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How to Buy Insurance : बीमा पॉलिसी लेते समय न हों गलतफहमी के शिकार, लुभावने वादों से रहें सावधान

Insurance mis-selling: बीमा पॉलिसी लेते समय लोग कई बार लुभावने वादों से प्रभावित होकर गलत फैसला कर बैठते हैं. ऐसी स्थिति से बचने के लिए हर कदम पर सतर्क रहना और पूरी जानकारी हासिल करना जरूरी है.

Insurance mis-selling: बीमा पॉलिसी लेते समय लोग कई बार लुभावने वादों से प्रभावित होकर गलत फैसला कर बैठते हैं. ऐसी स्थिति से बचने के लिए हर कदम पर सतर्क रहना और पूरी जानकारी हासिल करना जरूरी है.

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Viplav Rahi
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Life insurance mis-selling: बीमा पॉलिसी लेते समय कई बार लोग लुभावने वादों में फंसकर गलत फैसले कर लेते हैं. (Image : Freepik)

Life insurance mis-selling, beware of these wrong sales pitches: इंश्योरेंस यानी बीमा पॉलिसी खरीदते समय कई बार लोग मार्केटिंग के लिए किए जा रहे लुभावने वादों और आधे-अधूरे ढंग से दी गई जानकारी से प्रभावित होकर गलत फैसला कर बैठते हैं. कई बार इंश्योरेंस बेचने वाले जानबूझकर ऐसा करते हैं, जिसे मिस-सेलिंग (Mis-selling) कहा जाता है. अगर आप सावधान नहीं रहे, तो उनकी गुमराह करने वाली बातों के चक्कर में फंस सकते हैं. कुछ ही दिनों पहले वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) के प्रमुख देबाशीष पांडा ने इंश्योरेंस प्रोडक्ट्स को गलत तरीके से बेचे जाने पर चिंता जाहिर की है, जिससे जाहिर है कि यह समस्या कितनी गंभीर हो गई है. इसलिए जरूरी है कि इंश्योरेंस लेने के बारे में फैसला करते समय आप हर कदम पर सतर्क रहें और पूरी जानकारी के बाद ही किसी पॉलिसी में पैसे लगाएं. आइए, जानते हैं कि इंश्योरेंस खरीदते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए.

FD जैसे सुरक्षित रिटर्न के साथ टैक्स बेनिफिट के दावे कितने सही?

एंडोमेंट पॉलिसी को अक्सर सुरक्षित निवेश के रूप में पेश किया जाता है, लेकिन इसमें छिपे हुए जोखिम और लागत को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए. बुजुर्ग ग्राहकों को खासतौर पर यह कहकर लुभाया जाता है कि यह गारंटीड रिटर्न देता है. इस प्रकार की पॉलिसी में आपको कई वर्षों तक प्रीमियम का भुगतान करना होता है, और जल्दी बाहर निकलने पर नुकसान का सामना करना पड़ सकता है. इस तरह के प्रोडक्ट्स में वास्तविक रिटर्न आमतौर पर महज 4-7% तक रहता है. सही रणनीति यही है कि आप बीमा को सिर्फ प्रोटक्शन यानी आर्थिक सुरक्षा के नजरिये से देखें और टर्म इंश्योरेंस को चुनें. बाकी पैसों को एफडी या म्यूचुअल फंड में लगाना ज्यादा बेहतर रणनीति है.

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लाइफ कवर + टैक्स सेविंग + इन्वेस्टमेंट के दावों में कितना दम?

टैक्स सेविंग के नाम पर इंश्योरेंस बेचने का चलन काफी पुराना है. साल के अंत में, खासकर जनवरी से मार्च के बीच, जब लोग इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 80C के तहत टैक्स बचाने की योजना बनाते हैं, कई बीमा एजेंट उन्हें इस मकसद से लाइफ इंश्योरेंस प्रोडक्ट खरीदने की सलाह देते हैं. यह बात सही है कि कई बीमा पॉलिसी में निवेश पर टैक्स छूट मिलती है, लेकिन इस बारे में कोई भी फैसला सिर्फ टैक्स की बचत को ध्यान में रखकर नहीं करना चाहिए. टैक्स सेविंग को अलग से देखने की जगह अपने पूरे फाइनेंशियल प्लान प्लान का हिस्सा बनाना चाहिए. कई बार EPF या बच्चों की ट्यूशन फीस जैसे अन्य निवेश ही 1.5 लाख रुपये की लिमिट को पूरा कर देते हैं. इसलिए, जल्दबाजी में फैसला करने की बजाय, पूरे साल व्यवस्थित रूप से निवेश करें.

