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Donald Trump 2.0: अमेरिका के वॉशिंगटन में शपथ ग्रहण के बाद आयोजित एक समारोह में राष्ट्रपति ट्रंप, फर्स्ट लेडी मिलेनिया ट्रंप, उप-राष्ट्रपति जेडी वांस और उनकी पत्नी उषा वांस. (Photo : Reuters)
Trump Order Against Birthright Citizenship: अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में अपना दूसरा कार्यकाल शुरू करते ही डोनाल्ड ट्रंप ने जन्म के आधार पर अमेरिकी नागरिकता दिए जाने के कानून को बदलने का आदेश जारी कर दिया है. इसके लिए उन्होंने राष्ट्रपति के तौर पर एग्जिक्यूटिव ऑर्डर पर दस्तखत भी कर दिए हैं. उनके इस आदेश का अमेरिका में रहने वाले भारतीय लोगों पर काफी असर पड़ सकता है, खास तौर पर ऐसे लोगों पर जो H-1B वीज़ा या ग्रीन कार्ड हासिल करने की प्रॉसेस में हैं. लेकिन उन्हें अब तक ये महत्वपूर्ण दस्तावेज मिले नहीं हैं. ऐसे भारतीयों के बच्चों को अब अमेरिका में जन्म लेने के बावजूद वहां की नागरिकता हासिल करने में पहले से ज्यादा मुश्किल होगी. इसके लिए उन्हें कुछ खास शर्तों को पूरा करना होगा.
राष्ट्रपति ट्रंप का यह नया एग्जिक्यूटिव ऑर्डर भारतीय-अमेरिकी समुदाय के लिए कई नई चुनौतियां लेकर आएगा. इस बदलाव से न केवल बच्चों की नागरिकता प्रक्रिया प्रभावित होगी, बल्कि परिवारों के फिर से एक साथ आने और इमिग्रेशन के दूसरे पहलुओं पर भी इसका असर पड़ेगा. इस बीच ट्रंप के इस ऑर्डर को अमेरिका में कानूनी चुनौती भी दी जा रही है. अब यह अदालतों पर है कि वे इस आदेश को लागू होने देती हैं या इसे असंवैधानिक ठहराती हैं.
जन्म से नागरिकता का क्या है कानून?
अमेरिकी संविधान का 14वां संशोधन जन्म के आधार पर नागरिकता का अधिकार देता है. इसका अर्थ है कि जो भी व्यक्ति अमेरिका की धरती पर जन्म लेता है, उसे नागरिकता मिलती है, चाहे उसके माता-पिता की नागरिकता कुछ भी हो. यह कानून 1868 में लागू हुआ और इसका उद्देश्य पूर्व गुलामों और उनके परिवारों को बराबरी का अधिकार देना था.
ट्रंप का नया एग्जिक्यूटिव ऑर्डर
20 जनवरी, 2025 को राष्ट्रपति ट्रंप ने एक एग्जिक्यूटिव ऑर्डर पर हस्ताक्षर किए, जो जन्म के आधार पर अपने-आप नागरिकता दिए जाने के प्रावधान को खत्म करता है. इस नए आदेश के मुताबिक अमेरिका में जन्म लेने वाले बच्चों को तब तक नागरिकता नहीं मिलेगी, जब तक उनके माता-पिता में से एक अमेरिकी नागरिक, ग्रीन कार्ड धारक, या अमेरिकी सेना का सदस्य न हो. ट्रंप का तर्क है कि यह कदम अवैध प्रवासियों और "बर्थ टूरिज्म" को रोकने के लिए जरूरी है.
भारतीय समुदाय पर क्या होगा असर?
अमेरिका में भारतीय समुदाय तेजी से बढ़ रहा है, और वहां रहने वाले 48 लाख से अधिक भारतीय-अमेरिकी परिवारों में से कई ने इस नागरिकता नीति का लाभ उठाया है. नए नियम से यह लाभ खत्म हो सकता है. अब तक, H-1B वीज़ा या ग्रीन कार्ड हासिल करने की प्रॉसेस में शामिल भारतीय माता-पिता के बच्चे अमेरिकी नागरिक बन जाते थे. लेकिन इस बदलाव के बाद, ऐसे बच्चों को नागरिकता हासिल करने के लिए जटिल प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा. यह बदलाव उन परिवारों के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है जो अपनी संतानों के भविष्य के लिए अमेरिकी नागरिकता पर निर्भर रहते हैं.
ग्रीन कार्ड का इंतजार कर रहे लोगों पर असर
भारतीय समुदाय के कई लोग ग्रीन कार्ड हासिल करने की प्रॉसेस में बरसों से अटके हुए हैं. जन्म से नागरिकता का अधिकार खत्म होने से उनके बच्चों को भी कानूनी रूप से नागरिकता पाने के लिए कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है. यह समस्या खास तौर पर उन परिवारों के लिए गंभीर हो सकती है, जो अस्थायी वीज़ा पर हैं.
फेमिली री-यूनियन पर भी होगा असर
अमेरिका के इमिग्रेशन सिस्टम में फेमिली री-यूनियन यानी परिवार के साथ आने को प्राथमिकता दी जाती है. मौजूदा कानून के तहत, अमेरिकी नागरिक बने बच्चे 21 साल की उम्र के बाद अपने माता-पिता को अमेरिका बुला सकते हैं. नए आदेश के लागू होने पर यह अधिकार खत्म हो जाएगा, जिससे परिवारों के एक साथ आने में बड़ी रुकावट आ सकती है.
"बर्थ टूरिज्म" का क्या है मतलब?
ट्रंप सरकार का कहना है कि उसके आदेश का मकसद "बर्थ टूरिज्म" पर रोक लगाना है, जहां विदेशी महिलाएं खास तौर पर बच्चों के जन्म के लिए अमेरिका आती हैं. हालांकि, यह नियम उन भारतीय परिवारों पर भी असर डालेगा, जो इस नीति का गलत इस्तेमाल नहीं करते हैं और अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए अमेरिका की नागरिकता पाना चाहते हैं.
नए आदेश को कानूनी चुनौती
राष्ट्रपति ट्रंप के नागरिकता कानून में बदलाव करने वाले एग्जीक्यूटिव ऑर्डर को अमेरिका के कई सिविल राइट्स ग्रुप कानूनी चुनौती दे रहे हैं. उनका कहना है कि अमेरिकी संविधान के 14वें संशोधन को केवल एग्जिक्यूटिव ऑर्डर के जरिये बदला नहीं जा सकता. इसलिए, ट्रंप के आदेश को अदालत में चुनौती दी जाएगी. इसके बाद अदालत तय करेगी कि ट्रंप का यह आदेश अमेरिकी संविधान के नजरिये से वैध है या नहीं. लेकिन फिलहाल तो ट्रंप के इस आदेश की वजह से भारतीय समुदाय में बेचैनी बढ़ी हुई है.