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NFO Updates : यह इक्विटी थीमैटिक कैटेगरी का फंड है, जिसमें मिनिमम 5,000 रुपये से निवेश किया जा सकता है. (Image : Freepik)
ICICI Pru Active Momentum Fund : आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल म्यूचुअल फंड ने अपना न्यू फंड ऑफर (New Fund Offer) आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल एक्टिव मोमेंटम फंड लॉन्च किया है. यह एनएफओ (NFO) 8 जुलाई से 22 जुलाई 2025 तक निवेश के लिए खुला रहेगा.
यह एक ओपन-एंडेड इक्विटी फंड है, जो मोमेंटम स्ट्रैटेजी पर काम करता है. यह इक्विटी थीमैटिक कैटेगरी का फंड है, जिसमें मिनिमम 5,000 रुपये से निवेश किया जा सकता है. इसमें लॉक इन नहीं है, जबकि 12 महीने पहले भुनाने पर 1% एग्जिट लोड है. बेंचमार्क NIFTY 500 TRI है. रिस्को मीटर वेरी हाई है.
क्या है एक्टिव मोमेंटम स्ट्रैटेजी
मोमेंटम स्ट्रैटेजी यानी यह फंड निवेश के लिए ऐसे शेयरों का चुनाव करेगा, जिनकी कीमतों में मोमेंटम बना हो और उनका प्रदर्शन आगे भी मजबूत रहने का अनुमान हो. इस फंड का उद्देश्य लंबी अवधि में निवेशकों को हाई रिटर्न (मुनाफा) दिलाना है.
यह फंड ऐसे कंपनियों के स्टॉक में पैसा लगाएगा:
- जिनकी कीमतों में लगातार तेजी (Price Momentum) बनी हो.
- जिनकी कमाई (Earnings) में सुधार हो रहा हो.
- शेयरों के चयन में जोखिम (Risk), कॉर्पोरेट गवर्नेंस (कंपनी के नियम व पारदर्शिता) और कई अन्य जरूरी बातों का ध्यान दिया जाता है.
- फंड की पोर्टफोलियो की समीक्षा समय-समय पर की जाएगी, और जरूरत के अनुसार बदलाव भी किए जाएंगे.
किसके लिए बेहतर है ये फंड?
- जिन निवेशकों को ज्यादा जोखिम लेने में कोई परेशानी नहीं है.
- जो लंबी अवधि (5 साल या उससे ज्यादा) के लिए निवेश करना चाहते हैं.
- जो मोमेंटम वाली रणनीति से फायदा उठाना चाहते हैं.
- इस योजना में अलग अलग सेक्टर में निवेश करके डायवर्सिफिकेशन भी मिलता है.
ध्यान रखने वाली बात यह है कि यह एक थीमैटिक इक्विटी स्कीम है, यानी एक खास रणनीति पर आधारित है. इसलिए इसका जोखिम बहुत ज्यादा है. इसलिए निवेश से पहले अच्छी तरह जानकारी लेकर ही निर्णय लें.
क्या हैं रिस्क फैक्टर
- बाजार में उतार-चढ़ाव (Volatility) के कारण जोखिम ज्यादा हो सकता है.
- राजनीतिक या आर्थिक बदलाव के कारण निवेश पर असर पड़ सकता है.
- कभी-कभी शेयरों की खरीद-फरोख्त समय पर नहीं हो पाती, यानी सेटलमेंट रिस्क भी है.
- अगर निवेश किसी एक सेक्टर या थीम पर ज्यादा केंद्रित हो, तो उसमें कंसन्ट्रेशन रिस्क होता है.
- जब बाजार नीचे जाता है, तो पोर्टफोलियो का उतार-चढ़ाव और बढ़ सकता है.
- डेट और मनी मार्केट में भी पैसा फंसा रह सकता है, यानी लिक्विडिटी रिस्क.
- कर्ज वाले निवेशों (फिक्स्ड इनकम) में क्रेडिट या डिफॉल्ट का खतरा रहता है.
- ब्याज दरों में बदलाव से डेट की वैल्यू घट-बढ़ सकती है.
- विदेशी निवेशों में करेंसी का रिस्क होता है, रुपये की कीमत घटने-बढ़ने से असर पड़ सकता है.
- डेरिवेटिव्स के इस्तेमाल से जोखिम और जटिलताएं बढ़ सकती हैं.
(डिस्क्लेमर : इस आर्टिकल का मकसद सिर्फ जानकारी देना है, निवेश की सिफारिश करना नहीं. निवेश से जुड़े फैसले लेने से पहले अपने निवेश सलाहकार की राय जरूर लें.)