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Regular vs Direct Plan: एक ही म्यूचुअल फंड स्कीम में मिल रहा हो ज्यादा रिटर्न तो कम क्यों चुनें? (AI Generated Image / ChatGPT)
Regular vs Direct Planेs of Mutual Fund Schemes: अगर आप म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं, तो आपके लिए यह जानना जरूरी है कि हर म्यूचुअल फंड स्कीम के आमतौर पर दो प्लान होते हैं – डायरेक्ट और रेगुलर. दोनों प्लान एक ही स्कीम के होने के कारण उन्हें एक ही फंड मैनेजर चलाता है, उनके जरिये सारा निवेश एक ही पोर्टफोलियो में होता है. फिर भी दोनों के रिटर्न में बड़ा अंतर आ जाता है. ऐसा क्यों? आखिर डायरेक्ट और रेगुलर प्लान में ऐसा क्या फर्क है, जिसके कारण उनके रिटर्न में इतना अंतर आ जाता है? और डायरेक्ट प्लान के रिटर्न हमेशा बेहतर क्यों होते हैं? इस सवालों के जवाब आगे जानेंगे, लेकिन पहले एक ताजा उदाहरण देखते हैं, जिससे पता चलेगा कि दरअसल एक ही स्कीम के रेगुलर और डायरेक्ट प्लान के रिटर्न में कितना फर्क हो सकता है.
डायरेक्ट प्लान का मतलब ज्यादा रिटर्न
नीचे हमने लार्ज एंड मिड कैप फंड कैटेगरी की टॉप 5 स्कीम्स के पिछले 5 साल के औसत सालाना रिटर्न के आंकड़े दिए हैं, जिन्हें देखकर आप समझ जाएंगे कि एक ही म्यूचुअल फंड स्कीम के डायरेक्ट प्लान ने उसी स्कीम के रेगुलर प्लान के मुकाबले कितना अधिक रिटर्न दिया है:
फंड का नाम | 5 साल का रिटर्न (Regular) | 5 साल का रिटर्न (Direct) | रेगुलर और डायरेक्ट प्लान के रिटर्न में अंतर |
ICICI Prudential Large & Mid Cap Fund | 30.59% | 31.68% | 1.09% |
Bandhan Core Equity Fund | 29.13% | 30.67% | 1.54% |
Motilal Oswal Large & Mid Cap Fund | 28.70% | 30.65% | 1.95% |
HDFC Large & Mid Cap Fund | 29.33% | 30.26% | 0.93% |
UTI Large & Mid Cap Fund | 29.36% | 30.24% | 0.88% |
(Data Source : AMFI, Updated Till 28 April, 2025)
जैसा आप ऊपर दिए टेबल में देख सकते हैं, हर फंड में डायरेक्ट प्लान ने रेगुलर प्लान से कहीं ज्यादा रिटर्न दिया है. एक स्कीम में तो यह अंतर 1.95% और दूसरी में 1.54% है. यह फर्क लंबी अवधि के निवेश के दौरान लाखों रुपये का नुकसान या फायदा करा सकता है. अब समझते हैं कि एक ही स्कीम होने के बावजूद रिटर्न में इस भारी अंतर की वजह क्या है.
डायरेक्ट vs रेगुलर प्लान : क्या है बुनियादी अंतर
म्यूचुअल फंड स्कीम्स का रेगुलर प्लान, किसी एजेंट या डिस्ट्रीब्यूटर के जरिये खरीदा जाता है, जबकि डायरेक्ट प्लान में निवेशक सीधे उस एसेट मैनेजमेंट कंपनी (AMC) के पास जाकर निवेश करता है, जो उस स्कीम को चला रही होती है. यानी रेगुलर प्लान में निवेशक और AMC के बीच में एजेंट या डिस्ट्रीब्यूटर आ जाते हैं, जिन्हें कमीशन दिया जाता है और यह खर्च स्कीम के बढ़े हुए एक्सपेंस रेशियो के तौर पर निवेशक की जेब से निकलता है. इसी वजह से रेगुलर प्लान का एक्सपेंस रेशियो हमेशा ज्यादा होता है. वहीं, डायरेक्ट प्लान में कोई बिचौलिया नहीं होता, इसलिए वहां कमीशन नहीं कटता और खर्च भी कम होता है. यही खर्च का अंतर लंबे समय में बेहतर रिटर्न में बदल जाता है.
