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NFO vs IPO Explained : म्यूचुअल फंड का नया ऑफर IPO नहीं! जानिए फर्क, फायदे और निवेश के टिप्स

NFO vs IPO: म्यूचुअल फंड के न्यू फंड ऑफर और कंपनी के IPO में क्या फर्क है? जानें किसमें निवेश करना है बेहतर, कितना होता है रिस्क और कैसे करें सही फैसला.

NFO vs IPO: म्यूचुअल फंड के न्यू फंड ऑफर और कंपनी के IPO में क्या फर्क है? जानें किसमें निवेश करना है बेहतर, कितना होता है रिस्क और कैसे करें सही फैसला.

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Viplav Rahi
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NFO vs IPO, NFO vs IPO Difference Explained

NFO vs IPO Difference : क्या आईपीओ जैसा होता है एनएफओ? म्यूचुअल फंड निवेशक दूर करें अपना कन्फ्यूजन (AI Generated Image)

NFO vs IPO Difference Explained : म्यूचुअल फंड में निवेश करने वाले ज्यादातर लोगों ने "NFO" यानी न्यू फंड ऑफर (New Fund Offer) का नाम जरूर सुना होगा. कई बार निवेशक यह मान लेते हैं कि NFO भी IPO की तरह होता है, लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है. IPO और NFO दोनों का मकसद, तरीका और इनमें इनवेस्टमेंट का मतलब पूरी तरह अलग है. IPO में आप किसी कंपनी के शेयर खरीदते हैं, जबकि NFO में आप म्यूचुअल फंड की यूनिट्स लेते हैं. तो आखिर क्या है इन दोनों के बीच अंतर? और इनमें निवेश करने से पहले किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

क्या है NFO का मतलब?

जब कोई म्यूचुअल फंड हाउस अपनी नई स्कीम लॉन्च करता है और जब निवेशकों के लिए उसमें पहली बार सब्सक्रिप्शन खोला जाता है, तो उसे न्यू फंड ऑफर (New Fund Offer) या NFO कहते हैं. इस दौरान आमतौर पर निवेशकों को फंड की एक यूनिट के लिए 10 रुपये चुकाने होते हैं.

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NFO का सब्सक्रिप्शन पीरियड खत्म होने के बाद भी निवेशक उसी फंड में निवेश कर सकते हैं, लेकिन तब उन्हें यूनिट्स उस वक्त मार्केट में चल रही नेट एसेट वैल्यू (NAV) के आधार पर मिलती हैं. दरअसल, म्यूचुअल फंड कंपनियां NFO के जरिये निवेशकों से जुटाए गए पैसे स्कीम की थीम और रणनीति के हिसाब से बाजार में लगाती हैं. इस निवेश पर मिलने वाले रिटर्न के आधार पर ही फंड के एक यूनिट की नेट एसेट वैल्यू (NAV) तय होती है.

IPO और NFO में क्या है फर्क?

पहली नजर में NFO और IPO दोनों एक जैसे दिख सकते हैं, लेकिन हकीकत में दोनों का ढांचा पूरी तरह अलग होता है.

इनीशियल पब्लिक ऑफर (Initial Public Offer - IPO) वह प्रॉसेस है, जिसके जरिए कोई कंपनी पहली बार शेयर बाजार में अपने शेयर लाती है. IPO में निवेश करने वाले निवेशक उस कंपनी के शेयरहोल्डर बन जाते हैं. वहीं NFO में निवेशक म्यूचुअल फंड यूनिट्स खरीदते हैं, जो किसी एसेट क्लास — जैसे इक्विटी, डेट या हाइब्रिड इंस्ट्रूमेंट्स — में निवेश करती हैं.

IPO में निवेश से पहले कंपनी के फंडामेंटल्स, प्रॉफिटेबिलिटी और वैल्यूएशन को समझना जरूरी होता है. वहीं NFO में निवेश से पहले आपको उसकी थीम, फंड हाउस की मजबूती और फंड मैनेजर के ट्रैक रिकॉर्ड पर गौर करना चाहिए.