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ULIP को म्यूचुअल फंड जैसा बताने का दावा

कई बार इंश्योरेंस कंपनियां या बीमा एजेंच यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस पॉलिसी (ULIP) को म्यूचुअल फंड जैसा बताते हैं. कई यूलिप स्कीम्स के विज्ञापनों में 'इंश्योरेंस' शब्द का जिक्र न होना भी ग्राहकों को गुमराह कर सकता है. इसलिए अगर आप म्यूचुअल फंड में निवेश करने के इरादे से कोई प्रोटक्ट ले रहे हैं, तो यह जरूर देख लें कि उसके लिए चेक जारी करते समय या ऑनलाइन पेमेंट करते समय किसका नाम आ रहा है. अगर आप किसी ‘लाइफ इंश्योरेंस कंपनी’ को पेमेंट कर रहे हैं, तो यह म्यूचुअल फंड नहीं हो सकता. इसके अलावा, सभी ULIPs में 5 साल का लॉक-इन पीरियड भी होता है, जबकि अधिकांश म्यूचुअल फंड में ऐसा नहीं होता. सिर्फ इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम (ELSS) में 3 साल का और रिटायरमेंट या चिल्ड्रेंस फंड में 5 साल का लॉक-इन होता है. निवेश का फैसला करते समय सिर्फ बीमा एजेंट के वादों पर भरोसा करने की जगह खुद रिसर्च करें.

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नॉन मार्केट लिंक्ड गारंटीड स्कीम्स का क्या है चक्कर

नॉन-मार्केट-लिंक्ड-गारंटीड पॉलिसी को सुरक्षित रिटर्न का वादा कर बेचा जाता है. यह उन निवेशकों को काफी लुभाता है, जो बाजार के उतार-चढ़ाव से डरते हैं. इन योजनाओं में सालाना गारंटीड एडिशन्स महज 4-6% तक ही रहते हैं, लेकिन कई बार अलग-अलग काल्पनिक रेट ऑफ रिटर्न को दर्शाने वाले उदाहरणों के चार्ट को वास्तविक संभावित रिटर्न बताकर ग्राहकों को गुमराह किया जाता हैं. ऐसी स्कीम्स में एजेंट कमीशन काफी ऊंचा रहता है, जिसके चलते इनकी मिस-सेलिंग की कोशिश काफी जोर-शोर से की जाती है. आमतौर पर ऐसी स्कीम्स निवेशकों के लिए फायदेमंद नहीं होती हैं.

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गलतफहमी से बचने के लिए क्या करें 

अगर आप इंश्योरेंस पॉलिसी खरीदते समय गलतफहमी का शिकार होने से बचना चाहते हैं तो इन बातों का ध्यान रखें : 

  • इंश्योरेंस प्रोडक्ट के बारे में पूरी जानकारी कर लें. इसके लिए पॉलिसी से जुड़ी तमाम शर्तों और फायदों को अच्छी तरह से समझ लें.

  • बीमा एजेंट के बताए गए रेट ऑफ रिटर्न की बजाय, प्रोडक्ट के इंटर्नल रेट ऑफ रिटर्न (IRR) को देखें और उसका विश्लेषण करें.

  • सबसे बड़ी बात कि इंश्योरेंस से मिलने वाले प्रोटेक्शन और इनवेस्टमेंट पर मिलने वाले रिटर्न को अलग-अलग रखें. यह बात हमेशा ध्यान में रखें कि इंश्योरेंस पॉलिसी का मुख्य उद्देश्य आपको, आपके परिवार को आर्थिक सुरक्षा मुहैया कराना है. इनवेस्टमेंट करके रिटर्न देना नहीं.

इंश्योरेंस पॉलिसी खरीदते समय ऊपर बताई गई सभी बातों का ध्यान रखें और मार्केटिंग के लिए किए जा रहे दावों को परखना बहुत जरूरी है. एजेंट के वादों पर आंख मूंदकर भरोसा न करें. उनके दबाव में आकर हड़बड़ी में कोई भी फैसला न करें. अच्छी तरह सोचने समझने के बाद फैसला करेंगे, तो न केवल आपका भविष्य सुरक्षित होगा, बल्कि आपके पैसे भी सुरक्षित रहेंगे.

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