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जब अमेरिकी डॉलर सस्ता होता है, तो सोना महंगा हो जाता है। ऐसे में सोना और दूसरी कीमती चीजें विदेशी खरीदारों को ज्यादा पसंद आने लगती हैं. (Image: Grok)
बीते तीन सालों में सोने ने शानदार प्रदर्शन किया है. ज्यादातर निवेशक, जिनमें मार्केट एनालिस्ट भी शामिल हैं, सोने की लगातार रिकॉर्ड हाई से चकित रह गए. 2023 और 2024 में 20% से अधिक बढ़ने के बाद, 2025 में अब तक सोना पहले ही 27% से अधिक ऊपर जा चुका है. 22 अप्रैल को सोना अपने अबतक के रिकॉर्ड हाई प्रति औंस 3,500 यूएस डॉलर पर पहुंच गया, और इसकी कीमत को दोगुना होने में सिर्फ 30 महीने लगे.
कई लोगों का मानना है कि सोने के शानदार प्रदर्शन में कुछ भी चौंकाने वाला नहीं है. सोना इसलिए चमक रहा है क्योंकि ‘दुनिया जल रही है’. लेकिन, इस समय तक, वे अधिकतर भू-राजनीतिक कारक जिनकी वजह से सोने की कीमतों में उछाल आया था, अब फीके पड़ते दिख रहे हैं.
हां, रूस-यूक्रेन जंग या इजराइल-ईरान जंग का वैश्विक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव अब अपेक्षाकृत शांत लगता है. साथ ही, देशों के बीच ट्रेड वार, विशेष रूप से अमेरिका और चीन के बीच ट्रंप टैरिफ के कारण, अब वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए खतरा नहीं रह गए हैं.
कुल मिलाकर, भू-राजनीतिक स्थिति पूरी तरह नियंत्रण में प्रतीत होती है. हालांकि, खबर यह है कि केंद्रीय बैंक अभी भी सोना खरीद रहे हैं, भले ही खरीदारी की कुल गति कुछ धीमी हो गई हो. प्रभाव यह है कि एक सुरक्षित निवेश विकल्प के रूप में सोना अपनी चमक खोता जा रहा है, और इसकी कीमतें पिछले दो महीनों से लगभग 3,350 डॉलर प्रति औंस के सीमित व्यापार दायरे में बनी हुई हैं.
सोने के लिए नई चाल
हाल के समय में, अमेरिकी डॉलर (USD) को सोने की तेजी को जारी रखने के अगले बड़े कारण के रूप में देखा जा रहा है. लेकिन आप पूछ सकते हैं, डॉलर का सोने की कीमत से क्या लेना-देना? खैर, अमेरिकी डॉलर सोने की कीमत तय करने में बड़ी भूमिका निभाता है. आइए इसे विस्तार से समझें.
सोने का डॉलर के साथ एक विपरीत संबंध होता है. लेकिन जरा ठहरिए, डॉलर की सापेक्ष ताकत को कैसे मापा जाएगा? आखिर सैकड़ों मुद्राएं हैं, उतने ही देश हैं. यहां डॉलर इंडेक्स का महत्व आता है, जो 6 अन्य मुद्राओं की एक टोकरी के मुकाबले डॉलर की ताकत को मापता है. जब डॉलर इंडेक्स मजबूत होता है, तो सोने की कीमत गिरती है, और इसके विपरीत भी यही होता है. ऐतिहासिक आंकड़े यही दिखाते हैं.
आइए एक वास्तविक उदाहरण से समझते हैं कि करेंसी कैसे कमजोर या मजबूत होती है. मान लीजिए आज डॉलर-रुपया एक्सचेंज रेट (USD-INR exchange rate) 85 रुपये प्रति डॉलर है. अगर यह दर 90 रुपये हो जाती है, तो इसका मतलब है कि रुपया कमजोर हुआ है, डॉलर मजबूत हुआ है. इसी तरह, अगर यह दर 80 रुपये हो जाती है, तो इसका मतलब है कि रुपया मजबूत हुआ है, डॉलर कमजोर हुआ है.