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IPO कैसे काम करता है?

IPO यानी Initial Public Offer किसी कंपनी के शेयर बाजार में लिस्ट होने का पहला कदम होता है. IPO के जरिये कंपनी अपनी हिस्सेदारी जनता को बेचती है और बदले में पूंजी जुटाती है.

IPO में शेयर की इश्यू प्राइस कंपनी के मुनाफे, कारोबार और मार्केट वैल्यूएशन के आधार पर तय होती है. शेयर लिस्टिंग के बाद उसकी कीमत डिमांड-सप्लाई और मार्केट सेंटिमेंट से प्रभावित होती है. IPO के निवेशक सीधे उस कंपनी के मालिकाना हिस्से (ownership) में भागीदार बन जाते हैं.

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NFO कैसे काम करता है?

NFO यानी New Fund Offer के तहत म्यूचुअल फंड अपनी यूनिट्स को 10 रुपये के फिक्स प्राइस पर निवेशकों को ऑफर करता है. इसका किसी फंड हाउस के वैल्यूएशन या पिछले प्रदर्शन से कोई संबंध नहीं होता.

NFO में जुटाई गई रकम को फंड हाउस अपनी स्कीम की थीम के अनुसार अलग-अलग शेयरों, डेट इंस्ट्रूमेंट्स या अन्य एसेट्स में निवेश करता है. NFO के बाद फंड की यूनिट्स की कीमत उसकी NAV के आधार पर तय होती है, जो उस फंड के पोर्टफोलियो की मार्केट वैल्यू दर्शाती है.

NFO और IPO में क्या है अंतर

तुलना का आधार

NFO (New Fund Offer)

IPO (Initial Public Offer)

किसमें होता है निवेश

म्यूचुअल फंड यूनिट्स

कंपनी के शेयर

कैसे तय होती है कीमत

फिक्स्ड 10 रुपये प्रति यूनिट

कंपनी के वैल्यूएशन पर निर्भर

रिस्क लेवल

फंड की थीम से तय होता है 

कंपनी के प्रदर्शन से तय होता है

कैसे मिलता है रिटर्न

NAV के आधार पर

शेयर के मार्केट प्राइस पर

ओनरशिप (Ownership)

फंड में हिस्सेदारी

कंपनी में हिस्सेदारी

क्या NFO में निवेश करना चाहिए?

NFO में निवेश करना तभी समझदारी है जब उसकी थीम, निवेश रणनीति और उद्देश्य आपकी लॉन्ग टर्म फाइनेंशियल गोल्स से मेल खाते हों. अगर फंड की थीम आकर्षक लगती है और फंड हाउस भरोसेमंद है, तो इनमें निवेश किया जा सकता है. किसी भी NFO में निवेश करने से पहले उसके स्कीम इंफॉर्मेशन डॉक्युमेंट (SID) को पढ़ें, फंड हाउस का रिकॉर्ड देखें और जरूरत हो तो सेबी रजिस्टर्ड इनवेस्टमेंट एडवाइजर से सलाह जरूर लें.

NFO के बाद भी मिलता है निवेश का मौका

NFO में सब्सक्रिप्शन बंद हो जाने के बाद भी आप चाहें तो ओपन-एंडेड म्यूचुअल फंड्स में निवेश कर सकते हैं. जब फंड दोबारा ओपन होता है, तो निवेशक उस समय की NAV के हिसाब से यूनिट्स खरीद सकते हैं. यानी अगर आप किसी ओपन-एंडेड फंड की थीम से प्रभावित हैं, तो NFO बंद होने के बाद भी निवेश का रास्ता खुला रहता है.

इसलिए यह मानना गलत है कि NFO में निवेश करना किसी “खास मौके” का फायदा उठाने जैसा है. कई बार पुराने, अच्छे परफॉर्मेंस वाले फंड्स में निवेश करना ज्यादा फायदेमंद साबित होता है, क्योंकि वहां आपको फंड का ट्रैक रिकॉर्ड और मैनेजर की रणनीति समझने का मौका मिलता है. हालांकि यह भी याद रखना चाहिए कि म्यूचुअल फंड का पिछला रिटर्न आगे भी जारी रहेगा, इसकी गारंटी नहीं होती. 

