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संजय कपूर की वसीयत पर फॉर्जरी के आरोपों का प्रिया कपूर ने खंडन किया Photograph: (Instagram)
Sunjay Kapur inheritance row: दिवंगत उद्योगपति संजय कपूर की वसीयत को लेकर चल रहा विवाद बुधवार को दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court ) में फिर सुर्खियों में रहा. संजय कपूर और करिश्मा कपूर के बच्चों ने अदालत में दावा किया है कि उनके पिता की वसीयत डिजिटल तरीके से फर्जी बनाई गई, ताकि करीब 30,000 करोड़ रुपये की संपत्ति उनकी तीसरी पत्नी के नाम हो जाए. वहीं, प्रिया कपूर के वकीलों ने कहा कि यह मामला कानूनी रूप से सही नहीं है, क्योंकि बच्चों ने अभी तक उस वसीयत को औपचारिक रूप से चुनौती नहीं दी है.
सीनियर एडवोकेट राजीव नायर ने अदालत में दलील दी कि संजय कपूर की वसीयत को लेकर कोई वैध कानूनी चुनौती पेश नहीं की गई है और पूरी याचिका में कानूनी आधार का अभाव है. उन्होंने अपने पक्ष को मजबूत करने के लिए मामले से जुड़ी कई जानकारियों को दोहराया और यह भी कहा कि याचिकाकर्ता पक्ष को वसीयत के बारे में मुकदमा दायर करने से एक महीने पहले से जानकारी थी. हालांकि, इस तर्क पर जस्टिस ज्योति सिंह ने कड़ी आपत्ति जताई. उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने उस समय सिर्फ वसीयत को पढ़कर सुना था, लेकिन उसमें असलियत में क्या लिखा है, इसकी जानकारी उन्हें नहीं थी.
सीनियर एडवोकेट ने कहा, “मैं मानकर चल रहा हूं कि यह वसीयत की वैधता का मामला है. लेकिन अब 45 साल बाद मुझे बताया जा रहा है कि वसीयत को अमान्य करने के चार नए कारण हैं — गलत स्पेलिंग, गलत पता, testator की जगह testatrix लिखना और गवाहों का बहुत नज़दीकी होना. मैं खुद से पूछता हूं, इतने लंबे अनुभव वाले जज के नजरिए से, क्या किसी वसीयत को इन कारणों से अवैध घोषित करने का कोई कानूनी आधार है?”
उन्होंने आगे कहा, “मैं सोचता हूं कि किस प्रक्रिया में हम इस वसीयत को चुनौती दे रहे हैं? यह कोई प्रोबेट कार्यवाही नहीं है. आपने अपनी याचिका में न तो वसीयत के निष्पादन (execution) को चुनौती दी है और न ही उसकी वैधता पर सवाल उठाया है. वसीयत को रद्द कराने की कोई मांग भी याचिका में नहीं की गई है.”
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प्रिया कपूर एक बैंकर हैं
नायर ने जोर देकर कहा, “प्रिया कपूर एक बैंकर हैं. मैंने कभी ऐसी वसीयत नहीं देखी जिसे सिर्फ स्पेलिंग की गलती के कारण अमान्य किया गया हो. छोटी मोटी गलतियां वसीयत को रद्द नहीं कर सकतीं, अगर वह सही तरीके से बनाई गई हो. वसीयत को चुनौती देने का एकमात्र आधार यह है की मृतक मानसिक रूप से स्वस्थ न हो, उस पर कोई दबाव हो या वह वसीयत को निष्पादित करने में असमर्थ हो और वसीयत दो गवाहों की उपस्थिति में बनाई गई थी या नहीं.”
उन्होंने आगे कहा, “फॉर्जरी पूरी तरह से होनी चाहिए, उसमें कोई गलती नहीं रहनी चाहिए. और यह महिला (प्रिया कपूर) कोई गृहिणी (housewife) नहीं हैं; वह एक इन्वेस्टमेंट बैंकर हैं. क्या वह अपने बेटे का नाम गलत लिख सकती हैं? वसीयत का मूल्यांकन इस बात से नहीं किया जाता कि वह किसके पास रही या कब सामने आई, बल्कि यह देखा जाता है कि उसमें असली हस्ताक्षर हैं और सही गवाही है या नहीं. …यह मामला पत्नी बनाम पत्नी का है — जाहिर है, मौजूदा पत्नी को तरजीह दी जाएगी, न कि अलग रह रही पत्नी को.”
एनडीटीवी की एक रिपोर्ट में वकील ने कहा, “वे बार-बार यही कहते रहते हैं कि ‘संजय ऐसा नहीं करते’, ‘वह छुट्टी पर थे’ या ‘वह अपने बच्चों को बेदखल (disinherit) नहीं कर सकते थे’. लेकिन मैं बताता हूं कि उन्होंने करिश्मा के बच्चों को बेदखल क्यों किया. वजह यह है कि उनके लिए ट्रस्ट में पर्याप्त व्यवस्था की गई थी. जब उन्होंने ट्रस्ट से शेयर लिए, तब उन्होंने रानी कपूर (संजय कपूर की मां, जिन्होंने भी प्रिया कपूर पर पूरी संपत्ति पर कब्जा करने का आरोप लगाया है) के लिए **एक भी आंसू नहीं बहाया.”
Note: This content has been translated using AI. It has also been reviewed by FE Editors for accuracy.
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