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Organiser on Lok Sabha Elections 2024 Results: क्या इस लोकसभा चुनाव में आरएसएस ने बीजेपी के लिए काम नहीं किया? (Image Shared by Organiser on X)
Organiser on Lok Sabha Elections 2024 Results and BJP: लोकसभा चुनाव के परिणाम सामने आने के बाद से एक सवाल काफी चर्चा में है. सवाल ये कि क्या इस लोकसभा चुनाव में आरएसएस ने बीजेपी के लिए काम नहीं किया? तमाम लोग इस सवाल का जवाब अपने-अपने ढंग से देते हैं. लेकिन इस बारे में खुद आरएसएस का क्या कहना है? इस पर आरएसएस की कोई औपचारिक प्रतिकिया तो सामने नहीं आई है. लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़ी पत्रिका ऑर्गनाइजर में प्रकाशित एक लेख में इस मसले पर खुलकर टिप्पणियां की गई हैं. इसमें कहा गया है कि चुनाव के नतीजे ‘अति आत्मविश्वास’ से भरी बीजेपी का सच से सामना कराने वाले हैं. लेख में यह भी कहा गया है कि बीजेपी के ये नेता और कार्यकर्ता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आभामंडल में डूबे रहे और सड़कों से उठने वाली आम जनता की आवाज को अनदेखा कर दिया. इससे पहले आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने भी हाल में ऐसी कई टिप्पणियां की हैं, जिन्हें आरएसएस और बीजेपी के बीच सबकुछ ठीक नहीं होने का संकेत माना जा रहा है.
RSS स्वयंसेवकों से संपर्क तक नहीं किया गया
‘ऑर्गनाइजर’ के ताजा अंक में प्रकाशित इस लेख के मुताबिक बीजेपी के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने चुनाव से जुड़े कामों में सहयोग मांगने के लिए आरएसएस के स्वयंसेवकों से संपर्क तक नहीं किया. साथ ही उन पुराने समर्पित कार्यकर्ताओं की उपेक्षा की गई जो अब तक बगैर किसी लालसा के काम करते रहे हैं. लेख में कहा गया है, ‘‘2024 के आम चुनाव के परिणाम अति आत्मविश्वास से भरे भाजपा कार्यकर्ताओं और कई नेताओं के लिए सच्चाई का सामना कराने वाले हैं. उन्हें इस बात का एहसास नहीं था कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी का 400 से अधिक सीटों का आह्वान उनके लिए एक लक्ष्य था और विपक्ष के लिए एक चुनौती.’’ आरएसएस के आजीवन सदस्य रतन शारदा ने अपने इस लेख में लिखा है कि सोशल मीडिया पर पोस्टर और सेल्फी साझा करने से नहीं, बल्कि मैदान पर कड़ी मेहनत से लक्ष्य हासिल किए जाते हैं. उन्होंने कहा, ‘‘चूंकि वे अपने आप में मगन थे, मोदीजी के आभामंडल का आनंद ले रहे थे, इसलिए आम आदमी की आवाज नहीं सुन रहे थे.’’
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RSS कोई भाजपा की ‘फील्ड फोर्स’ नहीं
इस सवाल पर कि आरएसएस ने इस चुनाव में भाजपा के लिए काम किया या नहीं, शारदा ने लिखा है, ‘‘मैं स्पष्ट रूप से कहना चाहता हूं कि आरएसएस कोई भाजपा की ‘फील्ड फोर्स’ नहीं है. बीजेपी दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी है और उसके अपने कार्यकर्ता हैं. मतदाताओं तक पहुंचने, पार्टी का एजेंडा समझाने, साहित्य बांटने और वोटर कार्ड बांटने जैसे नियमित चुनावी काम पार्टी की जिम्मेदारी हैं. आरएसएस उन मुद्दों के बारे में लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाता है जो उन्हें और राष्ट्र को प्रभावित करते हैं. 1973-1977 की अवधि को छोड़कर, आरएसएस ने सीधे राजनीति में भाग नहीं लिया.’’
