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Budget 2024 : वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी 2024 को अंतरिम बजट पेश करेंगी. चुनाव से ठीक पहले पेश किए जाने के कारण इस बजट में लोक-लुभावन योजनाओं पर खर्च बढ़ाए जाने का अनुमान लगाया जा रहा है. (ANI Photo)
Fiscal Deficit in Budget 2024: देश का नया बजट पेश किए जाने में अब ज्यादा वक्त नहीं बचा है. भारत सरकार के सालाना बजट (Union Budget 2024) के आंकड़ों पर शेयर बाजार से लेकर राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं तक सबकी नजरें रहती हैं. अर्थव्यवस्था के हालात और सरकार के फाइनेंशियल मैनेजमेंट यानी वित्तीय प्रबंधन का अनुमान लगाने के लिए बजट के जिन आंकड़ों को सबसे ज्यादा महत्व दिया जाता है, उनमें राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit) भी शामिल है.ऐसे में यह सवाल सबके मन में है कि क्या भारत सरकार इस साल फिस्कल डेफिसिट का अपना टारगेट पूरा करने में सफल हो पाएगी? यह सवाल इसलिए भी उठ रहा है, क्योंकि चुनावी साल में सरकार मुफ्त अनाज योजना को आगे बढ़ाने समेत कई लोक-लुभावन घोषणाएं करती रही है. जिसकी वजह से खर्च के बेकाबू होने की आशंका जाहिर की जाती रही है.
अतिरिक्त खर्च का बढ़ता बोझ
दरअसल, सरकार ने संसद के शीतकालीन सत्र में 1.29 लाख करोड़ रुपये की अनुपूरक मांगें (Supplementary Demands) भी पारित कराई हैं. हालांकि इसमें 58,378.21 करोड़ रुपये की रकम ही नेट कैश व्यय (Net Cash Outgo) है, जबकि बाकी रकम सरकार अपने अलग-अलग विभागों/मंत्रालयों के खर्च में कटौती और आय में बढ़ोतरी के जरिए जुटा रही है. लेकिन आगामी बजट सत्र में कुछ और सेकेंड बैच ऑफ सप्लीमेंट्री डिमांड पेश की जा सकती हैं. जाहिर है इस खर्च का कुछ असर सरकार के फिस्कल डेफिसिट टार्गेट पर भी पड़ेगा. इन बढ़े हुए खर्चों को ध्यान मेंं रखते हुए यह सवाल उठना लाजमी है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) इस बार फिस्कल डेफिसिट के मोर्चे पर अपना घोषित लक्ष्य हासिल करने में कितनी सफल हो पाएंगी?
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राजकोषीय घाटे को 5.9% तक रखने का लक्ष्य
मोदी सरकार ने 1 फरवरी 2023 को पेश पिछले बजट में वित्त वर्ष 2023-24 के लिए फिस्कल डेफिसिट को 17,86,816 करोड़ रुपये यानी जीडीपी के 5.9 फीसदी तक सीमित रखने का लक्ष्य रखा था. आईएमएफ की दिसंबर में पेश एक रिपोर्ट समेत कई ताजा अनुमानों के मुताबिक इस साल राजकोषीय घाटे का असली आंकड़ा जीडीपी के 6 फीसदी तक जा सकता है. इसकी एक वजह यह भी है कि मौजूदा वित्त वर्ष के दौरान देश की नॉमिनल जीडीपी ग्रोथ रेट उम्मीद से कम रही है. सुभाष चंद्र गर्ग का भी कहना है कि सरकार ने पिछले बजट में राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 5.9 प्रतिशत तक सीमित रखने का अनुमान इस उम्मीद पर आधारित था कि 2023-24 में देश की नॉमिनल जीडीपी 301.8 लाख करोड़ रुपये रहेगी. लेकिन 2023-24 के पहले अग्रिम अनुमान (First Advance Estimates) में नॉमिनल जीडीपी 296.6 लाख करोड़ रुपये रहने की बात कही गई है, जिसके हिसाब से फिस्कल डेफिसिट का आंकड़ा जीडीपी के 6 फीसदी के बराबर हो जाता है. नेशनल स्टैटिस्टिकल ऑफिस (NSO) के ताजा अनुमानों के मुताबिक वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान भारत की नॉमिनल जीडीपी ग्रोथ रेट 8.9 फीसदी रहने के आसार हैं, जबकि पिछले बजट में इसके 10.5 फीसदी रहना का अंदाजा लगाया गया था.
वित्त वर्ष 2024-25 के लिए कितना रहेगा टारगेट?
अब तक सामने आए अनुमानों के मुताबिक अगले वित्त वर्ष यानी 2024-25 के लिए सरकार अपने राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 5.3 से 5.5 फीसदी के बीच रखने का लक्ष्य तय कर सकती है. रेटिंग एजेंसी ICRA का अनुमान है कि बजट में अगले वित्त वर्ष (FY25) के लिए फिस्कल डेफिसिट का टार्गेट जीडीपी के 5.3 फीसदी रखा जा सकता है. रॉयटर्स के ताजा पोल में प्रमुख अर्थशास्त्रियों ने ऐसा ही अंदाजा जाहिर किया है. जबकि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के ग्रुप चीफ इकनॉमिक एडवाइजर सौम्य कांति घोष का मानना है कि FY25 में फिस्कल डेफिसिट का टारगेट जीडीपी के 5.5 फीसदी के बराबर हो सकता है. सरकार ने वित्त वर्ष 2025-26 तक फिस्कल डेफिसिट को जीडीपी के 4.5 फीसदी से नीचे लाने का दीर्घकालीन लक्ष्य पिछले बजट में ही घोषित किया था.
चुनावी वादों के कारण बिगड़ सकता है वित्तीय अनुशासन?
इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड (IMF) की दिसंबर 2023 में जारी स्टाफ कंसल्टेशन रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि अंतरराष्ट्रीय हालात भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए चुनौतियां पेश कर रहे हैं. साथ ही घरेलू स्तर पर लोगों को फायदा पहुंचाने के इरादे से सरकारी खर्च में की गई बढ़ोतरी भी राजकोषीय अनुशासन (Fiscal Discipline) को बिगाड़ सकती है. देश के पूर्व वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने हाल ही में कहा है कि सरकार ‘मोदी की गारंटी’ (Modi Ki Guarantee) के नारे के साथ पेश की जा रही लोक लुभावन योजनाओं पर पैसे खर्च करने के लिए राजकोषीय घाटे के लक्ष्य के मामले में ढिलाई बरत सकती है. उनका तो यह भी मानना है कि सरकार आने वाले अंतरिम बजट में किसानों, मजदूरों और मिडिल क्लास समेत मतदाताओं के बड़े हिस्से को आकर्षित करने के लिए कुछ और ‘लोकलुभावन योजनाएं’ भी पेश कर सकती है. जाहिर है, इन योजनाओं पर किया जाने वाला खर्च घाटे के लक्ष्य को भटकाने वाला साबित हो सकता है.