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F&O; : सेबी चेयरपरसन माधवी पुरी बुच ने कहा कि एफएंडओ ट्रेडिंग से देश के परिवारों को साल भर में 60 हजार करोड़ रुपये तक नुकसान हो रहा है. (Pixabay)
Future and Option Trading : शेयर बाजार में फ्यूचर एंड ऑप्शन (F&O) ट्रेडिंग का चलन पिछले कुछ सालों में तेजी से बढ़ा है. बहुत से निवेशक इसे कम समय में ज्यादा मुनाफा कमाने का जरिया मानते हैं. लेकिन अगर शेयर बाजार की अच्छी से जानकारी लिए बगैर या किसी अच्छे फाइनेंशियल एक्सपर्ट से सलाह लिए बगैर किसी की देखा देखी फ्यूचर एंड ऑप्शन ट्रेडिंग में हाथ आजमाते हैं तो हाथ जल जाने का खतरा बहुत ज्यादा रहता है. इस ट्रेडिंग में हो रहे नुकसान को देखते हुए मार्केट रेगुलेटर सेबी भी बार बार निवेशकेों को न सिर्फ अलर्ट कर रही है, बल्कि बड़े कदम उठाने की तैयारी में है. सेबी के अनुसार फ्यूचर एंड ऑप्शन ट्रेडिंग करने वाले 10 में से 9 निवेशकों को नुकसान हो रहा है. वहीं बहुत से ऐसी फैमिली है, जो कम समय में ज्यादा मुनाफे के चक्क्र में कंगाल हो रही है. ऐसे में इसके बारे में आपको भी जानना चाहिए.
परिवार हर साल गंवा रहे 60,000 करोड़ रुपये
मार्केट रेगुलेटर सेबी की चेयरपरसन माधवी पुरी बुच ने कहा कि बाजार के फ्यूचर एंड ऑप्शन (एफएंडओ) सेग्मेंट में शिरकत करने से देश के परिवारों को साल भर में 60,000 करोड़ रुपये तक का नुकसान उठाना पड़ रहा है. उन्होंने आश्चर्य जताया कि डेरिवेटिव बाजारों में इस तरह के दांव को ‘व्यापक मुद्दा’ क्यों नहीं कहा जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि एफएंडओ सेग्मेंट में हर साल 50,000-60,000 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है. यह अमाउंट आने वाले आईपीओ, म्यूचुअल फंड या अन्य विकल्पों के लिए लगाई जा सकती थी. सेबी अब इस एक्टिविटी को सीमित करने पर विचार कर रहा है.
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F&O ट्रेडिंग कैसे होती है?
ऑप्शन ट्रेडिंग को ऐसे समझ सकते हैं कि मान लिया किसी कंपनी के शेयर 250 रुपये में मिल रहे हैं. लेकिन, इस तरह का सेंटीमेंट बना कि यह शेयर आने वाले दिनों में 500 रुपये तक पहुंच जाएंगे. आप इस कंपनी के 5000 शेयर खरीदने के लिए किसी के साथ कांट्रैक्ट किया कि आप 300 रुपये में यह शेयर खरीदना चाहते हैं, लेकिन उसके लिए आपने एडवांस 20 रुपये दिया. बाकी पैसे देने के लिए एक समय तय करते हैं. यानी आपने इस कांट्रैक्ट के तहत 5000 शेयर के लिए 1 लाख रुपये एडवांस दे दिया. आपने जिस भाव यानी 300 रुपये प्रति शेयर पर डील की है, वह स्ट्राइक प्राइस होता है. वहीं जो 20 रुपये एडवांस दिया, वह होता है प्रीमियम. वहीं समय में पूरे पैसे चुकाने की बात हुई है, वह एक्सपायरी डेट कहलाती है.
अब अगर आपकी उम्मीद के मुताबिक शेयर का भाव 500 रुपये तक बढ़ता है, तो आप उसे उस निवेशक से खरीदकर बेच सकते हैं, जिसके साथ कांट्रैक्ट किया है. यहां आपको 300 रुपये देने के बाद भी प्रति शेयर 200 रुपये मुनाफा होगा. लेकिन अगर शेयर में गिरावट आती है तब क्या होगा. ऐसे में आप उसे खरीदने से मना करेंगे और आपने जो एडवांस दिया है, वही आपका नुकसान होगा. फ्यूचर ट्रेडिंग भी इसी तरह से होती है, लेकिन उसमें शेयर में तेजी आए या गिरावट, उसे खरीदना ही होता है. वहां पर आपको ऑप्शन ट्रेडिंग जैसा खरीदने या ना खरीदने का विकल्प नहीं मिलता.
F&O ट्रेडिंग में क्यों होता है नुकसान
फ्यूचर और ऑप्शन ट्रेडिंग में सिर्फ मुनाफा होने की ही नहीं बल्कि बड़ा नुकसान होने की संभावना भी रहती है. इसमें ज्यादातर निवेशक कम समय में ज्यादा कमाइ के चक्क्र में बिना बहुत ज्यादा स्टडी किए ही ट्रेड करते हैं. फ्यूचर एंड ऑप्शन ट्रेडिंग में हर समय भाव में उतार-चढ़ाव होता रहता है, इसलिए सतर्क रहना जरूरी है. मसलन अगर आप कोई एफएंडओ ट्रेड लेते हैं और 15 से 20 मिनट में आपको 10,000 रुपये का प्रॉफिट होता है तो उसे बुक करना समझदारी है. क्योंकि, हो सकता है कि यह मुनाफा फिर से घाटे में बदल जाए.
नियमों को सख्त बनाया जाएगा
सेबी ने सट्टेबाजी आधारित कारोबार पर लगाम लगाने के लिए न्यूनतम कांट्रैक्ट साइज में संशोधन और ऑप्शन प्रीमियम के एडवांस कलेक्शन का प्रावधान कर इंडेक्स डेरिवेटिव के नियमों को कड़ा करने का प्रस्ताव रखा है. इससे पहले, आर्थिक समीक्षा रिपोर्ट 2023-24 में भी डेरिवेटिव खंड में रिटेल निवेशकों के बढ़ते इंटरेस्ट पर चिंता जताई गई थी. वहीं बजट 2024 में डेरिवेटिव सेग्मेंट में रिटेल ट्रेडर्स की अत्यधिक दिलचस्पी से उपजी चिंताओं को दूर करने के लिए 1 अक्टूबर से एफएंडओ सौदों पर सिक्योरिटीज ट्रांजेक्शन टैक्स (एसटीटी) बढ़ाने की घोषणा की गई है.
सेबी के मुताबिक एक विकासशील देश में सट्टा कारोबार की कोई जगह नहीं है. सेबी ने कहा कि इंडेक्स डेरिवेटिव कांट्रैक्ट के लिए मिनिमम कांट्रैक्ट साइज को दो फेज में संशोधित किया जाना चाहिए. पहले चरण के तहत, शुरुआत में डेरिवेटिव कांट्रैक्ट का न्यूनतम मूल्य 15 लाख रुपये से 20 लाख रुपये के बीच होना चाहिए. छह महीने के बाद दूसरे फेज के तहत कांट्रैक्ट का न्यूनतम मूल्य 20 लाख रुपये और 30 लाख रुपये के बीच रखा जाना चाहिए.