यह भी हो सकता है कि ऐसे थीमैटिक या सेक्टोरल फंड्स में निवेश करना सही होगा, जो ऊपर बताए गए सेक्टर्स में पैसे लगाते हैं. लेकिन क्या इनवेस्टमेंट स्ट्रैटजी के हिसाब से ऐसा करना सही होगा?

1. थीमैटिक, सेक्टोरल फंड्स में सीमित निवेश करें  

हालांकि टेक्नोलॉजी, वित्तीय सेवाओं और हाउसिंग सेक्टर पर आधारित थीमैटिक/सेक्टोरल फंड्स इस समय अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं, लेकिन इनमें अधिक जोखिम भी होता है. इसलिए, निवेशकों को अपने कुल पोर्टफोलियो का केवल एक छोटा हिस्सा ही ऐसे फंड्स में लगाना चाहिए.

2. फ्लेक्सी-कैप, मल्टी-कैप फंड्स पर ध्यान दें  

इन फंड्स में अलग-अलग सेक्टर्स और कैटेगोरीज़ में निवेश होता है, जिससे निवेशकों को व्यापक और संतुलित लाभ मिल सकता है. लिहाजा, निवेशकों को चाहिए कि वे फ्लेक्सी-कैप और मल्टी-कैप फंड्स में अपना निवेश बढ़ाएं और थीमैटिक फंड्स में केवल 8-10% निवेश रखें. 

3. रिस्क मैनेजमेंट जरूरी है

बाजार का रुझान चाहे पॉजिटिव हो या निगेटिव, लॉन्ग टर्म में मुनाफा कमाने के लिए सही एसेट अलोकेशन बहुत जरूरी होता है. निवेशकों को अपने पोर्टफोलियो में डायवर्सिफिकेशन के जरिये रिस्क को बैलेंस करना चाहिए.

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भारतीय बाजारों पर क्या होगा असर?

यूएस फेड की ब्याज दरों में कटौती का असर भारतीय बाजारों पर भी पड़ेगा. इससे भारतीय बाजार में विदेशी निवेशकों की भागीदारी बढ़ सकती है, क्योंकि ब्याज दरों में गिरावट के बाद इक्विटी बाजारों में निवेश की संभावनाएं बढ़ जाती हैं. माना यह भी जा रहा है कि अमेरिकी फेड रिजर्व के फैसले के बाद आरबीआई भी आने वाले समय में ब्याज दरों में कटौती कर सकता है, जिससे भारतीय इक्विटी बाजारों को और अधिक बढ़ावा मिल सकता है.

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लॉन्ग टर्म के लिए करें निवेश

कुल मिलाकर, यूएस फेड के ब्याज दरें घटाने की वजह से इक्विटी म्यूचुअल फंड्स में निवेश का माहौल बेहतर हो सकता है. ऐसे में निवेशकों को फ्लेक्सी-कैप और मल्टी-कैप फंड्स पर फोकस करना चाहिए और थीमैटिक/सेक्टोरल फंड्स में सीमित निवेश करना चाहिए. इस समय एसेट अलोकेशन और रिस्क मैनेजमेंट के मामले में सही रणनीति अपनाकर निवेशक इक्विटी फंड्स से बेहतर रिटर्न हासिल करने की उम्मीद कर सकते हैं. लेकिन यह बात भी याद रखनी चाहिए कि इक्विटी फंड्स में निवेश हमेशा लॉन्ग टर्म के लिए करना चाहिए. जिन निवेशकों का इनवेस्टमेंट होराइजन 5 साल से कम है, उनके लिए इक्विटी फंड्स में निवेश से बचना ही बेहतर है.

(डिस्क्लेमर : इस आर्टिकल का उद्देश्य सिर्फ जानकारी देना है, निवेश की सिफारिश करना नहीं. म्यूचुअल फंड्स में निवेश के साथ मार्केट रिस्क हमेशा जुड़ा होता है. निवेश का कोई भी फैसला अपने निवेश सलाहकार की राय लेने के बाद ही करें.)

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