अब आता है पेचीदा हिस्सा, जब डॉलर की ताकत बढ़ती है, तो लोग अपना पैसा डॉलर से जुड़ी चीजों में लगाते हैं — न कि नॉन यील्डिंग एसेंट्स जैसे सोने में. कारण साफ है कि लोग अपने पैसे को ऐसी करेंसी या एसेट्स में लगाना चाहते हैं जो कम से कम अपनी कीमत बचाकर रखे. जब डॉलर मजबूत होता है, तो वो यही काम करता है. लेकिन जब डॉलर कमजोर पड़ता है, तो लोग डॉलर से जुड़ी चीजों से पैसा निकालकर सोने में लगाने लगते हैं. और यही अभी 2025 में हो रहा है. इस साल अब तक अमेरिकी डॉलर इंडेक्स करीब 12% गिर चुका है और 96 पर कारोबार कर रहा है, जो कई सालों में सबसे निचला स्तर है. ये 1973 के बाद डॉलर की सबसे तेज गिरावट है.
अमेरिकी डॉलर गिर क्यों रहा है?
अब सवाल है क्यों गिर रहा है डॉलर इंडेक्स? आखिरकार, अमेरिकी डॉलर को भी एक सुरक्षित करेंसी माना जाता है जहां लोग अपना पैसा सुरक्षित रखने के लिए लगाते हैं, और यह दुनिया की मुख्य रिजर्व करेंसी भी है. अमेरिका के ट्रेजरी बॉन्ड दुनियाभर के निवेशक रखते हैं, जिनमें जापान और चीन के केंद्रीय बैंक भी शामिल हैं. 2024 में डॉलर इंडेक्स ज़्यादातर 103 से 105 डॉलर के बीच स्थिर रहा था. लेकिन नवंबर में जैसे ही अमेरिका में चुनाव नजदीक आए, डॉलर मजबूत होने लगा. जब यह साफ हो गया कि ट्रंप को दोबारा राष्ट्रपति बनने का मौका मिल सकता है, तब डॉलर इंडेक्स 109 से भी ऊपर चला गया.
लेकिन फिर, जब ट्रंप ने व्यापार करने वाले देशों पर रेसिप्रोकल टैरिफ की घोषणा की, तो डॉलर के लिए सब कुछ समाप्त हो गया. ट्रेड वार से करेंसी के युद्ध छिड़ने की आशंका है, जिनमें अमेरिकी डॉलर सबसे बड़ा शिकार हो सकता है.
ट्रंप का एक और कदम डॉलर को नीचे धकेल रहा है. ट्रंप ने अमेरिकी फेडरल रिजर्व प्रमुख पॉवेल पर ब्याज दरों में आक्रामक कटौती के लिए दबाव बनाया है. साथ ही, पॉवेल के अगले साल रिटायर होने पर उन्हें बदलने के लिए नए नाम सामने आ रहे हैं. ये सभी रणनीतियां अमेरिकी फेडरल रिजर्व की स्वतंत्रता पर सवाल खड़े करती हैं और अमेरिकी डॉलर पर दबाव डालती हैं.
बस इतना ही नहीं. ट्रंप के 'वन बिग, ब्यूटीफुल बिल' से अमेरिका का कर्ज 3.9 ट्रिलियन डॉलर से अधिक बढ़ने की संभावना है. बढ़ते सार्वजनिक कर्ज और बढ़ते बजटीय घाटे को लेकर चिंताओं का हवाला देते हुए, मूडीज रेटिंग्स पहले ही अमेरिका की क्रेडिट रेटिंग डाउनग्रेड कर चुकी है.
आइए देखें कि आंकड़े क्या कहते हैं. साल 2024 में अमेरिका की जीडीपी 28.83 ट्रिलियन डॉलर थी, जो देश पर मौजूद 35.46 ट्रिलियन डॉलर के कर्ज से काफी कम है. 123 फीसदी के डेट टू जीडीपी रेशियो (debt-to-GDP ratio) के साथ, अर्थशास्त्री मानते हैं कि यह अमेरिका की लोन चुकाने की क्षमता को लेकर एक बड़ा चेतावनी संकेत है.
