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Gold and Silver Investment : हाल में आई तेजी के बीच सोने और चांदी में निवेश की सही रणनीति क्या होनी चाहिए? (Image : Freepik)
Gold and Silver Investment : सोने-चांदी की कीमतों में जबरदस्त तेजी देखी जा रही है. बीते एक साल में गोल्ड और सिल्वर पर आधारित ज्यादातर ईटीएफ (Gold and Silver ETF) ने भी 40% से ज्यादा एवरेज रिटर्न दिया है. निवेशकों के लिए बड़ा सवाल यह है कि क्या इस तेजी के बाद अब भी सोने-चांदी में निवेश करना सही रहेगा? और अगर हां, तो किस तरीके से.
सोने-चांदी की कीमतें रिकॉर्ड ऊंचाई पर
सोने-चांदी की कीमतें नई ऊंचाइयां छू रही हैं.इनका असर ईटीएफ पर भी पड़ा है. पिछले 12 महीनों में गोल्ड ईटीएफ (Gold Etf) ने औसतन 40.44% का रिटर्न दिया है. इस दौरान 16 गोल्ड ईटीएफ मार्केट में एक्टिव रहे, जिनमें टाटा गोल्ड ETF ने सबसे ज्यादा 40.76%, आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल गोल्ड ETF ने 40.74% और आदित्य बिरला सनलाइफ गोल्ड ETF ने भी 40.67% का मजबूत रिटर्न दिया.
सिल्वर ETF भी पीछे नहीं रहे. 21 सिल्वर ईटीएफ का औसत रिटर्न 36.14% रहा. टाटा सिल्वर ETF ने 36.78% और आदित्य बिड़ला सन लाइफ सिल्वर ETF ने 36.72% रिटर्न दिया. सबसे कम रिटर्न यूटीआई सिल्वर ETF फंड ऑफ फंड ने भी 35.86% दिया, जो कम नहीं है. ये सभी आंकड़े एम्फी (AMFI) के पोर्टल पर 29 अगस्त 2025 तक अपडेटेड है.
क्यों बढ़ रही है सोने-चांदी की चमक
जानकारों के मुताबिक सोने और चांदी की कीमतों में यह उछाल जियो-पोलिटिकल टेंशन, टैरिफ को लेकर जारी उथल-पुथल और इंडस्ट्रियल डिमांड की वजह से आया है. खासतौर पर सिल्वर की डिमांड सेमीकंडक्टर, सोलर पैनल, इलेक्ट्रिक वेहिकल (EV) और ग्रीन टेक्नोलॉजी में ज्यादा हो रही है. यही वजह है कि चांदी 10 साल के ऊंचे स्तर पर पहुंची है.
सोना पारंपरिक रूप से एक डिफेंसिव एसेट माना जाता है, जो बाजार में अनिश्चितता और डर के समय निवेशकों को सुरक्षा देता है. यही कारण है कि हर अस्थिर दौर में सोने की कीमतें ऊपर जाती हैं.
पोर्टफोलियो में कितना हो गोल्ड-सिल्वर का हिस्सा
आपके पोर्टफोलियो में सोने-चांदी की हिस्सेदारी 10–20% से ज्यादा नहीं होनी चाहिए. बाकी निवेश इक्विटी और डेट में होना चाहिए. आमतौर पर 80:20 का इक्विटी-डेट रेशियो संतुलित माना जाता है, और सोना-सिल्वर इसमें हेजिंग यानी रिस्क से बचाने का काम करते हैं. इसका मतलब है कि गोल्ड और सिल्वर आपको लगातार ऊंचा रिटर्न नहीं देंगे, लेकिन आपके पोर्टफोलियो को अस्थिरता से बचाने और डाइवर्सिफिकेशन देने का काम करेंगे.
ETF और SIP के जरिये निवेश बेहतर
सोने-चांदी की मौजूदा ऊंची कीमतों पर एकमुश्त निवेश करना जोखिम भरा हो सकता है. बेहतर है कि निवेशक एसआईपी (SIP) के जरिए धीरे-धीरे इनमें पैसा लगाएं. इससे कीमतों के उतार-चढ़ाव की एवरेजिंग हो जाती है और लंबी अवधि में बेहतर नतीजे मिलते हैं.
ETF सोने-चांदी में निवेश का सबसे आसान और ज्यादा पारदर्शी तरीका है. गोल्ड ETF में हर यूनिट आम तौर पर 1 ग्राम सोने की वैल्यू को बताती है. इन्हें आप डिमैट अकाउंट के जरिए शेयरों की तरह खरीद-बेच सकते हैं. सिल्वर ETF भी इसी तरह काम करते हैं.
निवेशकों के लिए क्या है सही रणनीति
अगर आप सोने-चांदी में निवेश करना चाहते हैं तो इसे स्पेक्युलेटिव यानी सट्टे नजरिए से नहीं बल्कि एसेट एलोकेशन के नजरिए से देखें. यह लंबे समय में आपके पोर्टफोलियो को स्टेबल और सुरक्षित बनाते हैं.
– पोर्टफोलियो में गोल्ड और सिल्वर की हिस्सेदारी 10–20% तक रखें.
– एकमुश्त निवेश की बजाय SIP से धीरे-धीरे खरीदें.
– ETFs को प्रायोरिटी दें क्योंकि वे पारदर्शी, आसान और लिक्विड होते हैं.
– अगर प्रोफेशनल मैनेजमेंट चाहिए तो मल्टी-एसेट एलोकेशन फंड भी विकल्प हो सकते हैं.
सोने-चांदी में तेजी के बावजूद निवेशकों को सावधानी से कदम बढ़ाना चाहिए. यह सही है कि हाल में ETFs ने 40% तक का रिटर्न दिया है, लेकिन भविष्य में इनका रोल मुख्य रूप से पोर्टफोलियो को स्टेबल रखने और जोखिम कम करने का रहेगा. सही रणनीति यही है कि इन्हें लंबी अवधि के लिए एसेट एलोकेशन का हिस्सा बनाएं, न कि शॉर्ट-टर्म मुनाफे के लिए.
(डिस्क्लेमर : इस आर्टिकल का मकसद सिर्फ जानकारी देना है. निवेश की सिफारिश करना नहीं. निवेश के फैसले अपने निवेश सलाहकार की राय लेकर ही करें.)