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FD: इन दिनों अगर आप एफडी कराने की सोच रहे हैं तो पैसा लगाने से पहले इससे जुड़ी जरूरी बातों को जान लेना चाहिए. (Image: Freepik)
Fixed deposits: अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने इस साल सितंबर में अपने ब्याज दरों में 50 बेसिस प्वॉइंट्स यानी 0.5 फीसदी की कटौती की. जिसके बाद अनुमान लगाया जा रहा था कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) भी दरों में कटौती कर सकता है. रेपो रेट में कटौती से मौजूदा या नया लोन लेने वालों को फायदा होता, खासकर उन लोगों को जिन्होंने पहले से फ्लोटिंग ब्याज दर पर लोन ले रखा है. दूसरी तरफ दर में कटौती के बाद खोले जाने वाले फिक्स्ड डिपॉजिट अकाउंट पर कम रिटर्न मिलने की संभावना अधिक रहती. दरअसल रेपो रेट में कटौती के कारण ज्यादातर बैंक अपने एफडी रेट घटाने का फैसला करते. जिससे एफडी में पैसा लगाने वाले निवेशकों की कमाई भी घट जाती. हालांकि अभी भी बहुत से बैंक एफडी पर बेहतर रिटर्न ऑफर कर रहे हैं, ऐसे में एफडी में पैसे लगाना निवेशकों के लिए फायदेमंद हो सकता है.
फिक्स्ड डिपॉजिट निवेश के लिए एक लोकप्रिय विकल्प है जो आपके पैसों को सुरक्षित रखने और ब्याज कमाने में मदद करता है. अपनी सेविंग पर अच्छा रिटर्न हासिल करने के लिए किसी बैंक या वित्तीय संस्थान के FD स्कीम में पैसे लगाने से पहले यहां एक्सपर्ट से फायदों के बारे मेें जानिए.
एफडी में निवेश पर मिलता है 5 लाख का इंश्योरेंस
बैंकों में जमा एफडी पर सरकारी संस्था डीआईसीजीसी (DICGC) द्वारा इंश्योरेंस कवर मिलता है. यह इंश्योरेंस बैंक डिफॉल्ट होने की स्थिति में हर एक निवेशक को 5 लाख तक की एफडी, रिकरिंग डिपॉजिट यानी आरडी, सेविंग और करेंट एकाउंट डिपॉजिट को कवर करता है. इस प्लान के तहत प्रिंसिपल अमाउंट और इंटरेस्ट दोनों को कवर किया जाता है. इस इंश्योरेंस का मकसद बैंक डिफॉल्ट की स्थिति में निवेशकों के हितों की रक्षा करना है.
फिलहाल सरकारी और प्राइवेट बैंकों की तुलना में स्मॉल फाइनेंस बैंक एफडी पर लगभग 1 से 1.5 फीसदी अधिक इंटरेस्ट ऑफर कर रहे हैं. इन बैंकों में सूर्योदय बैंक और यूनिटी बैंक शामिल हैं, जो 5 साल या उससे अधिक टेन्योर वाले एफडी पर 8.25% सालाना दर से ब्याज ऑफर कर रहे हैं. हर एक शेड्यूल्ड बैंक में डिपॉजिट पर ये इंश्योरेंस कवर मिलता है. इस पर पैसा बाजार के चीफ बिजनेस ऑफिसर (अनसिक्योर्ड लेंडिंग) गौरव अग्रवाल नसीहत देते हैं कि जोखिम से बचने के लिए निवेशक अपनी गाढ़ी कमाई को अलग-अलग बैंकों के एफडी स्कीम में लगाकर इंश्योरेंस कवरेज के दायरे को बढ़ा सकते हैं.
