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Mutual Fund Categories : निवेश के लिए सही स्कीम का चुनाव करना हो तो म्यूचुअल फंड्स की अलग-अलग कैटेगरीज को समझना जरूरी है. (Image : Pixabay)
Equity Mutual Fund Categories : म्यूचुअल फंड्स, उनके प्रदर्शन, एनएवी और रैंकिंग की चर्चा करते समय आपने ब्लूचिप फंड या लार्ज-कैप फंड का जिक्र जरूर सुना होगा. दोनों ही नाम वाले फंड्स का निवेश मुख्यतौर पर बाजार की दिग्गज कंपनियों में होता है. ऐसे में कई बार मन में यह सवाल भी आता होगा कि आखिर ब्लूचिप फंड, लार्ज कैप फंड समेत म्यूचुअल फंड्स के अलग-अलग नामों और कैटेगरीज़ का मतलब क्या है और उन्हें एक-दूसरे से किस आधार पर अलग किया जाता है? सबसे पहले जानते हैं ब्लूचिप फंड और लार्ज कैप फंड का मतलब.
सेबी के सर्कुलर में ब्लू चिप फंड का जिक्र नहीं
अगर आप म्यूचुअल फंड्स की अलग-अलग कैटेगरी की जानकारी देने वाले सेबी के 2018 से लागू सर्कुलर को देखेंगे, तो उसमें ब्लू चिप फंड का कोई जिक्र नहीं है. ऐसा इसलिए, क्योंकि अगर कोई फंड मार्केट कैपिटलाइजेशन के हिसाब से टॉप 100 लिस्टेड कंपनियों में निवेश करता है, तो उसे लार्ज-कैप म्यूचुअल फंड की कैटेगरी में ही रखा जाता है. ब्लू चिप कंपनी भी बाजार की दिग्गज कंपनियों को ही कहते हैं. ब्लूचिप फंड भी टॉप 100 कंपनियों के शेयर्स में ही निवेश करते हैं. और इस लिहाज से वे भी लार्ज कैप फंड ही हैं. सीधे-सीधे कहें तो ब्लूचिप फंड भी दरअसल लार्ज कैप फंड ही होते हैं. सिर्फ उनका नामकरण अलग है. इसलिए अगर आप कभी किसी स्कीम के नाम में ब्लूचिप फंड लिखा देखें, तो समझ लें कि वह भी एक लार्ज कैप फंड ही है. सेबी की परिभाषा के मुताबिक लार्ज कैप फंड्स मुख्य तौर पर उन कंपनियों में निवेश करते हैं जो मार्केट कैपिटलाइजेशन के लिहाज से बाजार की टॉप 100 कंपनियों में शामिल होती हैं.
दरअसल SEBI ने म्यूचुअल फंड्स को कई अलग-अलग कैटेगरीज में बांटा है ताकि निवेशक अपनी जरूरत और रिस्क लेने की क्षमता के हिसाब से सही स्कीम सेलेक्ट कर सकें. इनमें प्रमुख कैटेगरीज का मतलब आप यहां जान सकते हैं:
लार्ज कैप फंड
लार्ज कैप फंड्स अपने कॉर्पस का कम से कम 80% हिस्सा उन कंपनियों के स्टॉक्स में लगाते हैं, जो मार्केट कैप के लिहाज से मार्केट की टॉप 100 कंपनियों में शामिल होती हैं. ये कंपनियां काफी बड़ी होने की वजह से आम तौर पर मजबूत मानी जाती हैं और स्टेबल रिटर्न देती हैं. यानी इनमें रिस्क तुलनात्मक रूप से कम माना जाता है.
मिड कैप फंड्स
ये फंड्स अपने कॉर्पस का कम से कम 65% हिस्सा मिड कैप स्टॉक्स में निवेश करते हैं. मिड कैप स्टॉक्स उन कंपनियों के शेयरों को कहते हैं, जो मार्केट कैप के लिहाज से बाजार में 101वें से 250वें नंबर पर आती हैं. इन कंपनियों में आमतौर पर ग्रोथ पोटेंशियल और हाई रिटर्न देने की क्षमता लार्ज कैप से अधिक मानी जाती है, लेकिन इनमें रिस्क भी उनसे अधिक रहता है.
