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यह नया नियम सिर्फ उन फ्लोटिंग रेट लोन पर लागू होगा जो 1 जनवरी 2026 या उसके बाद मंजूर या रिनुअल किए जाएंगे. (Image : Freepik)
No prepayment charges on floating rate home loans from Jan 1 next year : लोन लेने वालों को बड़ी राहत देते हुए भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने घोषणा की है कि 1 जनवरी 2026 से फ्लोटिंग रेट लोन पर प्रीपेमेंट चार्ज नहीं लिया जाएगा. इसका मतलब यह है कि अगर कोई व्यक्ति समय से पहले अपना लोन चुकाना चाहता है तो उसे कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना होगा.
किस लोन पर ये नियम होगा लागू ?
यह नया नियम केवल उन फ्लोटिंग रेट लोन पर लागू होगा जो 1 जनवरी 2026 या उसके बाद मंजूर या नवीनीकृत किए जाएंगे. RBI ने इस संबंध में सभी बैंकों और नॉन-बैंकिंग फाइनेंशिल कंपनियों (NBFCs) जैसी रेगुलेटेड एंटीटीज को स्पष्ट निर्देश दिए हैं.
अगर किसी व्यक्ति को किसी भी गैर-व्यावसायिक (यानि बिजनेस से जुड़े नहीं) काम के लिए फ्लोटिंग रेट लोन मिला है - चाहे अकेले लिया हो या किसी के साथ मिलकर - तो उस पर लोन जल्दी चुकाने का कोई एक्स्ट्रा चार्ज नहीं लगेगा.
कॉमर्शियल बैंकों को यह भी निर्देश दिया गया है कि वे इंडिविजुअल बिनेसिज या माइक्रो और स्मॉल एंटरप्राइजेज (MSEs) को दिए गए फ्लोटिंग रेट लोन पर प्रीपेमेंट चार्ज न लगाएं. हालांकि कुछ बैंक इस दायरे में नहीं आते जैसे स्मॉल फाइनेंस बैंक, रीजनल ग्रामीण बैंक, लोकल एरिया बैंक और अन्य.
अगर ये संस्थाएं 50 लाख रुपये तक के लोन देती हैं - जैसे स्मॉल फाइनेंस बैंक, रीजनल ग्रामीण बैंक, कोऑपरेटिव बैंक, NBFC-ML – तो उन पर भी कोई प्रीपेमेंट चार्ज नहीं लगाया जाएगा.
नए नियम से किसका होगा फायदा?
RBI का यह फैसला सीधे तौर पर होम लोन और फ्लोटिंग रेट लोन लेने वालों को फायदा पहुंचाएगा. फिलहाल ज्यादातर होम लोन फ्लोटिंग रेट पर ही होते हैं, इसलिए यह कदम करोड़ों ग्राहकों के लिए राहत की बात है. MSE सेक्टर से लोन लेने वाले लोगों को भी इसका लाभ मिलेगा.
एक खास बात यह है कि यह नियम आंशिक या पूरा लोन एक साथ चुकाने दोनों पर लागू होगा, चाहे पैसा किसी भी स्रोत से आए और इसमें कोई न्यूनतम लॉक-इन अवधि भी नहीं होगी.
बैंक बाजार के को-फाउंडर और सीईओ आदिल शेठ्टी ( Adhil Shetty, Cofounder & CEO, Bank Bazaar) के अनुसार, “अक्सर जब ब्याज दरें गिरती थीं, तो बैंक कम ब्याज दरों का लाभ ग्राहकों को नहीं देते थे, खासकर प्री-MCLR व्यवस्था में. यह मानते हुए कि फ्लोटिंग रेट लोन की दरें पूरे लोन की अवधि में बाजार स्थितियों के अनुसार बदलती रहती हैं, RBI ने यह सुनिश्चित करने के लिए चरणबद्ध तरीके से प्रीपेमेंट चार्ज हटाए हैं ताकि ग्राहकों के साथ न्याय हो.”
उन्होंने यह भी कहा कि पिछले 13 सालों में यह नियम पहले बैंकों पर लागू किया गया, फिर NBFCs और हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों पर, फिर सभी फ्लोटिंग रेट रिटेल लोन पर और अब MSMEs पर लागू किया गया है. इससे ग्राहकों को अपने लोन को आसानी से प्रबंधित या स्विच करने की सुविधा मिलती है. यह लेंडर्स के बीच प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देता है और ग्राहकों को सबसे अच्छी ब्याज दर पाने में मदद करता है.”
आरबीआई ने यह निर्णय क्यों लिया?
RBI ने यह निर्णय इसलिए लिया क्योंकि उसने देखा कि अलग-अलग बैंक और NBFCs प्रीपेमेंट चार्ज लगाने को लेकर अलग-अलग तरीके अपनाते हैं, जिससे ग्राहकों की शिकायतें और विवाद बढ़ रहे थे.
“RBI की सुपरवाइजरी रिव्यू में यह सामने आया है कि MSEs को दिए गए लोन के मामलों में विनियमित संस्थाओं द्वारा प्रीपेमेंट चार्ज लगाने की प्रक्रिया में काफी अंतर है, जिससे ग्राहकों में असंतोष और विवाद उत्पन्न हो रहे हैं.”
“इसके अलावा, कुछ संस्थाओं ने लोन कॉन्टैक्ट या एग्रीमेंट्स में ऐसे प्रतिबंधात्मक प्रावधान जोड़े हैं जो ग्राहकों को कम ब्याज दर या बेहतर सेवा शर्तों के लिए किसी अन्य लेंडर के पास जाने से रोकते हैं.”
क्या यह नियम निश्चित अवधि के ऋणों पर भी लागू होगा?
जहां तक फिक्स टर्म लोन की बात है, RBI ने कहा है कि अगर कोई संस्था प्रीपेमेंट चार्ज लगाती है, तो वह चुकाए जाने वाली राशि के आधार पर ही होना चाहिए.
कैश क्रेडिट और ओवरड्राफ्ट सुविधाओं में, अगर ग्राहक पहले ही सूचित करता है कि वह रिन्यू नहीं कराना चाहता और समय पर खाता बंद कर देता है, तो उस पर कोई प्रीपेमेंट चार्ज नहीं लगेगा.
यदि बैंक खुद ही प्रीपेमेंट के लिए कहे तो क्या होगा?
अगर बैंक खुद प्रीपेमेंट के लिए कहता है, तब भी कोई चार्ज नहीं लिया जा सकता. साथ ही, अगर पहले किसी ग्राहक को प्रीपेमेंट चार्ज माफ किया गया हो, तो बैंक उसे बाद में दोबारा वसूल नहीं सकता.
लोन की शर्तें साफ-साफ लिखी होनी चाहिए
RBI ने यह भी स्पष्ट किया है कि प्रीपेमेंट चार्ज लिया जाएगा या नहीं, इसकी जानकारी लोन सेंक्शन लेटर या लोन एग्रीमेंट में स्पष्ट रूप से दी जानी चाहिए.
इसके अलावा, यह जानकारी की-फैक्ट्स स्टेटमेंट (Key Facts Statement - KFS) में भी साफ तौर पर होनी चाहिए. अगर बैंक ने KFS में इसका उल्लेख नहीं किया है, तो वह कोई प्रीपेमेंट चार्ज (Home Loan Prepayment) नहीं वसूल सकता.