ये भूल करने पर देनी पड़ सकती है पेनाल्टी
निवेश के लिए बैंक विभिन्न अवधि वाली एफडी स्कीम ऑफर करते हैं. कुछ बैंक की स्कीम मैच्योरिटी से पहले पैसे निकालने की सुविधा देते हैं. लेकिन कई बार निवेशक लिक्विडिटी (मैच्योरिटी से पहले पैसे निकालने की सुविधा) और निवेश की अवधि को नजरअंदाज करते हुए, एफडी की वो स्कीम चुनते हैं जिस पर उन्हें ज्यादा इंटरेस्ट मिल रहा हो. ऐसे निवेशक बाद में इमरजेंसी जैसी स्थिती में पड़ने पर अपना एफडी मैच्योरिटी से पहले तोड़ने को मजबूर होते हैं. बता दें कि कई बैंक और नॉन-बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनी (NBFCs) प्रीमैच्योर या पार्शियल विड्रॉल पर 1% तक का पेनाल्टी चार्ज करते हैं. ये चार्ज मौजूदा एफडी दर से काटा जाता है. जो आमतौर पर कॉन्टैक्टेड एफडी रेट से कम होता है और जितने समय के लिए एफडी खुली रही उस अवधि पर लागू ब्याज दर के हिसाब से इंटरेस्ट कैलकुलेट किया जाता है. ऐसे में गौरव अग्रवाल कहते हैं कि मैच्योरिटी से पहले एफडी सरेंडर करने पर लगने वाले जुर्माने से बचने के लिए निवेशक को किसी बैंक के एफडी स्कीम में पैसे रखने से पहले उसकी लिक्विडिटी शर्तों और निवेश अवधि को जरूर ध्यान में रखना चाहिए.
टैक्स सेविंग एफडी पर नहीं मिलता टैक्स फ्री इनकम
इनकम टैक्स एक्ट की धारा 80C के तहत टैक्स सेविंग एफडी पर एक वित्त वर्ष में अधिकतम 1.5 लाख रुपये की टैक्स में छूट मिलती है. इन टैक्स सेविंग एफडी की लॉक-इन पीरियड 5 साल की होती है. हालांकि अन्य एफडी की तरह, टैक्स सेविंग एफडी से होने वाली इंटरेस्ट इनकम पर निवेशक के टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्स पेमेंट करना होता है. सिर्फ सीनियर सिटिजन को ही टैक्स सेविंग स्कीम पर IT एक्ट 80TTB सेक्शन के तहत टैक्स-डिडक्शन का लाभ मिलता है. ये सेक्शन सीनियर सीटिजन को बैंक और पोस्टऑफिस, दोनों में जमा रकम (एफडी सहित) पर मिले ब्याज पर अधिकतम 50,000 रुपये तक टैक्स बेनिफिट मिलता है.
आमतौर पर टैक्स सेविंग एफडी से टैक्स पेमेंट करने के बाद मिलने वाली रकम अक्सर महंगाई को मात देने में असफल होती है, खासतौर पर हाई टैक्स स्लैब वाले लोगों के लिए. इसलिए ऐसे लोग टैक्स सेविंग एफडी के बजाय PPF, NSC और सुकन्या समृद्धि जैसी योजनाओं में निवेश करके बचत कर सकते हैं. ये स्कीम्स धारा 80C के तहत टैक्स बेनिफिट के साथ-साथ अच्छा रिटर्न भी देती हैं. इसके अलावा जो लोग ज्यादा जोखिम उठाने की क्षमता रखते हैं साथ ही अधिक रिटर्न हासिल करना चाहते हैं वह इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम (ELSS) में निवेश कर सकते हैं. इसकी लॉक-इन पीरियड 3 साल होती है. जोकि टैक्स डिडक्शन बेनिफिट देने वाले स्कीम्स में से सबसे छोटी लॉक इन अवधि वाली स्कीम है.
