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Gold: सोने की कीमतें रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गई हैं, क्योंकि केंद्रीय बैंक यूरो और अमेरिकी ट्रेज़री से हटकर अब अपने भंडार में सोना शामिल कर रहे हैं(Image: Reuters)
Gold vs US Treasury vs Euro: सोना की बादशाह फिर से उभर रही है. दशकों बाद दुनिया भर के वित्तीय बाजारों में इसकी ताकत साफ दिख रही है. साल 2022 के अंत से शुरू हुई इसकी रैली ने यूरो और अमेरिकी ट्रेजरी दोनों को पछाड़ दिया है. सवाल है यह कैसे हुआ?
केंद्रीय बैंकों के विदेशी मुद्रा भंडार में अब सोने की हिस्सेदारी 20% तक पहुंच गई है, जो यूरो से ज्यादा है, जबकि डॉलर 46% पर है लेकिन धीरे-धीरे उसकी पकड़ ढीली हो रही है. इतना ही नहीं, 1996 के बाद पहली बार ऐसा हुआ है कि सेंट्रल बैंकों के पास अमेरिकी ट्रेजरी से ज्यादा सोना है.
इसका असर दो बातें साफ करता है. पहला डॉलर की पकड़ ढीली हो रही है और दूसरा सेंट्रल बैंक सोने पर पहले से कहीं ज्यादा भरोसा जता रहे हैं. अगर यही ट्रेंड जारी रहा तो सोने की कीमतें आने वाले समय में और ऊंचाई छू सकती हैं.
सोने की कीमत, आज और कल
अभी एक औंस गोल्ड लगभग 3,592 यूएस डॉलर पर ट्रेड कर रहा है. यह अबतक का रिकॉर्ड हाई है. पिछले 24 महीनों में सोने ने अपनी कीमत दोगुनी कर ली है. और सिर्फ इस साल ही यह 36% चढ़ चुका है.
गोल्डमैन सैक्स की रिपोर्ट बताती है कि अगर अमेरिका के प्राइवेट ट्रेजरी मार्केट का सिर्फ 1% पैसा भी सोने में आ जाए, तो सोने की कीमत 5,000 डॉलर प्रति औंस तक पहुंच सकती है. यानी मौजूदा स्तर से और 43% उछाल.
भारतीय निवेशकों के लिए भी तस्वीर चमकदार है. आज भारत में सोना 1,07,920 रुपये प्रति 10 ग्राम पर है, जो अब तक का रिकॉर्ड हाई है. आईसीआईसीआई बैंक का अनुमान है कि 2026 की पहली छमाही तक यह 1,25,000 रुपये तक जा सकता है.
सोने पर बढ़ रहा भरोसा, लगातार फिसल रहा डॉलर का दबदबा
केंद्रीय बैंक लगातार बड़े पैमाने पर सोना खरीद रहे हैं. 2022, 2023 और 2024, तीनों सालों में उन्होंने हर साल 1,000 टन से ज्यादा सोना खरीदा. जबकि इससे पहले औसतन सिर्फ 500 टन खरीदा जाता था. तो सवाल उठता है कि डॉलर और अमेरिकी ट्रेजरी बॉन्ड छोड़कर लोग सोने पर क्यों भरोसा कर रहे हैं? जवाब है - ट्रस्ट.
आज वित्तीय संस्थाओं पर भरोसा कम होता जा रहा है और डॉलर सबसे ज्यादा दबाव में है. सिर्फ इस साल डॉलर लगभग 10% गिर चुका है. IMF भी मानता है कि अमेरिकी कर्ज बढ़ने और फेडरल रिजर्व की स्वतंत्रता पर उठते सवालों के कारण डॉलर की पकड़ ढीली हो रही है.
यूरोपैक के चीफ इकोनॉमिस्ट पीटर शिफ का भी कहना है कि अगर अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट फेड की स्वतंत्रता को चुनौती देता है, तो इसका असर सोने और बॉन्ड की यील्ड पर सीधा पड़ेगा. यानी दुनियाभर के लोग कागजी करेंसी (fiat currency) से भरोसा खो रहे हैं और सोना एक सुरक्षित ठिकाना बनकर उभर रहा है.
आगे का रास्ता
अमेरिकी जॉब मार्केट तेजी से कमजोर हो रहा है और अमेरिकी फेडरल रिजर्व जल्द ही ब्याज दरें घटा सकता है, जिससे सोने की कीमतें और बढ़ सकती हैं. साथ ही, अगर टैरिफ बेस्ड ट्रेड वार बढ़ती है तो डॉलर का व्यापारिक दबदबा खतरे में पड़ सकता है, जिससे दुनिया में डि-डॉलराइजेशन होगा और सोना महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. ऐसे वक्त में निवेशकों को धैर्य रखना चाहिए और सोने की बुल-रैली जारी रहने तक इसका फायदा उठाना चाहिए.
Note: This content has been translated using AI. It has also been reviewed for accuracy.
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