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ETF investment tips : निवेश के लिए ईटीएफ चुनते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? (AI Generated Image)
ETF Investment Tips : एक्सचेंज ट्रेडेड फंड यानी ETF को म्यूचुअल फंड्स में निवेश का एक लोकप्रिय तरीका माना जाता है. इक्विटी से लेकर गोल्ड तक में निवेश के लिए ईटीएफ का इस्तेमाल किया जाता है. एम्फी के आंकड़ों के मुताबिक अगस्त 2025 में गोल्ड ईटीएफ में नेट इनफ्लो (Net Inflow) 2,189.51 करोड़ रुपये और अन्य ईटीएफ में निवेश 7,244 करोड़ रुपये से अधिक रहा है.
ईटीएफ के पॉपुलर होने बड़ी वजह है कम खर्च में निवेश का मौका. खास तौर पर इक्विटी में कम लागत में डायवर्सिफाइड पोर्टफोलियो बनाने के लिए इसे काफी बेहतर माना जाता है. लेकिन बाजार में अभी 20 से अधिक गोल्ड ईटीएफ और 250 से ज्यादा अन्य ETF मौजूद हैं. लिहाजा इनमें से सही फंड चुनना आसान काम नहीं है. गलत ETF चुन लेने पर रिटर्न उम्मीद से कम भी हो सकते हैं और बेचने में दिक्कत भी आ सकती है. इसलिए सही ETF चुनने से पहले इन 5 अहम बातों को समझना जरूरी है.
1. ETF किस इंडेक्स को ट्रैक करता है
ETF असल में किसी इंडेक्स को ट्रैक करता है. इसका मतलब यह है कि आप सीधे-सीधे उसी इंडेक्स में शामिल कंपनियों या एसेट्स में निवेश कर रहे हैं. जैसे अगर कोई ईटीएफ Nifty 50 या Sensex 30 को ट्रैक करता है तो उसमें देश की सबसे बड़ी 50 या 30 बड़ी कंपनियों के स्टॉक्स शामिल होंगे. इसलिए यह जानना बेहद जरूरी है कि आपका चुना हुआ ETF किस इंडेक्स को फॉलो कर रहा है और क्या वह आपके निवेश लक्ष्य से मेल खाता है.
2. ट्रैकिंग एरर पर नजर रखें
ETF हमेशा अपने बेंचमार्क इंडेक्स को हूबहू फॉलो करने की कोशिश करता है. फिर भी इसमें थोड़ा-बहुत फर्क रहता है, जिसे ट्रैकिंग एरर कहते हैं. अगर ट्रैकिंग एरर कम है तो इसका मतलब है कि फंड इंडेक्स को सही तरह से फॉलो कर रहा है. वहीं अगर यह ज्यादा है तो आपका रिटर्न इंडेक्स से मेल नहीं खाएगा और नुकसान भी हो सकता है. इसलिए हमेशा ऐसे ETF को चुनना बेहतर है जिसका ट्रैकिंग एरर सबसे कम हो.
3. लिक्विडिटी यानी खरीद-फरोख्त में आसानी
हम निवेश सिर्फ कमाने के लिए नहीं, इसलिए भी करते हैं कि जरूरत पड़ने पर पैसे निकाल सकें. ETF से पैसे निकालने के लिए उसकी लिक्विडिटी बढ़िया होनी चाहिए. यानी उसे खरीदना और बेचना आसान होना चाहिए. अगर किसी फंड में कारोबार ज्यादा होता है यानी बड़ी संख्या में खरीदार और बेचने वाले मौजूद रहते हैं, तो आप जरूरत पड़ने पर उसे आसानी से बेचकर पैसे निकाल पाएंगे. लेकिन अगर बाजार में ईटीएफ की डिमांड कम है, तो आपको उसे फौरन बेचने में या सही दाम मिलने में दिक्कत हो सकती है. इसलिए हमेशा ऐसे ETF का चुनाव करें जिसकी लिक्विडिटी ज्यादा हो.
4. ETF प्राइस और NAV का फर्क
ETF की नेट एसेट वैल्यू यानी NAV बताती है कि उसमें मौजूद कुल एसेट्स की कीमत कितनी है. सामान्य तौर पर ETF की प्राइस उसके NAV के आसपास होनी चाहिए. लेकिन कई बार यह उससे कम या ज्यादा भाव पर भी ट्रेड करता है. अगर किसी ईटीएफ की मार्केट प्राइस, उसकी एनएवी से बहुत ज्यादा है तो इसका मतलब है कि आप उसके लिए जरूरत से ज्यादा पैसे दे रहे हैं. इसलिए निवेश से पहले यह देख लेना जरूरी है कि ETF की कीमत उसके NAV के करीब ही हो, ताकि आपको फालतू पैसे न देने पड़ें.
5. एक्सपेंस रेशियो यानी खर्च कितना है
हर ETF में निवेश के साथ उसके मैनेजमेंट का खर्च भी जुड़ा होता है, जिसे एक्सपेंस रेशियो कहते हैं. आम तौर पर दूसरे म्यूचुअल फंड्स के मुकाबले ईटीएफ का एक्सपेंस रेशियो कम होता है, इसलिए यह रकम आपको पहली नजर में बेहद छोटी लग सकती है, लेकिन लंबे समय में यह खर्च आपके रिटर्न पर बड़ा असर डाल सकता है. मान लीजिए किसी ETF का एक्सपेंस रेशियो 0.05% है और दूसरे का 0.10%, तो शुरुआत में फर्क मामूली लगेगा. लेकिन साल दर साल यही फर्क रिटर्न में बड़ा अंतर ला सकता है. इसलिए हमेशा ऐसे ETF को सेलेक्ट करें, जिसका एक्सपेंस रेशियो ज्यादा न हो.
सही ETF चुनना किसी भी निवेशक के लिए बड़ा फैसला है क्योंकि यह आपके लंबे समय के रिटर्न पर सीधा असर डालता है. अगर आप अपने लिए ईटीएफ का सेलेक्शन करते समय ऊपर बताई गई 5 बातों का ध्यान रखेंगे, तो सही फैसला लेने में मदद मिलेगी.
(डिस्क्लेमर : इस आर्टिकल का मकसद सिर्फ जानकारी देना है, किसी स्कीम में निवेश की सलाह देना नहीं. निवेश का कोई भी फैसला अपने इनवेस्टमेंट एडवाइजर से सलाह-मशविरा करने के बाद ही करें)