स्मॉल कैप फंड्स
ये फंड्स अपने कॉर्पस का कम से कम 65% हिस्सा स्मॉल कैप स्टॉक्स में निवेश करते हैं. स्मॉल कैप स्टॉक्स उन कंपनियों के शेयर्स को कहते हैं, जिनकी रैंक मार्केट कैपिटलाइजेशन के हिसाब से बाजार में 251वें नंबर पर या उससे नीचे होती है. इन स्टॉक्स में रिटर्न की संभावना और रिस्क, दोनों ही, लार्ज कैप और मिड कैप से ज्यादा माने जाते हैं.
मल्टी कैप, फ्लेक्सी कैप जैसे डायवर्सिफाइड फंड
म्यूचुअल फंड्स में लार्ज कैप, मिड कैप और स्मॉल कैप की कैटेगरी मार्केट कैप के अलग-अलग सेगमेंट में निवेश के आधार पर बनती हैं. लेकिन कई डायवर्सिफाइड फंड्स ऐसे होते हैं, जो इन सभी कैटेगरीज़ में बांटकर निवेश करते हैं. फ्लेक्सी कैप और मल्टी कैप इस तरह के फंड्स की पॉपुलर कैटेगरी हैं. मल्टी कैप फंड के पोर्टफोलियो में लार्ज कैप, मिड कैप और स्मॉल कैप, तीनों का हिस्सा 25-25% होता है, जबकि फ्लेक्सी कैप में ये हिस्सेदारी फिक्स नहीं होती. फंड मैनेजर, लार्ज, मिड और स्मॉल कैप, तीनों सेगमेंट के शेयर्स में अपनी समझ के हिसाब से निवेश कर सकते हैं. इनके अलावा लार्ज एंड मिड कैप फंड भी होते हैं, जो कम से कम 35% निवेश लार्ज कैप में और मिनिमम इतना ही निवेश मिड कैप में करते हैं.
इक्विटी फंड की अन्य प्रमुख कैटेगरी
ऊपर बताई गई कैटेगरी के अलावा इक्विटी म्यूचुअल फंड्स में सेक्टोरल या थीमैटिक फंड, फोकस्ड फंड, इक्विटी लिंक्ड सेविंग्स स्कीम (ELSS), वैल्यू फंड, कॉन्ट्रा फंड, डिविंडेड यील्ड फंड जैसी कई और कैटेगरीज़ भी शामिल हैं. इनमें सेक्टोरल या थीमैटिक फंड और ईएलएसएस में इक्विटी एक्सपोजर कम से कम 80% होता है, जबकि बाकी कैटेगरीज के फंड्स का कम से कम 65% इक्विटी में निवेश करना जरूरी है.
कैसे करें सही फंड का सेलेक्शन?
इक्विटी फंड्स की इतनी सारी कैटेगरीज़ में से अपने लिए सही फंड कैटेगरी और फिर सही स्कीम का चुनाव करना आसान नहीं है. लेकिन एक बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि इक्विटी फंड्स में निवेश लंबे समय के लिए करना बेहतर रहता है. इसके अलावा सिस्टमैटिक इनवेस्टमेंट प्लान (SIP) के जरिये नियमित निवेश किया जाए, तो रिस्क को कम रखने में मदद मिलती है. आम तौर पर डायवर्सिफाइड फंड्स को सेक्टोरल या थीमैटिक फंड्स की तुलना में कम रिस्की माना जाता है.
सोच-समझकर फैसला लें
किसी भी इक्विटी फंड में निवेश का फैसला करते समय निवेशकों को अपनी रिस्क लेने की क्षमता, निवेश के उद्देश्य और निवेश की अवधि पर ध्यान देना चाहिए. म्यूचुअल फंड्स की अलग-अलग कैटेगरीज को समझना और अपनी जरूरतों के अनुसार सही फंड का चयन करना बेहद महत्वपूर्ण है. सही रणनीति और समझदारी के साथ किया गया निवेश ही बेहतर रिटर्न दिला सकता है.
(डिस्क्लेमर : इस आर्टिकल का उद्देश्य सिर्फ जानकारी देना है, निवेश की सिफारिश करना नहीं. निवेश का कोई भी फैसला अपने निवेश सलाहकार की राय लेने के बाद ही करें.)