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बफेट मानते हैं कि सोना खरीदने की वजह आमतौर पर डर होता है, जैसे मुद्रा के ध्वस्त होने की आशंका, डॉलर की कमजोरी या भू-राजनीतिक अस्थिरता, न कि उत्पादक वृद्धि की संभावना. Photograph: (Bloomberg)
निवेश की दुनिया में वॉरेन बफेट का राज चलता है. शेयर चुनने की उनकी समझ और अनुभव ने उन्हें शेयर बाजार का बेताज बादशाह बना दिया है.
अब उनकी नेटवर्थ कितनी है? करीब 140 अरब डॉलर, यानी लगभग 12 लाख करोड़ रुपये.
रक़म सुनकर दिमाग घूम जाए, लेकिन मज़ेदार बात यह है कि उनके पास जरा सा भी सोना नहीं है.
सोने में निवेश करने की बात आए, तो वॉरेन बफेट उससे पूरी तरह दूरी बनाए रखते हैं. उनकी गोल्ड में बिल्कुल भी इन्वेस्टमेंट नहीं है. उनका गोल्डन रूल है कि सोने जैसे एसेट में पैसा नहीं लगाना.
सालों से वे कहते आए हैं कि सोना उनकी वैल्यू इन्वेस्टिंग स्ट्रैटेजी के हिसाब से सही नहीं बैठता. गोल्ड में उनका एकमात्र निवेश बैरिक गोल्ड नाम की गोल्ड माइनिंग कंपनी में था, जिसे उन्होंने सिर्फ छह महीने में बेच दिया. संभव है कि यह निवेश बफेट के किसी इन-हाउस मनी मैनेजर ने किया हो.
वॉरेन बफेट के पास गोल्ड में कोई निवेश क्यों नहीं है
वॉरेन बफेट सोने को नॉन-प्रोडक्टिव यानी कमाई न करने वाला एसेट मानते हैं. 2011 में उन्होंने अपने शेयरहोल्डर्स से कहा था कि सोने की दो बड़ी कमियां हैं, पहला यह कि इसका खास उपयोग नहीं है और दूसरा यह कि यह किसी तरह की आय पैदा नहीं करता.
बफेट मानते हैं कि सोने का कुछ इस्तेमाल उद्योगों में और गहनों के रूप में होता है, लेकिन इसके अलावा निवेश के तौर पर यह ज्यादा फायदेमंद नहीं है. उनके अनुसार खेती की जमीन या कोई बिजनेस जैसे प्रोडक्टिव एसेट लंबे समय में बेहतर रिटर्न देते हैं, जबकि सोना जैसे निष्क्रिय एसेट उतना लाभ नहीं देते.
2011 में जब उन्होंने यह बात कही, तब सोने का भाव 1,750 डॉलर प्रति औंस था. आज यह करीब 3,350 डॉलर तक पहुंच चुका है, यानी 14 साल में कीमत दोगुनी हो गई. लेकिन कंपाउंड एनुअल ग्रोथ रेट (CAGR) के हिसाब से यह सिर्फ 5 प्रतिशत सालाना रिटर्न है. इसी दौरान अमेरिकी शेयर मार्केट ने औसतन 14 प्रतिशत सालाना रिटर्न दिया है. इस लिहाज से बफेट का नजरिया सही माना जा सकता है.
गोल्ड निवेशकों को भी मुनाफा मिला है, लेकिन इसका कारण यह है कि इतिहास में सोना लंबे समय तक स्थिर रहता है और फिर अचानक तेजी पकड़ता है. 2011 से 2020 के बीच सोने की कीमतें गिरीं और 2020 में जाकर फिर 1,750 डॉलर के स्तर पर पहुंचीं. असली उछाल इसके बाद आया, जब पिछले पांच साल में सोने की कीमत 90 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ी.
बफेट का कहना है कि सोना नई प्रोडक्शन को खींच नहीं पाता. अगर आपके पास एक औंस सोना है, तो चाहे आप उसे सदियों तक रखें, वह एक औंस ही रहेगा. 2009 में, जब सोने की कीमत 1,000 डॉलर थी, उनसे पूछा गया कि पांच साल बाद इसका भाव कहां होगा, तो उन्होंने कहा था कि यह कुछ नहीं करेगा, बस आपको देखता रहेगा. सच में, 1,800 डॉलर तक पहुंचने के बाद 2014 में सोना फिर 1,000 डॉलर पर आ गया और निवेशकों को पांच साल तक बिना रिटर्न के बैठना पड़ा.
