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SEBI new mutual fund rules : सेबी अगर यह रिफॉर्म सफलता पूर्वक लागू करे तो इसका फायदा निश्चित रूप से निवेशकों को होगा. Photograph: (AI Image)
How SEBI's performance-linked fees benefit investors : मार्केट रेगुलेटर सेबी (SEBI) की म्यूचुअल फंड के फ्री स्ट्रक्चर में बड़े बदलाव की तैयारी है. अपने कंसल्टिंग पेपर में, सेबी (Securities and Exchange Board of India) ने म्यूचुअल फंड नियमों में कुछ बड़े बदलाव का प्रपोजल रखा है. इसी में एक है कि म्यूचुअल फंड हाउस अपनी स्कीम के परफॉर्मेंस के आधार पर अलग-अलग खर्च (एक्सपेंस रेश्यो) ले सकते हैं. अभी तक यह वैकल्पिक है (AMCs चाहें तो लागू करें).
इसका क्या मतलब हुआ?
सेबी अगर यह रिफॉर्म लागू करता है तो इसका मतलब यह हुआ कि अगर फंड अच्छा प्रदर्शन (High Return) कर रहा है तो एसेट मैनेजमेंट कंपनियां ज्यादा शुल्क ले सकती है, जबकि फंड का प्रदर्शन खराब है तो शुल्क कम होगा.
अब सवाल यह है कि प्रदर्शन के आधार पर खर्च मॉडल (परफॉर्मेंस लिंक्ड एक्सपेंस रेश्यो) से निवेशकों को फायदा होगा या नहीं, यह मॉडल कैसे काम करेगा?
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फंड मैनेजर की बढ़ेगी जिम्मेदारी
बीपीएन फिनकैप के डायरेक्टर एके निगम का कहना है कि सेबी अगर यह रिफॉर्म सफलता पूर्वक लागू करे तो इसका फायदा निश्चित रूप से निवेशकों को होगा. क्योंकि इस नियम के चलते हर फंड मैनेजर की मार्केट में रिस्पांससिबिलिटी बढ़ेगी. फंड मैनेजर की कोशिश होगी कि वह स्कीम अपने बेंचमार्क की तुलना में बेहतर प्रदर्शन करे. बेंचमार्क से बेहतर रिटर्न दे सके. इसके लिए वह ज्यादा जिम्मेदारी से काम करेंगे.
उनका कहना है कि अगर कोई फंड अपने बेंचमार्क से बेहतर रिटर्न देता है, तो उसे ज्यादा फीस मिलनी चाहिए, यह बात ठीक भी लगती है. जो भी स्कीम परफॉर्म करके देगी, निवेशक उसके लिए ज्यादा फीस देने को तैयार होंगे.
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हालांकि उनका यह भी कहना है कि इसका मतलब यह नहीं कि फंड मैनेजर अभी ज्यादा जिम्मेदारी से काम नहीं करते. क्योंकि अगर स्कीम बेहतर परफॉर्म नहीं करेगी तो निवेशक स्विच करेंगे या पैसे निकालेंगे. फिर भी सही तरीके से बनाया गया मॉडल जवाबदेही बढ़ाएगा.
क्या हो सकता है बेहतर तरीका?
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर परफॉर्मेंस-आधारित फीस लागू करनी है, तो सिर्फ सालाना रिटर्न देखने के बजाय रोलिंग रिटर्न का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. रोलिंग रिटर्न यह दिखाते हैं कि फंड कई समय अवधि में कितना लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रहा है और इससे छोटे-समय की मार्केट उतार-चढ़ाव का असर कम हो जाता है.
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और क्या हो सकते हैं बदलाव?
अतिरिक्त 5 bps चार्ज हटाने का प्लान : SEBI ने म्यूचुअल फंड निवेशकों पर खर्च कम करने के मकसद से, स्कीम के AUM (एसेट अंडर मैनेजमेंट) पर लगने वाला अतिरिक्त 5bps का चार्ज हटाने का प्रस्ताव दिया है.
एक्सपेंस रेश्यो को लेकर प्रपोजल : प्रस्ताव है कि एक्सपेंस रेश्यो से सभी टैक्स अलग होंगे. एक्सपेंस रेश्यो की लिमिट थोड़ी कम की जाएगी (Mutual fund expense ratio reform by SEBI) ताकि सिर्फ इन टैक्स को अलग किया जा सके. इसका फायदा निवेशक को यह है कि भविष्य में टैक्स बढ़े या घटे, सीधा निवेशक तक पास हो सके.
टोटल एक्सपेंस रेश्यो का खुलासा : इसका मतलब है कि अब फंड कंपनियों को TER के हर खर्च का पूरा विवरण साफ-साफ बताना होगा, ताकि निवेशकों को पूरी पारदर्शिता मिले.
AMC के बिजनेस गतिविधियों पर नियम : एएमसी को कुछ शर्तों के साथ गैर-पूल्ड फंड्स के लिए भी इन्वेस्टमेंट मैनेजमेंट और सलाह देने की अनुमति दी जाएगी. यानी AMC अलग-अलग बिजनेस कर सकती है, लेकिन टीम, डेटा और फैसले पूरी तरह अलग-थलग होने चाहिए, ताकि छोटे निवेशकों का नुकसान न हो.
नोट : यह आर्टिकल सिर्फ जानकारी के लिए है और यह एक्सपर्ट से बात चीत और सेबी के कंसल्टिंग पेपर की स्टडी के आधार पर है. यह किसी भी तरह से निवेश की सलाह नहीं है. बाजार में जोखिम होते हैं, इसलिए निवेश के पहले एक्सपर्ट की सलाह लें.
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