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राज्य सरकारें आमतौर पर वेतन संशोधन को एक या दो वर्ष की देरी से लागू करती हैं, जिसके कारण वित्तीय प्रभाव भी कुछ समय बाद दिखाई देते हैं. कुछ राज्य अपने वेतन संशोधन के लिए स्वयं की वेतन पुनरीक्षण समिति (Salary Revision Committee) गठित करते हैं.
आठवां केंद्रीय वेतन आयोग (CPC) जल्द ही 47 लाख से अधिक केंद्रीय सरकारी कर्मचारियों और 68 लाख पेंशनभोगियों के लिए वेतन संरचना में संशोधन करने जा रहा है. आयोग के अनुसार, फिटमेंट फैक्टर एक ऐसा गुणक होता है जिसे कर्मचारी के मौजूदा मूल वेतन पर लागू किया जाता है, ताकि नया संशोधित मूल वेतन तय किया जा सके. यह जानकारी के. आर. शन्मुगम ने दी.
वेतन आयोग के उद्देश्य
अब तक आठ स्वतंत्र केंद्रीय वेतन आयोग (CPC) गठित किए जा चुके हैं. ये क्रमशः 1946, 1957, 1970, 1983, 1994, 2006, 2013 और अब 2025 में बनाये गए. इन आयोगों के सामान्य उद्देश्य जीवनयापन की लागत (महंगाई) के अनुरूप वेतन और भत्तों में समायोजन करना, न्यूनतम और अधिकतम वेतन के बीच अंतर को कम करना, वेतन संरचना को सरल बनाना और कार्यकुशलता व प्रदर्शन आधारित प्रोत्साहन (performance-linked incentives) को बढ़ावा देने के लिए संरचनात्मक सुधार करना रहा है.
शुरुआत में न्यूनतम और अधिकतम वेतन का अनुपात 1:40 (₹55 और ₹2,000) था, जो सातवें वेतन आयोग के तहत घटकर 1:14 (₹18,000 और ₹2,50,000) हो गया. इसके साथ ही, पाँचवें वेतन आयोग तक वेतनमानों की संख्या 51 से घटाकर 34 कर दी गई थी ताकि वेतन ढांचा अधिक सरल और पारदर्शी बनाया जा सके.
सातवें और आठवें वेतन आयोग से जुड़ी जानकारी
सातवें केंद्रीय वेतन आयोग (7th Pay Commission) ने ग्रेड पे प्रणाली को समाप्त कर दिया था और उसकी जगह मैट्रिक्स आधारित वेतन प्रणाली (Levels 1 से 18 तक) लागू की थी.
अब आठवां केंद्रीय वेतन आयोग (8th Pay Commission) देश की समग्र आर्थिक स्थिति, वित्तीय अनुशासन (fiscal prudence), संसाधनों की उपलब्धता और अपनी सिफारिशों का राज्यों के वित्त पर पड़ने वाले संभावित प्रभाव का आकलन करेगा. यह आयोग सरकारी क्षेत्र (public sector) और निजी क्षेत्र (private sector) दोनों में वेतन संरचना, भत्तों और कार्य स्थितियों की भी समीक्षा करेगा.
साथ ही, यह आयोग नॉन -कंट्रीब्यूटरी पेंशन सिस्टम के तहत बनने वाले unfunded liabilities का भी मूल्यांकन करेगा खासकर हाल ही में लिए गए उस फैसले के संदर्भ में, जिसमें राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (NPS) से एकीकृत पेंशन योजना (Unified Pension Scheme) में स्थानांतरण को मंजूरी दी गई है, जो 2004 से पहले नियुक्त कर्मचारियों पर लागू होगी.
वेतन संशोधन का कारण
जहाँ वार्षिक वेतन वृद्धि (आमतौर पर मूल वेतन का 3%) कर्मचारियों के अनुभव और वरिष्ठता को पुरस्कृत करती है, वहीं महंगाई भत्ता (Dearness Allowance – DA) और पेंशनभोगियों के लिए महंगाई राहत (Dearness Relief) बढ़ती महंगाई के प्रभाव को संतुलित करने का काम करता है.
लेकिन वेतन आयोग द्वारा किया गया संशोधन केवल वेतन वृद्धि नहीं होता, बल्कि यह पूरी वेतन संरचना का पुनर्गठन (overhaul) होता है. इसमें मूल वेतन को नए सिरे से तय किया जाता है, जिससे भविष्य की वेतन वृद्धि और महंगाई भत्ता तय होते हैं. साथ ही, यह वेतन संरचना, भत्तों और पेंशन प्रणाली के बीच संतुलन स्थापित करता है ताकि कर्मचारियों को बदलती आर्थिक परिस्थितियों के अनुसार उचित पारिश्रमिक मिल सके.
आठवें वेतन आयोग की संभावित सिफारिशें
आठवां केंद्रीय वेतन आयोग (8th CPC) कर्मचारियों के वेतन में सुधार के लिए नया फिटमेंट फैक्टर तय कर सकता है, जो लगभग 2.5 से 3 के बीच हो सकता है. इसका मतलब है कि कर्मचारियों के मौजूदा मूल वेतन को इसी गुणक से बढ़ाया जाएगा. यह निर्णय महंगाई, उत्पादकता और सरकार की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखकर लिया जाएगा.