क्रेडिट स्कोर बेहतर करने में मिल जाती है मदद
बहुत सारे बैंक अपने निवेशकों को एफडी पर सिक्योर्ड क्रेडिट कार्ड और ओवरड्रॉफ्ट जैसी सुविधाएं ऑफर करते हैं. लोन अगेंस्ट एफडी ओवरड्रॉफ्ट के रुप में ही दिया जाता है जो फाइनेंशियल इमरजेंसी के समय वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए एक अच्छा विकल्प है. ओवरड्रॉफ्ट के तहत ब्याज सिर्फ इस्तेमाल की जाने वाली रकम पर देना होता है और लोन रिपेमेंट कर देने के बाद निवेशक को उनकी गिरवी रखी एफडी वापस मिल जाती है. लोन अगेंस्ट एफडी की खास बात ये है कि एफडी को तोड़े बिना और उस पर मिलने वाले रिटर्न को प्रभावित किए बिना वित्तीय जरूरतों को पूरा कर सकते हैं.
इसके अलावा जिन लोगों को खराब क्रेडिट स्कोर या अन्य योग्यता शर्तों में कमी की वजह से क्रेडिट कार्ड नहीं मिल पाता, वह लोग एफडी के बदले सिक्योर्ड क्रेडिट कार्ड ले सकते हैं. यह कार्ड आवेदक का क्रेडिट स्कोर बनाने या बढ़ाने में काफी मददगार होता है. क्योंकि बैंक सिक्योर्ड कार्ड से होने वाले लेन-देन की रिपोर्ट क्रेडिट ब्यूरो को देते हैं. इस तरह समझदारी से कार्ड का इस्तेमाल करके क्रेडिट स्कोर बेहतर कर सकते हैं. इसके अलावा इसमें भी लोन अगेंस्ट एफडी की तरह ही गिरवी रखे एफडी पर इंटरेस्ट मिलता रहता है.
TDS के साथ खत्म नहीं होती टैक्स देनदारी
बैंक द्वारा TDS काटे जाने से एफडी निवेशकों की टैक्स देनदारी खत्म नहीं होती है. जहां टीडीएस 10% की दर से काटा जाता है (20% जिन्होंने पैन कार्ड जमा नहीं किया है) वहीं, टैक्स एफडी से मिले ब्याज आय पर टैक्स निवेशक के टैक्स स्लैब के हिसाब से लगाया जाता है. इसके अलावा अगर एक वित्त वर्ष के दौरान बैंक एफडी में जमा रकम पर मिलने वाला इंटरेस्ट इनकम 40,000 रुपये से कम है, तो कोई टीडीएस नहीं कटता है. कुल टीडीएस डिडक्शन और एफडी इंटरेस्ट इनकम पर लगने वाले टैक्स के बीच का अंतर इनकम टैक्स रिटर्न (ITR) फाइल करते समय समायोजित किया जाता है. इसलिए निवेशकों को हमेशा अपने टैक्स स्लैब को ध्यान में रखकर अपनी एफडी के पोस्ट-टैक्स रिटर्न को कैलकुलेट करना चाहिए. ताकि वह फिक्स्ड डिपॉजिट और अन्य फिक्स्ड इनकम इंस्ट्रूमेंट (डेट म्यूचुअल फंड, बॉन्ड आदि) की तुलना करके अपने लिए बेहतर निवेश विकल्प चुन सकें.
आखिर में, एफडी पर मिलने वाला बेहतर रिटर्न अगले कुछ महीनों में कम हो सकता है. हालांकि निवेशकों को हाई इंटरेस्ट देने वाले एफडी अवधि को चुनते समय अपनी वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए लिक्विडिटी और शॉर्ट टर्म वित्तीय लक्ष्यों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. इसके अलावा निवेशकों को बढ़ती महंगाई दर से रिटर्न देने वाले एफडी में निवेश करना चाहिए भले ही वो स्मॉल फाइनेंस बैंक ही क्यों न दे रहा हो. अगर निवेशक का बैंक उसे लोन अगेंस्ट एफडी और एफडी पर सिक्योर्ड क्रेडिट कार्ड लेने की अनुमति देता है, तो निवेशक एफडी को बिना सरेंडर किए अपने क्रेडिट स्कोर को बेहतर और शॉर्ट टर्म वित्तीय लक्ष्यों को आसानी से हासिल कर सकते हैं.