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सोच-समझकर निवेश करें

NFO हो या IPO, निवेश हमेशा सोच-समझकर और अपनी रिस्क लेने की क्षमता को ध्यान में रखकर करना चाहिए. NFO में निवेश से पहले फंड की रणनीति, रिस्क प्रोफाइल और फंड हाउस के अनुभव को गहराई से समझें. और अगर IPO में निवेश करना है, तो कंपनी के प्रदर्शन, फाइनेंशियल हेल्थ और उससे जुड़ी इंडस्ट्री के माहौल और फ्यूचर आउटलुक समेत तमाम बातों पर विचार करें. 

FAQs: NFO और IPO को लेकर अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

1. क्या NFO में निवेश करना फायदेमंद होता है?

NFO में निवेश फायदेमंद तभी होता है जब उसकी थीम और निवेश रणनीति आपकी फाइनेंशियल जरूरतों से मेल खाती हो. हर नया फंड जरूरी नहीं कि बेहतर रिटर्न दे. पुराने और परफॉर्मेंस साबित कर चुके फंड्स कई बार ज्यादा भरोसेमंद विकल्प साबित होते हैं. अगर किसी NFO की थीम बाजार में पहले से मौजूद किसी स्कीम जैसी है, तो बेहतर ट्रैक रिकॉर्ड वाले फंड में निवेश करने में ज्यादा समझदारी है.

2. क्या NFO और IPO एक जैसे होते हैं?

नहीं. IPO में आप किसी कंपनी के शेयर खरीदते हैं और उसके शेयरहोल्डर बनते हैं, जबकि NFO में आप म्यूचुअल फंड यूनिट्स खरीदते हैं, जो शेयर, डेट या अन्य एसेट्स में निवेश करती हैं. यानी IPO में आप कंपनी में हिस्सा लेते हैं, NFO में किसी फंड की स्कीम में.

3. क्या NFO बंद होने के बाद उसमें निवेश किया जा सकता है?

अगर NFO एक ओपन-एंडेड फंड है, तो उसका सब्सक्रिप्शन पीरियड खत्म होने के बाद भी आप उसमें NAV के आधार पर निवेश कर सकते हैं. लेकिन क्लोज-एंडेड फंड्स में ऐसा नहीं होता — वे एक तय समय के लिए ही खुले रहते हैं.

4. क्या NFO में निवेश का रिस्क ज्यादा होता है?

NFO में रिस्क उसकी थीम और एसेट एलोकेशन पर निर्भर करता है. चूंकि फंड का कोई पिछला परफॉर्मेंस रिकॉर्ड नहीं होता, इसलिए इसमें थोड़ा ज्यादा जोखिम रहता है. ऐसे में फंड हाउस की साख और फंड मैनेजर के अनुभव को जरूर देखें.

5. क्या NFO में यूनिट्स सस्ती मिलती हैं?

यह एक कनफ्यूजन है. NFO में 10 रुपये में यूनिट मिलने का मतलब यह नहीं कि यूनिट सस्ती मिल रही है. किसी फंड की असली कीमत उसकी निवेश रणनीति और पोर्टफोलियो से तय होती है, न कि यूनिट की फेस वैल्यू से.

6. NFO में निवेश करने से पहले किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

  • फंड की थीम और निवेश रणनीति को समझें.

  • फंड हाउस की साख और फंड मैनेजर का अनुभव देखें.

  • यह जांचें कि फंड आपके लॉन्ग टर्म गोल्स से मेल खाता है या नहीं.

  • बिना रिसर्च या सलाह के सिर्फ “नए” फंड के लालच में निवेश न करें.

(डिस्क्लेमर: इस लेख का मकसद केवल जानकारी देना है, निवेश की सलाह देना नहीं. निवेश का फैसला करने से पहले सेबी से मान्यता प्राप्त इनवेस्टमेंट एडवाइजर की सलाह जरूर लें.)

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