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SIP King : इस टैक्स सेवर फंड में अगर किसी ने शुरू से 3000 रुपये की एसर्आपी की होगी तो उसकी वैल्यू अब 3 करोड़ रुपये के करीब है. (Pixabay)
SIP Return Calculator : म्यूचुअल फंड टैक्स सेवर कैटेगरी में टाटा ईएलएसएस टैक्स सेवर फंड साफ तौर पर विनर साबित हुआ है. ओपन-एंडेड इक्विटी लिंक्ड टैक्स सेविंग स्कीम (ELSS) कैटेगरी में आने वाले इस फंड के रेगुलर प्लान ने 31 मार्च 2025 को अपने 29 साल पूरे कर लिए हैं. टाटा म्यूचुअल फंड (Tata Mutual Fund) की ये स्कीम 31 मार्च 1996 को शुरू की गई थी. वैल्यू रिसर्च के अनुसार इस फंड ने लॉन्च के बाद से लम्स सम निवेश पर 18.19 फीसदी एनुअलाइज्ड रिटर्न दिया है. जबकि एसआईपी करने वालों को 29 साल में 18 फीसदी सालाना के आस पस रिटर्न मिला है.
इस फंड (tax saver fund) का एयूएम (AUM) 30 अप्रैल 2025 तक 4,405 करोड़ रुपये है. जबकि रेगुलर प्लान का एक्सपेंस रेश्यो 1.84 फीसदी. स्टैंडर्ड डेविएशन 14.81 है तो शॉर्प रेश्यो 0.41 फीसदी है. इस फंड में 3 साल का लॉक इन पीरियड है. वहीं यह इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 80सी के तहत टैक्स बेनेफिट भी देता है. इसके लिए बेंचमार्क Nifty 500 TRI है. इस फंड को वैल्यू रिसर्च पर 2 स्टार रेटिंग मिली है.
SIP Calculator : फंड का एसआईपी प्रदर्शन
29 साल में SIP रिटर्न : 18.27% सालाना
अफ्रंट इन्वेस्टमेंट : 20,000 रुपये
मंथली SIP अमाउंट : 3000 रुपये
कुल निवेश : 10,64,000 रुपये
29 साल बाद SIP की वैल्यू : 2,99,49,345 रुपये
फंड का लम्स सम प्रदर्शन
स्कीम लॉन्च डेट : 31 मार्च 1996
लॉन्च के बाद से रिटर्न : 18.19% सालाना
वन टाइम इन्वेस्टमेंट : 1,00,000 रुपये
29 साल बाद निवेश की वैल्यू : 1,29,82,649 रुपये (1.3 करोड़)
कुल फायदा : 1,28,82,649 रुपये (1.28 करोड़)
फंड की इन्वेस्टमेंट स्ट्रैटेजी : निवेश में किन बातों का ध्यान
फंड मैनेजर द्वारा बनाए गए पोर्टफोलियो को दो मुख्य वर्गों में बांटा जा सकता है:
कंपाउंडर्स (Compounders)
ये वे बिजनेस हैं, जिनके पास लॉन्ग टर्म ग्रोथ की अच्छी संभावनाएं हैं.
इन कंपनियों का अपने प्रोडक्ट कैटेगरी में मार्केट लीडरशिप हो सकती है, चाहे वह वॉल्यूम, रेवेन्यू, प्रति यूनिट लागत या लाभ या रिटर्न ऑन कैपिटल (ROC) के आधार पर हो.
ये कंपनियां मुनाफा कमाने में निरंतरता दिखाती हैं और इनके पास कुशल प्रबंधन टीम और समझदारी से कैपिटल एलोकेशन पॉलिसी हैं.
री-रेटिंग अवसर (Re-Rating Opportunities)
ये ऐसे बिजनेस हैं, जिन्हें बाजार अलग अलग कारणों से कम आंक रहा होता है.
इनमें चक्रीय बिजनेस शामिल हो सकते हैं, जिन्हें बाजार डाउनसाइकिल में मानता है, लेकिन उनमें सुधार के संकेत होते हैं.
ये वे कंपनियां हो सकती हैं, जो मैनेजमेंट या पॉलिसी में बदलाव के कारण परिवर्तन के दौर से गुजर रही हों.
निवेश के अवसर तब भी आ सकते हैं जब किसी उद्योग स्तर पर एकीकरण या मांग और आपूर्ति के बदलते समीकरण के कारण बदलाव होता है.
ऐसे मामलों में, बाजार इन कंपनियों की वैल्यूएशन को री-रेट कर सकता है और अपने कम आकलन को सुधार सकता है.
कैसे तय होता है पोर्टफोलियो
गो एनीवेयर (Go Anywhere) : यह एक डाइवर्सिफाइड पोर्टफोलियो है, जो अलग अलग मार्केट कैप (लार्ज, मिड, स्मॉल कैप) में बदलाव कर सकता है.
बॉटम-अप अप्रोच (Bottom-Up) : स्टॉक का चयन बिजनेस के फंडामेंटल और उचित मूल्यांकन के आधार पर किया जाता है.
लो चर्न (Low Churn) : यह पोर्टफोलियो कम बदलाव वाला है, जिससे निवेशकों को कंपाउंडिंग का लाभ उठाने और अपनी दौलत बढ़ाने का मौका मिलता है.
दोहरा बेनिफिट (Dual Benefit) : लंबे समय में कैपिटल में ग्रोथ और टैक्स बचाने का लाभ मिलता है.
(नोट : हमने यहां म्यूचुअल फंड स्कीम के प्रदर्शन के आधार पर जानकारी दी है. किसी भी स्कीम का पुराना प्रदर्शन आगे भी जारी रहे, इस बात की कोई गारंटी नहीं है. यह आर्टिकल सिर्फ जानकारी के लिए है और यह किसी भी तरह से निवेश की सलाह नहीं है. बाजार में जोखिम होते हैं, इसलिए निवेश के पहले फाइनेंशियल एडवाइजर से सलाह लें.)