अमेरिका के कर्ज की सेवा पर ब्याज की लागत पहले से ही बहुत अधिक है और ट्रंप के टैक्स बिल के बाद यह और बढ़ेगी. वित्त वर्ष 2025 में कुल संघीय खर्च का 16% पहले ही अमेरिका के कर्ज पर ब्याज चुकाने में जा रहा है.
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अगर अमेरिकी डॉलर गिरता है तो क्या होता है?
अगर डॉलर इंडेक्स गिरता है तो इसका अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर कई प्रभाव पड़ सकते हैं. अमेरिकी ट्रेजरी बांड्स में जो भरोसा था, वह पहले जैसा नहीं रहेगा. वैश्विक निवेशक अपने नुकसान से बचने के लिए अमेरिकी बांड्स में अपनी हिस्सेदारी कम कर देंगे. और जाहिर है, अमेरिकी सरकार के लिए उधारी लेना महंगा हो जाएगा (क्योंकि ट्रेजरी की मांग कम होगी तो ब्याज दरें बढ़ेंगी). इससे डॉलर इंडेक्स पर अतिरिक्त दबाव पड़ सकता है और यह और नीचे जा सकता है.
जब डॉलर कमजोर होता है तो सोने के साथ क्या होता है?
जब अमेरिकी डॉलर की कीमत गिरती है, तो सोने की कीमतों को फायदा मिलता है. क्योंकि डॉलर में बिकने वाली चीजें - जैसे सोना और दूसरी कीमती धातुएं - विदेशी खरीदारों को ज्यादा आकर्षक लगने लगती हैं.
जैसा कि पहले समझाया गया, जब डॉलर कमजोर होता है, तो जो पैसा डॉलर से जुड़ी चीज़ों में लगा होता है, वो कहीं और जाने लगता है. निवेशक अपने पैसों की कीमत बचाने के लिए ऐसा करते हैं.
अब जब पैसा निकलता है, तो वो आखिर में किसी न किसी जगह जाएगा ही और यही वह समय होता है जब लोग सोने की ओर रुख करते हैं. क्योंकि सोना एक पारंपरिक और भरोसेमंद संपत्ति मानी जाती है जो समय के साथ अपनी कीमत को बचाकर रखता है.
ऐसे हालातों में सोने की मांग बढ़ जाती है, क्योंकि निवेशकों के लिए सबसे ज़रूरी हो जाता है - पूंजी यानी उनके पैसों की सुरक्षा. जितना ज्यादा डर या घबराहट, उतनी ही ज्यादा सोने की डिमांड और उतनी ही तेजी से कीमतें बढ़ती हैं.
आगे का रास्ता
कुल मिलाकर, भले ही अमेरिकी डॉलर अभी भी दुनिया के व्यापार में अहम भूमिका निभा रहा है, लेकिन उसकी बादशाहत अब खतरे में है. सोने की कीमत आगे चलकर किन हालातों में रहेगी, यह काफी हद तक भू-राजनीतिक तनावों, व्यापार युद्धों और केंद्रीय बैंकों की सोने पर निर्भरता पर टिका होगा.
अगर इन चीजों का असर नकारात्मक रहा, तो डॉलर इंडेक्स गिरेगा और उसका असर सोने की कीमत पर भी पड़ेगा.
इसलिए आने वाले समय में सोने की चाल थोड़ी पेचीदा हो सकती है क्योंकि कई चीज़ें एक साथ असर डाल रही हैं. ऐसे में सोने की तेजी को समझदारी से देखना और उस पर सोच-समझकर कदम उठाना जरूरी है.
भारत में फिलहाल 24 कैरेट सोने की कीमत 97,220 रुपये प्रति 10 ग्राम के आसपास है. क्या ये जल्द ही अपने रिकॉर्ड हाई 1 लाख रुपये के आंकड़ें को पार करेगा? यह आने वाले दिनों में पता चल सकेगा.
(Article : Sunil Dhawan)