भाजपा के लोग अपने वैचारिक सहयोगियों तक नहीं पहुंचे
संघ विचारक ने लिखा है, ‘‘इस बार भी आधिकारिक तौर पर तय किया गया था कि आरएसएस कार्यकर्ता 10-15 लोगों की स्थानीय, मोहल्ला, कार्यालय स्तर की छोटी-छोटी बैठकें आयोजित करेंगे और लोगों से कर्तव्य के तौर पर मतदान करने का अनुरोध करेंगे. इसमें राष्ट्र निर्माण, राष्ट्रीय एकता और राष्ट्रवादी ताकतों को समर्थन के मुद्दों पर भी चर्चा हुई.’’ उन्होंने लिखा है कि अकेले दिल्ली में इस तरह की 1.20 लाख सभाएं आयोजित की गईं. ‘‘इसके अलावा, चुनाव कार्य में (आरएसएस) स्वयंसेवकों का सहयोग लेने के लिए, भाजपा कार्यकर्ताओं, स्थानीय नेताओं को अपने वैचारिक सहयोगियों तक पहुंचने की आवश्यकता थी. लेकिन क्या उन्होंने ऐसा किया? मेरा मानना है कि उन्होंने ऐसा नहीं किया.’’ लेख में उन्होंने कहा है, ‘‘क्या यह सुस्ती, आराम और अति आत्मविश्वास की भावना थी कि ‘आएगा तो मोदी ही, अबकी बार 400 पार? मुझे नहीं पता…सेल्फी पोस्ट करके दिखावा करना अधिक महत्वपूर्ण हो गया है.. अगर भाजपा के लोग आरएसएस और उसके स्वयंसेवकों के पास नहीं पहुंचे तो उन्हें बताना चाहिए कि उन्हें ऐसा क्यों लगा कि इसकी जरूरत नहीं है?”
बीजेपी को ‘अनावश्यक राजनीति’ से हुआ नुकसान?
आरएसएस विचारक ने अपने लेख में लोकसभा चुनाव में भाजपा के खराब प्रदर्शन के पीछे ‘अनावश्यक राजनीति’ को भी कई कारणों में से एक बताया है. उनका कहना है कि ‘‘महाराष्ट्र अनावश्यक राजनीति और ऐसी जोड़तोड़ का एक प्रमुख उदाहरण है जिससे बचा जा सकता था. अजित पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी भी भाजपा के साथ आ गई, जबकि भाजपा और विभाजित शिवसेना (शिंदे गुट) के पास पहले से ही बहुमत था. शरद पवार दो-तीन साल में फीके पड़ जाते क्योंकि एनसीपी अपने अंदरूनी कलह से ही कमजोर हो जाती..ऐसे में यह गलत कदम क्यों उठाया गया? इससे भाजपा समर्थक आहत हुए, क्योंकि उन्होंने वर्षों तक कांग्रेस की विचारधारा के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी, उन्हें सताया गया था. लेकिन भाजपा ने एक ही झटके में अपनी ब्रांड वैल्यू कम कर दी. महाराष्ट्र में नंबर वन बनने के लिए वर्षों के संघर्ष के बाद आज वह सिर्फ एक और राजनीतिक पार्टी बनकर रह गई है और वह भी बिना किसी अलग पहचान वाली.’’ शारदा ने किसी नेता का नाम लिए बगैर लिखा है कि कांग्रेसियों को भाजपा में शामिल करने से भाजपा की छवि को ‘खराब’ हुई है और इससे आरएसएस से सहानुभूति रखने वालों को भी ‘बहुत चोट’ पहुंची है.
महाराष्ट्र की 48 में सिर्फ 9 सीटें बीजेपी को मिलीं
भाजपा ने इस चुनाव में महाराष्ट्र में खराब प्रदर्शन किया. वह कुल 48 में से केवल 9 सीटें जीत सकी. शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना को सात सीटें और अजित पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी को सिर्फ एक सीट मिली. इनके मुकाबले कांग्रेस ने प्रदेश की 13 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की, जबकि उद्धव ठाकरे की शिवसेना को 9 और शरद पवार की एनसीपी को 8 सीटें मिली हैं. भाजपा लोकसभा चुनाव में 240 सीटों के साथ बहुमत से दूर रह गई. लेकिन उसके नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) को 293 सीटें मिली हैं. कांग्रेस को 99 सीटें और ‘इंडिया’ गठबंधन को 234 सीटें मिली हैं. दो निर्दलीय उम्मीदवारों के कांग्रेस को समर्थन देने के एलान के बाद ‘इंडिया’ गठबंधन के सांसदों की संख्या 236 हो गई है.