सोना और डर
वॉरेन बफेट का मशहूर निवेश मंत्र है कि जब बाकी लोग लालची हों तो आपको डरना चाहिए, और जब बाकी लोग डर रहे हों तो आपको लालची होना चाहिए. सोने के मामले में भी बफेट मानते हैं कि इसकी कीमत में उतार-चढ़ाव का बड़ा कारण डर होता है.
बफेट के अनुसार लोग डर की वजह से सोना खरीदते हैं, और इसकी कीमत इस उम्मीद पर टिकी रहती है कि यह डर झेलने वाला निवेशकों का समूह आगे और बढ़ेगा.
जब सोने की कीमत बढ़ने लगती है, तो खरीदारी का जोश भी बढ़ जाता है. नए निवेशक इसमें जुड़ते हैं और कीमत बढ़ने को सही निवेश का संकेत मानते हैं. इससे कुछ समय के लिए ‘भीड़ के साथ चलने वाले’ निवेशक तैयार हो जाते हैं.
हाल के समय में सोने में डर के कारण की गई खरीदारी के कई उदाहरण हैं. बफेट मानते हैं कि जब लोगों को अपनी मुद्रा (करेंसी) के गिरने का डर होता है, तो वे सोने जैसे निष्क्रिय एसेट की ओर रुख करते हैं.
आज डॉलर की दुनिया की रिजर्व करेंसी के रूप में स्थिति खतरे में है, जो सोने के पक्ष में काम कर रही है.
अमेरिका पर कर्ज का ब्याज बोझ भी बढ़ता जा रहा है. 36.93 ट्रिलियन डॉलर के कर्ज पर अमेरिका अब तक 2025 में ही 1.02 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा ब्याज चुका चुका है. इसी के चलते मूडीज़ रेटिंग एजेंसी ने अमेरिकी सरकार की क्रेडिट रेटिंग घटा दी थी, क्योंकि वित्तीय कर्ज और बढ़ते ब्याज खर्च की चिंता है. इसका असर यह हुआ कि 2025 में अब तक अमेरिकी डॉलर इंडेक्स करीब 4 प्रतिशत गिर चुका है.
अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने की कीमत डॉलर में तय होती है, और जब डॉलर कमजोर होता है, तो सोना महंगा हो जाता है.
बफेट का कहना एक बार फिर सही साबित हो रहा है. भले ही मौजूदा समय में भू-राजनीतिक हालात काबू में दिख रहे हों, लेकिन ट्रंप की टैरिफ वाली ट्रेड नीतियां, अमेरिकी महंगाई का डर और डॉलर की कमजोरी, इन सभी ने मिलकर अर्थव्यवस्था में डर का माहौल बनाया है, जैसा बफेट पहले से कहते आए हैं.
पैसा कमाने और बिजनेस समझदारी में वॉरेन बफेट की क्षमता को वित्तीय दुनिया में बेमिसाल माना जाता है. उनकी निवेश रणनीति हमेशा बेहद सरल रही है. वे कम कीमत पर अच्छे निवेश खरीदते हैं और लंबे समय तक उन्हें रखकर फायदा उठाते हैं.
उनके निवेश के नजरिए में सोना जैसे नॉन-प्रोडक्टिव एसेट के लिए कोई जगह नहीं है.
हालांकि बफेट की सफलता मिसाल है, लेकिन आम निवेशकों के लिए उनकी रणनीति अपनाना आसान नहीं होता.
अंतरराष्ट्रीय बाजार में फिलहाल सोना करीब 3,400 डॉलर प्रति औंस पर ट्रेड हो रहा है, जबकि भारत में इसकी कीमत आज 1,01,920 रुपये प्रति 10 ग्राम है.
मेरी राय में, आपके पोर्टफोलियो में थोड़ा सोना होना जरूरी है, लेकिन यह हिस्सा कुल निवेश का 10 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होना चाहिए. जैसा कि हमने पहले भी देखा है, सोने में लंबे समय तक रिटर्न न मिलने के दौर आते हैं, लेकिन जब इसमें तेजी आती है तो यह पोर्टफोलियो को सुरक्षित कर देता है, खासकर तब जब बाजार में डर का माहौल होता है.