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Oxfam की रिपोर्ट में सरकारों को सुझाव दिया है कि वे अमीरों पर ज्यादा टैक्स लगाएं, ताकि गैर-बराबरी को कम किया जा सके. (Image : Oxfam Report)
Oxfam Inequality Report : बीते साल यानी 2024 में दुनिया भर के अरबपतियों की दौलत के बढ़ने की रफ्तार पिछले साल के मुकाबले तीन गुना बढ़ी है. जबकि गरीबों की तादाद में 1990 से अब तक कोई खास कमी नहीं आई है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ती आर्थिक गैर-बराबरी की तरफ ध्यान खींचने वाली यह जानकारी ऑक्सफैम इंटरनेशनल (Oxfam International) की ताजा रिपोर्ट में दी गई है. इस रिपोर्ट में आर्थिक असमानता को कम करने के लिए अमीरों पर ज्यादा टैक्स लगाने का सुझाव भी दिया गया है. रिपोर्ट का शीर्षक 'टेकर्स, नॉट मेकर्स' (Takers Not Makers: The unjust poverty and unearned wealth of colonialism) इशारा करता है कि दुनिया के अधिकांश सुपर-रिच लोगों ने अरबों की दौलत अपनी मेहनत से नहीं, बल्कि मोनोपोली, क्रोनी कनेक्शन या विरासत के जरिये हासिल की है.
ट्रंप के शपथग्रहण और WEF के पहले दिन पेश हुई रिपोर्ट
दरअसल, ऑक्सफैम द्वारा दुनिया में आर्थिक गैर-बराबरी की ताजा स्थिति की तरफ ध्यान खींचने वाली रिपोर्ट हर साल पेश की जाती है. यह रिपोर्ट स्विट्जरलैंड के डावोस में होने वाली वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम (World Economic Forum) की सालाना बैठक शुरू होने वाले दिन ही पेश की जाती है और फोरम में इस पर काफी चर्चा भी होती है. खास बात यह है कि इस साल अमेरिका में डोनॉल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति पद संभालने की तारीख भी वही है.
इकॉनमी पर कुछ लोगों का कब्जा खतरनाक
ऑक्सफैम ने अपनी रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि चंद लोगों की बेहिसाब दौलत आम लोगों को कुचल रही है. इस दौलत का इस्तेमाल अगर सही जगह किया जाए, तो लाखों लोगों को गरीबी से बाहर निकाला जा सकता है. ऑक्सफैम के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर अमिताभ बेहर ने रिपोर्ट जारी किए जाने के मौके पर कहा कि दुनिया की अर्थव्यवस्था पर कुछ खास लोगों का कब्जा खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है. यह पूरी मानवता के लिए एक चेतावनी है. उन्होंने कहा, “कुछ खास विशेषाधिकार प्राप्त लोगों द्वारा हमारी वैश्विक अर्थव्यवस्था पर कब्जा ऐसी ऊंचाई तक पहुंच गया है जिसे पहले कभी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी.…न सिर्फ अरबपतियों की दौलत बढ़ने की रफ्तार तीन गुना तेज हुई है, बल्कि उनकी ताकत भी उतनी ही बढ़ी है,"
ट्रंप का राष्ट्रपति बनना कुलीनतंत्र का चरम : अमिताभ
अमिताभ बेहर ने ट्रंप के अमेरिका का राष्ट्रपति बनने की तरफ इशारा करते हुए कहा, "इस तरह की कुलीनतंत्र (oligarchy) वाली व्यवस्था की ताजा मिसाल तो यह है कि एक ऐसा अबरपति शख्स राष्ट्रपति बनकर दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को चलाने जा रहा है, जिसे दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति एलन मस्क का समर्थन हासिल है. हम इस रिपोर्ट को एक कड़ी चेतावनी के रूप में पेश कर रहे हैं कि दुनिया भर के आम लोग कुछ गिने-चुने लोगों की अपार संपत्ति के बोझ तले कुचले जा रहे हैं."
अंधाधुंध बढ़ी अरबपतियों की दौलत
ऑक्सफैम की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया के अरबपतियों की दौलत 2024 में 2 ट्रिलियन डॉलर बढ़कर 15 ट्रिलियन डॉलर हो गई. यह बढ़ोतरी 2023 की तुलना में तीन गुना तेज़ है. इस साल 204 नए अरबपति बने, यानी हर हफ्ते औसतन चार नये अरबपति जुड़े. अकेले एशिया में 41 नए अरबपति बने, जबकि यहां अरबपतियों की संपत्ति में 299 अरब डॉलर की वृद्धि दर्ज की गई. दुनिया के सबसे अमीर 10 लोगों की संपत्ति 2024 में औसतन हर दिन 100 मिलियन डॉलर की रफ्तार से बढ़ी. अगर वे अपनी 99% संपत्ति भी खो दें, तब भी वे अरबपति रहेंगे.
