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ELSS Investment : ईएलएसएस को सिर्फ लॉक इन पीरियड देखकर बेचने का फैसला सही स्ट्रैटेजी नहीं हो सकती है. (Pixabay)
Tax Saver Mutual Fund With Lock In Period : अगर टैक्स सेवर म्यूचुअल फंड यानी इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम (ELSS) में निवेश करना चाहते हैं, तो पहले कुछ बातों को समझ लेना आपके लिए जरूरी है. ELSS यानी इक्विटी लिंक्ड सेविंग्स स्कीम टैक्स बचाने वाली म्यूचुअल फंड स्कीम (Tax Saving Scheme) है, जो लंबी अवधि के निवेश को बढ़ावा देती है. एक वित्त वर्ष में इन योजनाओं में आप 1.5 लाख रु तक निवेश पर इनकम टैक्स एक्ट सेक्शन 80 सी के तहत टैक्स छूट का लाभ उठा सकते हैं. हालांकि ईएलएसएस में निवेश की कोई लिमिट नहीं है. ELSS में टैक्स बचत के लिए दूसरे परंपरागत निवेश के साधनों मसलन FD, NSC, KVP के मुकाबले बेहतर रिटर्न भी मिल रहा है. पिछले 5 साल की तुलना करें तो ELSS स्कीम में औसत रिटर्न 15 से 18 फीसदी रहा है.
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आम तौर पर टैक्स सेविंग की दूसरी स्कीम की तरह ELSS में भी लॉक इन पीरियड (ELSS Lock In Period) होता है, जिसके अंदर आप इसे बेच नहीं सकते हैं. इसमें कम से कम लॉक इन पीरियड 3 साल का होता है. वहीं कई फंड 5 साल का लॉक इन रखते ​हैं. बहुत से लोगों के मन में सवाल उठता होगा कि क्या लॉक इन पीरियड के बाद इसे बेच देना चाहिए. ऐसे में अगर इसका लंबी अवधि का रिटर्न देखें तो आप खुद फैसला कर सकते हैं.
ELSS में क्यों लॉक इन पीरियड
निवेशकों को ईएलएसएस फंड, टैक्स-सेविंग फिक्स्ड डिपॉजिट, क्लोज-एंडेड म्यूचुअल फंड, हेज फंड, पीपीएफ आदि जैसे फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट के साथ लॉक-इन अवधि का सामना करना पड़ता है. इस अवधि के दौरान, आप अपने इन्वेस्टमेंट को लिक्विडेट या बेचने में असमर्थ हैं. फिर भी, लॉक-इन अवधि समाप्त होने के बाद, आप अपने इन्वेस्टमेंट को बेच सकते हैं. लॉक-इन अवधि आमतौर पर म्यूचुअल फंड, विशेष रूप से क्लोज-एंडेड फंड से जुड़ी होती है, जो 3 से 5 साल की लॉक-इन अवधि को अनिवार्य करती है. ये फंड इन्वेस्टमेंट की एंट्री और एक्जिट दोनों पर लिमिटेशन लगाते हैं, जिससे इन्वेस्टर को संभावित हाई रिटर्न के साथ शॉर्ट-टर्म लाभ प्राप्त करने से रोका जा सकता है.
लॉक इन पीरियड के बाद बेचना जरूरी है?
एक्सपर्ट का कहना है कि अगर सिर्फ लॉकइन पीरियड देखकर यूनिट बेचने का फैसला करते हैं तो यह सही नहीं है. अगर ELSS बेहतर प्रदर्शन कर रहा है तो उसमें निवेश बनाए रखना चाहिए. कब बेचना है यह मेच्योरिटी पीरियड नहीं, बल्कि अपने निवेश के लक्ष्य के आधार पर तय करना चाहिए. बाजार में ऐसे कई कई म्यूचुअल फंड हैं, जिनका लंबी अवधि में रिटर्न बेहद शानदार रहा है. हो सकता है कि 3 साल या 5 साल के लॉक इन तक इनमें रिटर्न कम हो, वहीं 10 साल से 15 साल में रिटर्न बहुत ज्यादा.
असल में इन फंडों में लॉक इन पीरियड होता है लेकिन खासियत यह है कि उसके बाद भी इसमें निवेश जारी रख सकते हैं. 3 साल या 5 साल के लॉक इन पीरियड वाली स्कीम को भी लंबे समय तक होल्ड किया जा सकता है. लंबी अवधि में रखने से रिटर्न बढ़ने की गुजाइश बढ़ जाती है. लॉक इन पीरियड होने का फायदा है, इसे निवेशक लंबी अवधि तक होल्ड करते हैं, जिससे रिटर्न बढ़ने की गुंजाइश भी बढ़ जाती है.
80% एक्सपोजर इक्विटी में
ईएलएसएस में निवेश की बात करें तो इसमें से कम से कम 80 फीसदी एक्सपोजर इक्विटी में होना चाहिए. यह टेक्निकली 100 फीसदी तक हो सकता है. ईएलएसएस में सभी मार्केट कैप में निवेश करने की फ्लेक्सिबिलिटी भी है. जो इसे इक्विटी फंड्स के बीच एक यूनिक प्रोडक्ट बनाता है.
SIP से भी कर सकते हैं निवेश
म्यूचुअल फंड में सिस्टेमैटिक इनवेस्टमेंट प्लान (एसआईपी) के माध्यम से निवेश को सुविधाजनक बनाया गया है. टैक्स सेविंग्स के लिए 1.5 लाख की बात करें तो इसमें प्रति माह 12,500 रुपए के साथ सालभर निवेश किया जा सकता है. हालांकि, प्रत्येक एसआईपी किस्त के लिए लॉक-इन अवधि अलग-अलग होती है.
(डिस्क्लेमर: म्यूचुअल फंड में निवेश बाजार के जोखिमों के अधीन है. फाइनेंशियल एक्सप्रेस हिंदी ऑनलाइन किसी भी तरह के निवेश की सलाह नहीं देता है. किसी भी निवेश से पहले अपने स्तर पर पड़ताल कर लें या अपने वित्तीय सलाहकार से अवश्य परामर्श कर लें.)