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How to Choose Right Mutual Fund Scheme : सही म्यूचुअल फंड स्कीम चुनने के लिए उसके बारे में पूरी जानकारी हासिल करना जरूरी है. (Image : Pixabay)
How to Select Right Mutual Fund Scheme for You : म्यूचुअल फंड्स को रिटेल इनवेस्टर्स के लिए निवेश का बेहतर जरिया माना जाता है. ले्किन निवेश का यह तरीका तभी सफल हो सकता है जब म्यूचुअल फंड स्कीम का चुनाव बेहतर ढंग से और पूरी समझदारी के साथ किया जाए. सही म्यूचुअल फंड सेलेक्ट करने के लिए बाजार में मौजूद स्कीम्स के बारे में आपके पास हर जरूरी जानकरी होनी चाहिए. इसके लिए सिर्फ ऑनलाइन रिसर्च करना काफी नहीं है. स्कीम से जुड़े डॉक्युमेंट्स को बारीकी से पढ़ना आपके काफी काम आ सकता है. अगर आप ऐसा करेंगे तो अपने रिस्क प्रोफाइल और निवेश के लक्ष्य के हिसाब से सही फैसले ले पाएंगे.
स्कीम डॉक्युमेंट्स में क्या-क्या चेक करें
म्यूचुअल फंड की रणनीतियों, उद्देश्यों और उससे जुड़े रिस्क समेत तमाम जोखिमों की जानकारी हासिल करने के लिए स्कीम इनफॉर्मेशन डॉक्युमेंट (SID) और फैक्ट शीट्स बेहद जरूरी दस्तावेज है. यह डॉक्युमेंट सही फैसला लेने में आपकी मदद कर सकता है. लेकिन इसके लिए आपको यह मालूम होना चाहिए आपको इस दस्तावेज में दी गई किन बातों पर फोकस करना है.
1. फंड ओवरव्यू
स्कीम इंफॉर्मेशन डॉक्युमेंट (SID) के पहले हिस्से में आमतौर पर फंड ओवरव्यू (Fund Overview) दिया जाता है, जिसमें फंड की निवेश रणनीति और उद्देश्य का ब्योरा होता है. फंड के निवेश लक्ष्य में बताया जाता है कि स्कीम का मुख्य मकसद क्या है? लॉन्ग-टर्म कैपिटल ग्रोथ, रेगुलर इनकम, या दोनों? इसके साथ ही यह भी बताया जाता है कि यह एक्टिव मैनेजमेंट वाली स्कीम है, जिसमें निवेश के फैसले फंड मैनेजर पर निर्भर हैं या यह किसी बेंचमार्क इंडेक्स को पूरी तरह कॉपी करने वाली पैसिव स्कीम है, जिन्हें आमतौर पर इंडेक्स फंड कहते हैं.
2. इनवेस्टमेंट स्ट्रैटजी
स्कीम से जुड़े दस्तावेज में उसकी निवेश रणनीति (Investment Strategy) की जानकारी भी दी जाती है. इसके तहत फंड की इनवेस्टमेंट फिलॉसफी, सेक्टर्स, एसेट क्लास और सेगमेंट्स जैसी बातें दी जाती हैं. यह देख लें कि फंड के जरिये इक्विटी, डेट, या किसी और एसेट क्लास में किस तरीके से और किस अनुपात में निवेश किया जाएगा. इसी तरह कुछ फंड टेक्नोलॉजी, हेल्थकेयर, या इंफ्रास्ट्रक्चर जैसी किसी खास थीम पर भी फोकस करते .
3. मिनिमम इनवेस्टमेंट और SIP के ऑप्शन
निवेशकों को यह भी चेक करना चाहिए कि स्कीम में निवेश के लिए कौन-कौन से विकल्प मौजूद हैं. लंप सम यानी एकमुश्त निवेश की रकम कितनी है और सिस्टमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP) के जरिये निवेश कितनी रकम से शुरू किया जा सकता है.
4. रिस्क फैक्टर
हर निवेश के साथ कुछ रिस्क फैक्टर (Risk Factors) यानी जोखिम के कारण जुड़े होते हैं. मिसाल के तौर पर बाजार की स्थिति में उतार-चढ़ाव से जुड़ा मार्केट रिस्क, ब्याज दरों में बदलाव से जुड़ा इंटरेस्ट रेट रिस्क, जो डेट फंड्स पर ज्यादा असर डालता है. क्रेडिट रिस्क, जो खास तौर पर लो-रेटेड बांड्स में निवेश के साथ जुड़ा रहता है. इसी तरह कम लिक्विडिटी वाले एसेट्स के साथ लिक्विडिटी रिस्क जुड़ा रहता है. रिस्क फैक्टर को चेक करना बेहद जरूरी है ताकि आप अपनी रिस्क बर्दाश्त करने की क्षमता के हिसाब से सही फंड का चुनाव कर सकें.