एक्सपेंस रेशियो क्या होता है
एक्सपेंस रेशियो (Expense ratio) वो फीस होती है जो AMC म्यूचुअल फंड को मैनेज करने के लिए लेती है. इसमें फंड मैनेजर की सैलरी, मार्केटिंग खर्च, एजेंट का कमीशन वगैरह शामिल होते हैं. रेगुलर प्लान में एजेंट का कमीशन भी शामिल होता है, इसलिए इसका खर्च ज्यादा होता है. डायरेक्ट प्लान में यह कमीशन नहीं होता, इसलिए खर्च भी कम होता है. मिसाल के तौर पर, अगर किसी स्कीम में डायरेक्ट प्लान का एक्सपेंस रेशियो 0.8% है, तो रेगुलर प्लान में 1.4% तक हो सकता है. यही फर्क, दोनों प्लान्स के रिटर्न में नजर आता है.
डायरेक्ट प्लान का एक और फायदा
बेहतर रिटर्न के अलावा डायरेक्ट प्लान का एक और फायदा है. दरअसल, रेगुलर प्लान में एजेंट को कमीशन मिलता है, इसलिए कई एजेंट अपनी कमाई के लिए निवेशकों को किसी ऐसी स्कीम्स में भी डाल सकते हैं, जो उनके लिए सही नहीं होतीं. जबकि डायरेक्ट प्लान में निवेशक खुद निवेश करते है, इसलिए गुमराह किए जाने का जोखिम नहीं होता. हालांकि इसके लिए उन्हें खुद थोड़ा रिसर्च करना पड़ सकता है.
तकनीक से आसान हुआ डायरेक्ट प्लान में निवेश
आज कई ऐसे ऑनलाइन इनवेस्टमेंट प्लेटफॉर्म भी हैं, जिन्होंने डायरेक्ट म्यूचुअल फंड में निवेश को बेहद आसान बना दिया है. आप मोबाइल ऐप या वेबसाइट से कुछ ही मिनटों में निवेश शुरू कर सकते हैं. ना एजेंट की ज़रूरत, ना फॉर्म भरने का झंझट.
रेगुलर प्लान किन हालात में सही हो सकता है?
ऐसे निवेशक, जो बिल्कुल नए और जिन्हें फाइनेंशियल नॉलेज बिलकुल नहीं है, वे शुरुआत में गाइडेंस के लिए रेगुलर प्लान के जरिये निवेश शुरू कर सकते हैं. लेकिन जैसे-जैसे उन्हें निवेश से जुड़ी बातें समझ में आने लगें, डायरेक्ट प्लान की तरफ शिफ्ट करना बेहतर होता है. क्योंकि इसमें रिटर्न बेहतर होते हैं और निवेशक अपने फाइनेंशियल गोल को जल्दी पूरा कर सकता है.
सीधी बात तो यही है कि म्यूचुअल फंड स्कीम एक हो, फंड मैनेजर वही हो और स्कीम का पोर्टफोलियो भी वही हो, तो फिर अपने निवेश पर कम रिटर्न क्यों लें? सिर्फ इसलिए कि हमने डायरेक्ट प्लान की बजाय रेगुलर प्लान चुन लिया? यह समझदारी नहीं है. डायरेक्ट प्लान में निवेश करके आप अपना रिटर्न बढ़ाकर फाइनेंशियल फ्रीडम की ओर तेज़ी से कदम आगे बढ़ा सकते हैं. इसलिए अगर आप थोड़ी-बहुत रिसर्च करने को तैयार हैं, तो डायरेक्ट प्लान में निवेश करके, उसी स्कीम के रेगुलर प्लान में पैसे लगाने वालों से बेहतर रिटर्न हासिल कर सकते हैं.
(डिस्क्लेमर: इस लेख का मकसद सिर्फ जानकारी देना है, निवेश की सलाह देना नहीं. म्यूचुअल फंड के निवेश में इस बात की कोई गारंटी नहीं होती कि स्कीम का पिछला रिटर्न भविष्य में भी जारी रहेगा. म्यूचुअल फंड इनवेस्टमेंट के साथ मार्केट रिस्क जुड़ा होता है. निवेश से पहले इनवेस्टमेंट एडवाइजर की सलाह जरूर लें.)