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India Q2 GDP Growth Weakest in 2 Years: जुलाई-सितंबर तिमाही में देश की जीडीपी ग्रोथ रेट सिर्फ 5.4% रही है. (File Photo : Reuters)
India Q2 GDP Growth Weakest in 2 Years: अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर झटका देने वाली खबर आई है. जुलाई-सितंबर तिमाही में देश की जीडीपी ग्रोथ रेट सिर्फ 5.4% रही है, जो पिछले दो साल में सबसे कम है. राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) के आंकड़ों के अनुसार, इस गिरावट का मुख्य कारण मैन्युफैक्चरिंग और माइनिंग सेक्टर्स का कमजोर प्रदर्शन है. ताजा आंकड़े सामने आने के बाद बड़ा सवाल ये उठ रहा है कि क्या अब रिजर्व बैंक ब्याज दरों में कटौती नहीं करने के अपने रुख पर कायम रहेगा या उसमें कोई बदलाव आएगा?
मैन्युफैक्चरिंग और माइनिंग ने लगाया ब्रेक
NSO के आंकड़ों से पता चलता है कि मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में विकास दर 2.2% तक गिर गई है, जो एक साल पहले 14.3% थी. इसी तरह, माइनिंग और खदान क्षेत्र में 0.01% की गिरावट आई है, जबकि पिछले साल की समान तिमाही के दौरान इसमें 11.1% की ग्रोथ हुई थी. हाउसिंग और रियल एस्टेट जैसे क्षेत्रों ने तुलनात्मक रूप से बेहतर प्रदर्शन किया, लेकिन उनकी वृद्धि भी 6.7% पर सीमित रही. निर्माण क्षेत्र में भी गिरावट देखी गई, जिसमें विकास दर 7.7% रही, जबकि एक साल पहले यह 13.6% थी. विशेषज्ञों का मानना है कि यह गिरावट भारत की शहरी मांग (Urban Demand) में गिरावट और घरेलू खपत (Household Consumption) में कमी के कारण आई है. एमके ग्लोबल की मुख्य अर्थशास्त्री माधवी अरोड़ा कहती हैं, “शहरी क्षेत्रों में आय में कमी का असर खपत पर पड़ा है. बीते 3-6 महीनों में टिकाऊ और गैर-टिकाऊ वस्तुओं की मांग में उल्लेखनीय गिरावट आई है.”
घरेलू और अंतरराष्ट्रीय फैक्टर्स का असर
भारत की आर्थिक वृद्धि पर घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों कारणों का असर पड़ा है. कैपिटल इकोनॉमिक्स के सहायक अर्थशास्त्री हैरी चेम्बर्स का कहना है, “बढ़ी हुई ब्याज दरों के चलते घरेलू खपत में कमी आई है. हालांकि, यह अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से गिरावट में नहीं ले जाएगी, लेकिन निकट भविष्य में विकास दर कमजोर ही रहेगी.” इसके अलावा, मानसून के प्रभाव और कम आय ने ग्रामीण क्षेत्रों में भी खपत को प्रभावित किया है. एचडीएफसी बैंक की प्रमुख अर्थशास्त्री साक्षी गुप्ता के अनुसार, “खपत में गिरावट और बिजली एवं माइनिंग जैसे क्षेत्रों की कमजोर वृद्धि ने इस धीमे विकास में योगदान दिया.” सितंबर तिमाही में कृषि क्षेत्र ने तुलनात्मक रूप से बेहतर प्रदर्शन करते हुए 3.5% की वृद्धि दर्ज की, जो एक साल पहले 1.7% थी. सरकारी खर्च में भी सितंबर से वृद्धि हुई है, जिससे आने वाले महीनों में सुधार की उम्मीद है.
क्वांटेको रिसर्च के अर्थशास्त्री विवेक कुमार का कहना है, “सरकार द्वारा खर्च बढ़ाने और खऱीफ फसल की अच्छी उपज के कारण अगली तिमाही में आर्थिक गतिविधियों में तेजी आ सकती है. हालांकि, दुनिया के पैमाने पर अनिश्चितता के चलते वित्त वर्ष 2024-25 (FY25) के लिए 7% की GDP वृद्धि दर के अनुमान को और नीचे की तरफ संशोधित किया जा सकता है.”
रिजर्व बैंक क्या अब घटाएगा ब्याज दरें?
सितंबर तिमाही के कमजोर प्रदर्शन के बावजूद यही माना जा रहा है कि भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) अपनी मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी (MPC) की दिसंबर में होने वाली मीटिंग में ब्याज दरों में बदलाव नहीं करेगा. सोसाइटी जनरल के अर्थशास्त्री कुणाल कुंडू का मानना है कि “अगर आगामी महीनों में महंगाई दर में कमी आती है, तो फरवरी 2025 तक ब्याज दर में कटौती की संभावना बढ़ सकती है.” कोटक महिंद्रा बैंक की मुख्य अर्थशास्त्री उपासना भारद्वाज का मानना है कि, “हाल के कमजोर GDP आंकड़े और कॉरपोरेट आय में गिरावट के बावजूद, रिजर्व बैंक निकट भविष्य में ब्याज दरों में बदलाव नहीं करेगा.”
कैसी रहेगी आगे की राह
भारत की आर्थिक वृद्धि की रफ्तार धीमी पड़ने का असर निवेश और खपत दोनों पर पड़ा है. हाई इंफ्लेशन, ग्लोबल लेवल पर अनिश्चितता के माहौल और इनकम ग्रोथ के कमजोर रहने की वजह से यह धीमी गति को और तेज कर दिया है. डीबीएस बैंक की सीनियर इकॉनमिस्ट राधिका राव का कहना है, “वर्तमान तिमाही शायद इस साइकल का सबसे निचला बिंदु (Lowest Point) है. लेकिन आने वाले महीनों में इसमें मामूली सुधार की उम्मीद की जा सकती है.” कुल मिलाकर, भारत की GDP ग्रोथ रेट धीमी पड़ने के लिए खपत में गिरावट, माइनिंग और मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र की कमजोरी और अंतरराष्ट्रीय माहौल जैसे कई कारण जिम्मेदार हैं. इन्हें दूर करके अर्थव्यवस्था को फिर से तेज ग्रोथ के रास्ते पर लाना सरकार के लिए बड़ी चुनौती होने वाली है.