इस बार आयोग अच्छा काम करने वाले कर्मचारियों को प्रदर्शन के आधार पर अतिरिक्त वेतन (performance-linked pay) देने की व्यवस्था भी शुरू कर सकता है. इसके साथ ही पुरानी पेंशन योजना (OPS) और राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (NPS) से जुड़ी मांगों को मिलाकर एक नई मिश्रित पेंशन व्यवस्था (hybrid या contributory system) बनाई जा सकती है.
आठवां वेतन आयोग यह भी देखेगा कि कर्मचारियों की कौशल, नई तकनीक सीखने और डिजिटल कामकाज की क्षमता के आधार पर वेतन में बढ़ोतरी कैसे दी जाए. इसके अलावा मकान किराया भत्ता (HRA) और यात्रा या स्थानांतरण भत्ता जैसी सुविधाओं को नई लागत दरों और अलग-अलग नौकरी श्रेणियों के अनुसार फिर से तय किया जाएगा. सातवें वेतन आयोग ने सभी के लिए एक समान 2.57 का फिटमेंट फैक्टर लागू किया था.
फिटमेंट फैक्टर को समझना
फिटमेंट फैक्टर एक ऐसा गुणक (multiplier) होता है जो कर्मचारी के पुराने मूल वेतन (basic pay) पर लगाया जाता है ताकि नया संशोधित वेतन (revised pay) तय किया जा सके. इसका उद्देश्य पुराने वेतन ढांचे और नए बढ़े हुए वेतन के बीच के अंतर को संतुलित करना है, ताकि सभी कर्मचारियों के लिए वेतन संशोधन एक समान रहे.
यह गुणक (multiplier) महंगाई, महंगाई भत्ता (DA) के समायोजन, आर्थिक परिस्थितियों और सरकार की वित्तीय क्षमता पर आधारित होता है. आमतौर पर, इस गुणक का 2.25 हिस्सा महंगाई भत्ते के समायोजन (DA neutralisation) के लिए होता है (यह मानते हुए कि वेतन संशोधन के समय DA 125% है).
इस व्यवस्था से यह सुनिश्चित किया जाता है कि जब महंगाई भत्ता (DA) बहुत अधिक स्तर पर पहुँच जाता है, तो उसे मूल वेतन (basic pay) में मिला दिया जाता है, ताकि अगले वेतन चक्र के लिए वेतन संरचना को फिर से संतुलित (reset) किया जा सके. उदाहरण के तौर पर, यदि किसी कर्मचारी का मूल वेतन ₹20,000 है और DA 125% है, तो इसका मतलब है कि DA ₹25,000 बनता है. यानी कुल वेतन ₹45,000 हो जाता है, जो मूल वेतन का 2.25 गुना है. इसका अर्थ यह है कि समय के साथ मूल वेतन की वास्तविक क्रय शक्ति (real value) घट गई है. इसलिए, जब नया वेतन तय किया जाता है, तो इस DA को मूल वेतन में शामिल कर दिया जाता है, और संशोधित वेतन पर DA फिर से शून्य (0%) से शुरू होता है.
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आर्थिक और वित्तीय प्रभाव
वेतन संशोधन के बाद कर्मचारियों की आय बढ़ने से उनके पास खर्च और बचत के लिए अधिक पैसा उपलब्ध हो जाता है. इससे घर-परिवार की नकदी स्थिति (household liquidity) बेहतर होती है, जिससे उपभोग (consumption) और बचत (savings) बढ़ती है. इसका सीधा फायदा आवास, शिक्षा, खुदरा व्यापार (retail) और ऑटोमोबाइल (auto) जैसे क्षेत्रों को मिलता है. हालाँकि, जब लोगों की खर्च करने की क्षमता (disposable income) अचानक बढ़ जाती है, तो इससे कम अवधि के लिए महंगाई (short-term inflation) में वृद्धि हो सकती है. केंद्र सरकार के लिए, ऐसे वेतन संशोधन के बाद वेतन और पेंशन पर होने वाला खर्च आमतौर पर काफी बढ़ जाता है.
सातवें वेतन आयोग (7th CPC) के बाद, वेतन व्यय 2015-16 के ₹55,163 करोड़ से बढ़कर 2016-17 में ₹1,20,002 करोड़ हो गया (जो 2.18 गुना वृद्धि है). पेंशन देनदारियाँ ₹96,771 करोड़ से बढ़कर ₹1,31,401 करोड़ हो गईं (1.36 गुना वृद्धि). महंगाई भत्ता (DA) के भुगतान ₹64,304 करोड़ से घटकर ₹30,245 करोड़ रह गए, क्योंकि इन्हें संशोधित वेतन में मिला दिया गया था.
राज्य सरकारें आमतौर पर वेतन संशोधन को एक या दो वर्ष की देरी से लागू करती हैं, जिसके परिणामस्वरूप वित्तीय प्रभाव भी कुछ समय बाद दिखाई देते हैं. कुछ राज्य अपने स्वयं के वेतन संशोधन समिति (Salary Revision Committee) का गठन करते हैं ताकि वेतन संशोधन से संबंधित निर्णय स्वयं ले सकें. फिर भी, अधिक वेतन से बढ़े हुए कर राजस्व (tax revenues) और व्यापक आर्थिक गतिविधियों (broader economic activity) के माध्यम से वित्तीय दबावों की आंशिक भरपाई (partially offset) हो सकती है.
लेखक मद्रास स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के पूर्व निदेशक और तमिलनाडु सरकार के आर्थिक सलाहकार हैं.
Note: This content has been translated using AI. It has also been reviewed by FE Editors for accuracy.
To read this article in English, click here
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