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CAA को लागू करने की केंद्र सरकार की पहल के खिलाफ शुक्रवार को असम के गुवाहाटी में ऑल असम स्टूडेंट यूनियन समेत कई संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किया. (PTI Photo)
SC to hear pleas for stay on CAA Rules: सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता संशोधन कानून (CAA) पर अमल के लिए लागू किए गए नए नियमों पर रोक लगाने की मांग करने वाली याचिकाओं को सुनवाई के लिए मंजूर कर लिया है. सुप्रीम कोर्ट इन याचिकाओं पर 19 मार्च को सुनवाई करेगा. चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस जे बी पारदीवालाऔर जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल की तरफ से शुक्रवार को पेश अर्जी पर विचार करते हुए यह आदेश दिया. इन याचिकाओं में मांग की गई है कि जब तक उच्चतम न्यायालय संशोधित नागरिकता कानून, 2019 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर कोई अंतिम फैसला नहीं सुना देता, इस कानून के तहत नियमों कों लागू करके शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देने का सिलसिला शुरू करना सही नहीं होगा. लिहाजा इन याचिकाओं में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से केंद्र सरकार को सीएए पर अमल रोकने का आदेश देने की मांग की गई है.
नागरिकता देने के बाद वापस लेना मुश्किल होगा : सिब्बल
वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल (Kapil Sibal) ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी दलील पेश करते हुए कहा कि नए नागरिकता कानून के तहत किसी को एक बार भारतीय नागरिकता दे दिए जाने के बाद इसे वापस लेना मुश्किल होगा. ऐसे में इस मामले की सुनवाई जल्द की जानी चाहिए. सिब्बल ने अदालत से कहा, “सीएए को 2019 में पारित किया गया था. लेकिन उस समय कोई नियम नहीं बने थे और इसीलिए अदालत की तरफ से इस कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं पर कोई स्टे नहीं दिया गया था... लेकिन अब सरकार ने लोकसभा चुनाव से पहले नियमों को अधिसूचित कर दिया है. ऐसे में अगर किसी को सीएए के तहत नागरिकता दे दी गई तो उसे वापस लेना संभव नहीं होगा. लिहाजा अंतरिम अर्जी पर सुनवाई की जा सकती है.’’
याचिकाकर्ताओं को सवाल उठाने का अधिकार नहीं : सरकार
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र सरकार की तरफ से दलील पेश करते हुए याचिकाएं दायर करने वालों के अधिकार क्षेत्र पर सवाल उठाया. उन्होंने कहा, ‘‘किसी भी याचिकाकर्ता के पास नागरिकता प्रदान करने पर सवाल उठाने का कोई अधिकार नहीं है.’’ मेहता ने कहा कि सीएए के खिलाफ कुल 237 याचिकाएं पेंडिंग हैं, जिनमें से चार में अंतरिम आवेदन दायर करके नियमों पर अमल रोकने अनुरोध किया गया है. इस पर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने कहा कि अदालत मंगलवार को इस मामले की सुनवाई करेगी. उन्होंने कहा कि अदालत में 190 से अधिक मामले हैं. उन सभी पर सुनवाई की जाएगी. सीजेआई ने कहा, “हम अंतरिम याचिकाओं के पूरे बैच की सुनवाई करेंगे.’’
मुस्लिमों को भी आवेदन करने दिया जाए : याचिका
केरल के राजनीतिक दल आईयूएमएल, डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया और दो अन्य याचिकाकर्ताओं ने संशोधित नागरिकता अधिनियम 2019 पारित होने के 4 साल बाद उसे लागू करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा नियमों की अधिसूचना जारी किए जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट में अंतरिम याचिका दायर की है. इस कानून में पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आए गैर-मुस्लिम लोगों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान है, जबकि सीएए के तहत मुस्लिम लोग भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन नहीं कर सकते हैं. आईयूएमएल द्वारा दायर आवेदन में अदालत से यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया है कि याचिकाओं पर फैसला आने तक मुस्लिम समुदाय के लोगों के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई न की जाए. साथ ही यह भी आग्रह किया गया है कि सुप्रीम कोर्ट की तरफ से केंद्र को निर्देश दिया जाए कि मुस्लिम समुदाय के लोगों को भी नागरिकता के लिए आवेदन करने की अस्थायी अनुमति दी जाए और उनकी पात्रता पर एक रिपोर्ट पेश की जाए.
CAA असंवैधानिक घोषित हो गया तो क्या होगा?
याचिका में कहा गया है कि सीएए के प्रावधानों को चुनौती देने वाली लगभग 250 याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं. इसमें कहा गया, ऐसे में देश की सबसे बड़ी अदालत ने अगर आखिरकार सीएए को असंवैधानिक घोषित कर दिया, तो जिन लोगों को विवादित कानून और नियमों के तहत नागरिकता मिली होगी, उनकी नागरिकता छीननी पड़ेगी, जिससे एक मुश्किल स्थिति पैदा हो जाएगी. इसलिए यह सबके हित में है कि सीएए और उससे संबंधित नियमों पर अमल को तब तक के लिए स्थगित कर दिया जाए जब तक कि अदालत इस मामले में अंतिम निर्णय नहीं सुना देती.’’
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सुप्रीम कोर्ट के फैसले तक इंतजार करने में हर्ज नहीं
याचिका में कहा गया है कि केंद्र सरकार ने खुद ही सीएए कानून को करीब साढ़े चार साल तक लागू करना जरूरी नहीं समझा. इसलिए अगर इस अदालत के अंतिम फैसले तक इंतजार कर लिया जाए, तो इससे किसी के अधिकार या हित पर कोई असर नहीं पड़ेगा. आईयूएमएल ने अपनी याचिका में यह भी कहा है कि वह माइग्रेंट्स को नागरिकता देने के खिलाफ नहीं है. लेकिन यह एक ऐसा कानून है जो एक धर्म के बहिष्कार पर आधारित है. धर्म के आधार पर भेदभाव करने की वजह से यह कानून संविधान में निहित धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा पर हमला करता है.’’