5. एसेट एलोकेशन
कोई फंड अपने कॉर्पस को किस तरह से अलग-अलग सेक्टर्स, मार्केट सेगमेंट, इंडस्ट्री और भौगोलिक इलाकों में बांटकर निवेश करता है, इसकी जानकारी एसेट एलोकेशन (Asset Allocation) के तहत दी जाती है. मिसाल के तौर पर लार्ज कैप फंड बड़े बिजनेस वाली मजबूती कंपनियों में निवेश करते हैं, जबकि स्मॉल कैप फंड उभरती कंपनियों के स्टॉक्स में पैसे लगाते हैं.
6. पिछला प्रदर्शन
सही म्यूचुअल फंड स्कीम का चुनाव करने के लिए पिछले प्रदर्शन (Performance History) की जानकारी हासिल करना भी जरूरी है. हालांकि न्यू फंड ऑफर (NFO) के मामले में यह जानकारी उपलब्ध नहीं होती है, लेकिन मौजूदा स्कीम्स के लिए ये आंकड़े बेहद महत्वपूर्ण हैं. इन आंकड़ों को देखते समय स्कीम के रिटर्न्स की तुलना बेंचमार्क इंडेक्स और उसी कैटेगरी की दूसरी स्कीम से करें. NFO के मामले में आप नई स्कीम के फंड मैनेजर के पिछले रिकॉर्ड की छानबीन करके उसकी परफॉर्मेंस हिस्ट्री चेक कर सकते हैं.
7. फंड मैनेजर का ट्रैक रिकॉर्ड
फंड मैनेजर का अनुभव और ट्रैक रिकॉर्ड फंड के प्रदर्शन को प्रभावित करता है. इसलिए उनके पिछले रिकॉर्ड को देखना जरूरी है. इसमें उनके द्वारा मैनेज दूसरी स्कीम्स का प्रदर्शन भी शामिल है. फंड मैनेजर के पास बाजार की अलग-अलग परिस्थितियों में फंड मैनेजमेंट का अनुभव भी होना चाहिए.
8. एक्सपेंस रेशियो
एक्सपेंस रेशियो (Expense Ratio) का मतलब है फंड के कुल एसेट्स का वह प्रतिशत जो मैनेजमेंट फीस और अन्य चीजों पर खर्च हो जाता है. अगर दो स्कीम्स का लॉन्ग टर्म रिटर्न एक जैसा हो, तो कम एक्सपेंस रेशियो वाले फंड में निवेश करना फायदेमंद होता है.
9. एग्जिट लोड और रिडेम्पशन
स्कीम के दस्तावेजों में एंट्री और एग्जिट (Entry/Exit Load) पर भी जरूर गौर करना चाहिए. एंट्री लोड स्कीम में निवेश करते समय और एग्जिट लोड स्कीम से पैसे निकालते समय देना होता है. इसके अलावा स्कीम की यूनिट्स को रिडीम करने यानी फंड हाउस को वापस बेचने की प्रक्रिया रिडेम्पशन प्रॉसेस (Redemption Process) के बारे में भी जानकरी लेनी चाहिए. मिसाल के तौर पर ELSS में 3 साल का लॉकइन होता है, जबकि कुछ फंड्स में 5 साल का लॉक इन भी होता है.
10. टैक्स प्रावधान
किसी भी फंड से नेट रिटर्न को जानने के लिए उसमें निवेश से जुड़े टैक्स प्रावधानों और उनके असर (Tax Implications) को जानना भी जरूरी है. मिसाल के तौर पर इक्विटी फंड में 12 महीने से ज्यादा की होल्डिंग के बाद हुए मुनाफे पर 12.5% LTCG टैक्स देना पड़ता है, जबकि एक साल में 1.25 लाख रुपये तक के प्रॉफिट पर कोई टैक्स नहीं लगता. वहीं ELSS में निवेश पर इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 80C के तहत टैक्स में छूट मिलती है. दूसरी तरफ नए नियमों के तहत डेट फंड को कितने भी समय तक होल्ड किया जाए, उस पर आपके इनकम टैक्स स्लैब के अनुसार टैक्स देना पड़ता है.
कुल मिलाकर देखें तो म्यूचुअल फंड में निवेश के लिए सही स्कीम चुनना एक बड़ा फैसला है. इसलिए स्कीम से जुड़े डॉक्युमेंट्स को अच्छी तरह पढ़ना और समझना जरूरी है, ताकि आप निवेश से जुड़े रिस्क और संभावनाओं को बेहतर तरीके से जानने के बाद ही फैसला करें.