ऐसे बढ़ रही है गैर-बराबरी की खाई
ऑक्सफैम ने विश्व बैंक के आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि 6.85 डॉलर प्रतिदिन से कम आमदनी पर जिंदगी गुजारने वाले गरीब 1990 से अब तक लोगों की संख्या में कोई खास बदलाव नहीं हुआ है. रिपोर्ट के मुताबिक 2023 के दौरान अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस जैसे ग्लोबल नॉर्थ के देशों में रहने वाले दुनिया के सबसे अमीर 1% लोगों ने ग्लोबल साउथ (Global South) के यानी गरीब और विकासशील देशों से ग्लोबल फाइनेंशियल सिस्टम के जरिये हर घंटे 30 मिलियन डॉलर के बराबर दौलत अपनी तरफ खींच ली. रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि दुनिया की 69% संपत्ति और 77% अरबपतियों की दौलत, ग्लोबल नॉर्थ के पास है, जबकि दुनिया की कुल आबादी का केवल 21% हिस्सा यहां बसता है.
अरबपतियों की 60% दौलत उन्होंने नहीं कमाई
ऑक्सफैम की रिपोर्ट के मुताबिक अरबपतियों की 60% दौलत ऐसी है जो एकाधिकार (monopoly), क्रोनी कनेक्शन्स (crony connections) या विरासत में मिली है. इसमें से 36% दौलत विरासत से मिली है, जबकि 18% मोनोपोली के जरिये और 6% क्रोनी कनेक्शन्स से कमाई गई है. ऑक्सफैम ने रिपोर्ट में बताया कि अमीर देशों के कई उद्योगपति और व्यापारी अपनी वेल्थ का बड़ा हिस्सा उपनिवेशवादी शोषण और ग्लोबल साउथ के धन को हड़प कर जुटाते हैं. उदाहरण के लिए, फ्रांस के अरबपति विंसेंट बॉलोर का साम्राज्य अफ्रीका में उपनिवेशवादी गतिविधियों से हुई कमाई पर आधारित है.
महिलाओं और प्रवासियों को कम मिलता है वेतन
ऑक्सफैम ने अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के आंकड़ों का हवाला देते यह भी हुए बताया है कि ऊंची आय वाले देशों में बाहरी देशों से आए कामगारों (migrant workers) को औसतन 12.6% कम पैसे मिलते हैं. वहीं, प्रवासी महिलाओं (migrant women) और स्थानीय पुरुषों के बीच वेतन का अंतर 20.9% है, जो कि वेतन में जेंडर आधारित अंतर (16.2%) से भी ज्यादा है. महिलाओं को, खासतौर पर अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं को, पुरुषों के मुकाबले ज्यादा असुरक्षित हालात में भी काम करना पड़ता है.
आधुनिक उपनिवेशवाद की ओर इशारा
ऑक्सफैम की रिपोर्ट में आधुनिक उपनिवेशवाद की ओर इशारा करते हुए कहा गया कि ग्लोबल साउथ से अब भी बड़े पैमाने पर दौलत ग्लोबल नॉर्थ के देशों और उनके सबसे अमीर लोगों के पास जा रही है. अगर धन का यह ट्रांसफर न हो, तो इसे शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं और रोजगार पैदा करने जैसी बुनियादी जरूरतों में निवेश किया जा सकता है. अमिताभ बेहर ने कहा कि चंद लोगों की बेहिसाब संपत्ति आम लोगों को कुचल रही है, जो न केवल अर्थव्यवस्था बल्कि मानवता के लिए भी खतरनाक है.
कैसे कम होगी असमानता?
ऑक्सफैम की रिपोर्ट में सरकारों को सुझाव दिया है कि वे अमीरों पर ज्यादा टैक्स लगाएं, ताकि गैर-बराबरी को कम किया जा सके. रिपोर्ट में ये तीन अहम सुझाव दिए गए हैं:
सरकारें अरबपतियों पर भारी टैक्स लगाकर इस धन का उपयोग शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार पैदा करने के लिए कर सकती हैं.
ब्रिटेन और फ्रांस जैसे पूर्व उपनिवेशवादी देशों को अपनी ऐतिहासिक गलतियों के लिए उन देशों को हर्जाना देना चाहिए, जिनका उन्होंने शोषण किया है.
सरकारें वेल्थ के बेहतर और समानता पर आधारित डिस्ट्रीब्यूशन के लिए नीतियां लागू करें.