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Multi Asset Allocation Fund : मल्टी एसेट फंड्स में निवेश का सबसे बड़ा फायदा डायवर्सिफिकेशन है. (Image : Freepik)
Multi Asset Allocation Fund : Single Scheme for All Asset Classes : अगर आप स्टॉक्स, बॉन्ड्स, गोल्ड और सिल्वर जैसे कई एसेट क्लास में पैसा लगाना चाहते हैं, लेकिन इनमें अलग-अलग इनवेस्टमेंट को मैनेज करने से जुड़े झमेलों से घबराते हैं, तो मल्टी एसेट एलोकेशन फंड (Multi Asset Allocation Fund) में निवेश पर विचार कर सकते हैं. ये फंड ऐसे ही निवेशकों के लिए डिज़ाइन किए जाते हैं, जो हर एसेट क्लास में निवेश तो करना चाहते हैं लेकिन उन्हें अलग-अलग मैनेज या ट्रैक करने का झंझट नहीं उठाना चाहते. मल्टी एसेट एलोकेशन फंड एक ऐसा ऑप्शन है, जो एक ही स्कीम में डायवर्सिफिकेशन, प्रोफेशनल मैनेजमेंट और बाजार की चाल के अनुसार बैलेंस बनाए रखने के फायदे मुहैया करा सकता है. बशर्ते आप अपने लिए सही स्कीम सेलेक्ट करें और समझदारी से निवेश करें.
क्या होते हैं मल्टी एसेट एलोकेशन फंड?
मल्टी एसेट एलोकेशन फंड ऐसे म्यूचुअल फंड (Mutual Fund) होते हैं जो कम से कम तीन अलग-अलग एसेट क्लास में निवेश करते हैं. सेबी (SEBI) के नियमों के मुताबिक मल्टी एसेट एलोकेशन फंड्स के लिए स्टॉक्स (Equity), डेब्ट (Debt) और कमोडिटीज (Gold, Silver) जैसे हर एसेट क्लास में कम से कम 10-10% का एलोकेशन करना जरूरी होता है. ऐसा इसलिए किया जाता है, ताकि रिस्क को डिस्ट्रीब्यूट करने और रिटर्न को स्टेबल बनाए रखने में मदद मिले.
मल्टी एसेट फंड में निवेश के फायदे
मल्टी एसेट फंड्स में निवेश का सबसे बड़ा फायदा डायवर्सिफिकेशन का होता है. अगर किसी एक एसेट क्लास का प्रदर्शन कमजोर रहता है, तो दूसरे क्लास से मिलने वाला रिटर्न नुकसान की भरपाई कर सकता है. जैसे, अगर इक्विटी बाजार में गिरावट होती है, तो गोल्ड आमतौर पर एक सुरक्षित इनवेस्टमेंट ऑप्शन के तौर पर काम करता है.
इन फंड्स को पेशेवर मैनेजर हैंडल करते हैं जो बाजार के रुझान के हिसाब से पोर्टफोलियो का बैलेंस बनाए रखते हैं. इससे निवेशकों को यह चिंता नहीं रहती कि उन्हें कब किस एसेट में पैसा लगाना या निकालना है.
गोल्ड और सिल्वर जैसी कमोडिटीज में निवेश करने के लिए पहले अलग से ETF या फिजिकल फॉर्म में खरीदारी करनी पड़ती थी. लेकिन मल्टी एसेट फंड के जरिए आपको इन सभी एसेट्स का एक्सपोजर एक ही फंड में मिल जाता है.
इसके अलावा, टैक्सेशन के लिहाज से भी ये फंड फायदे का सौदा हो सकते हैं. अगर फंड का 65% या उससे ज्यादा हिस्सा इक्विटी में है, तो उस पर इक्विटी फंड वाले टैक्स के नियम लागू होते हैं, जो लॉन्ग टर्म इन्वेस्टर्स के लिए फायदेमंद होते हैं.
हर तरह के बाजार में कर सकते हैं बेहतर प्रदर्शन
मल्टी एसेट फंड की बड़ी खासियत ये है कि इनके फंड मैनेजर बाजार के ट्रेंड को समझकर अलग-अलग एसेट क्लास में एलोकेशन बदल सकते हैं. जब बाजार में उथल-पुथल हो तो फंड मैनेजर डेब्ट और गोल्ड जैसे डिफेंसिव एसेट्स में एलोकेशन बढ़ा सकते हैं, वहीं बाजार में तेजी आने पर इक्विटी में निवेश बढ़ा सकते हैं.
इन बातों को भी ध्यान में रखें
मल्टी एसेट एलोकेशन फंड में निवेश के ऊपर बताए गए फायदों के अलावा, इनके साथ कुछ चुनौतियां भी जुड़ी हैं. इस कैटेगरी के अलग-अलग फंड्स के एसेट अलोकेशन में काफी अंतर हो सकता है. किसी फंड में इक्विटी का हिस्सा ज्यादा हो सकता है तो किसी में डेब्ट या कमोडिटी का. भारतीय म्यूचुअल फंड्स के आंकड़ों के मुताबिक इस कैटेगरी के ज्यादातर फंड अधिकांश निवेश इक्विटी में करते रहे हैं और उसमें भी बड़ा हिस्सा लार्ज कैप का रहता है. ऐसे में इनके जरिये गोल्ड या सिल्वर में निवेश का पूरा फायदा मिलना जरूरी नहीं है. इन फंड्स का प्रदर्शन काफी हद तक फंड मैनेजर के फैसलों से तय होता है. अगर सही समय पर सही फैसले नहीं लिए गए तो फंड अंडरपरफॉर्म भी कर सकता है. इसके अलावा इन फंड्स का मैनेजमेंट कॉम्प्लेक्स होने की वजह से इनका एक्सपेंस रेशियो भी कुछ अधिक हो सकता है, जिसका असर लंबे समय में यह आपके रिटर्न पर पड़ सकता है.
किन निवेशकों को करना चाहिए निवेश
मल्टी एसेट एलोकेशन फंड्स उन नए निवेशकों के लिए बेहतर विकल्प हो सकते हैं, जो अपनी इनवेस्टमेंट जर्नी के शुरुआती दौर में एक आसान और बैलेंस्ड ऑप्शन के जरिये अलग-अलग एसेट क्लास में निवेश करना चाहते हैं. ऐसे निवेशक जो एक ही फंड के जरिए स्टॉक्स, गोल्ड, सिल्वर और बॉन्ड्स जैसे एसेट क्लासेस में निवेश करना चाहते हैं और ज्यादा रिस्क नहीं लेना चाहते हैं इन पर विचार कर सकते हैं.
कैसे चुनें सही स्कीम
अगर आप मल्टी एसेट एलोकेशन फंड में निवेश करना चाहते हैं, तो अपने लिए सही स्कीम चुनने से पहले उसकी एसेट अलोकेशन पॉलिसी जरूर देखें. चेक करें कि फंड की निवेश रणनीति आपके रिस्क प्रोफाइल से मेल खाती है या नहीं. फंड के पिछले प्रदर्शन के आंकड़ों को भी देखना चाहिए. लेकिन यह बात भी हमेशा ध्यान में रखें कि पिछला प्रदर्शन भविष्य में जारी रहेगा या नहीं, इसकी गारंटी नहीं होती. फंड्स के खर्च यानी एक्सपेंस रेशियो की तुलना भी करनी चाहिए, क्योंकि अगर खर्च ज्यादा है, तो आपका रिटर्न कम हो सकता है. साथ ही, फंड मैनेजर और फंड हाउस की साख पर नजर डालना भी जरूरी है.