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RBI big update : आरबीआई गवर्नर ने शेयर के बदले लोन और IPO फाइनेंसिंग लिमिट बढ़ाने का एलान किया है. (Photo : PTI)
RBI MPC Big Updates : भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने एक साथ कई बड़े एलान किए हैं, जो आने वाले समय में जो आने वाले समय में शेयर बाजार, आईपीओ फाइनेंसिंग और बैंकिंग सिस्टम पर बड़ा असर डाल सकते हैं. केंद्रीय बैंक ने न सिर्फ शेयर्स और डेट सिक्योरिटीज के बदले लोन देने के नियमों में बदलाव किया है, बल्कि IPO फाइनेंसिंग, बैंकों के डिपॉजिट इंश्योरेंस प्रीमियम और ईज ऑफ डूइंग बिजनेस को लेकर भी अहम सुधारों का ऐलान किया है.
शेयर और डेट सिक्योरिटीज पर ज्यादा लोन
अब तक बैंकों के पास लिस्टेड डेट सिक्योरिटीज (जैसे बॉन्ड आदि) के खिलाफ लोन देने पर एक सीमा तय थी. आरबीआई ने इस सीमा को पूरी तरह हटाने का प्रस्ताव किया है. इसका मतलब है कि निवेशकों और कंपनियों को इन सिक्योरिटीज के बदले ज्यादा आसानी से लोन मिल सकेगा.
इसी तरह, शेयरों के बदले लोन की लिमिट भी 20 लाख रुपये से बढ़ाकर 1 करोड़ रुपये कर दी गई है. यानी अब निवेशकों के पास अपने शेयर गिरवी रखकर बड़ी रकम जुटाने का मौका होगा. इसके साथ ही IPO फाइनेंसिंग लिमिट को 10 लाख रुपये से बढ़ाकर 25 लाख रुपये प्रति व्यक्ति कर दिया गया है. इससे नए निवेशकों को भी फायदा मिलेगा और बाजार में लिक्विडिटी (Liquidity) बढ़ेगी.
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बैंकिंग सेक्टर के लिए नई पहल
RBI ने इंश्योरेंस प्रीमियम से जुड़े नियमों में भी सुधार का प्रस्ताव दिया है. अब बैंक अपनी जोखिम प्रोफाइल के आधार पर डिपॉजिट इंश्योरेंस प्रीमियम चुकाएंगे. इसका फायदा उन बैंकों को होगा जो मजबूत वित्तीय स्थिति में हैं. इससे उनकी इंश्योरेंस प्रीमियम की लागत घटेगी और ग्राहकों को बेहतर सेवाएं मिल सकेंगी.
इसके अलावा, बैंक अब भारतीय कंपनियों को अधिग्रहण (Acquisition) के लिए फाइनेंसिंग की सुविधा भी दे पाएंगे. यह कदम कॉरपोरेट सेक्टर में निवेश और कारोबार बढ़ाने में मदद करेगा.
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क्रेडिट फ्लो और इंफ्रास्ट्रक्चर फाइनेंसिंग पर असर
क्रेडिट फ्लो यानी कर्ज की उपलब्धता को और मजबूत करने के लिए आरबीआई ने कई अहम बदलाव किए हैं. नॉन-बैंकिंग फाइनेंस कंपनियों (NBFCs) द्वारा मौजूदा हाई क्वॉलिटी इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स की फाइनेंसिंग को आसान बनाने के लिए रिस्क वेट्स (risk weights) को घटाया जाएगा, जिससे पूंजी की लागत कम होगी. इससे सड़क, बिजली, और अन्य बड़े प्रोजेक्ट्स को सस्ता फाइनेंस मिलने में आसानी होगी.
शहरी को-ऑपरेटिव बैंकों (UCBs) की नई लाइसेंसिंग पर भी चर्चा शुरू करने की घोषणा की गई है. लगभग दो दशकों से इस पर रोक लगी हुई थी. अब नए UCBs के आने से छोटे और मझोले ग्राहकों को बैंकिंग सेवाओं तक बेहतर पहुंच मिल सकती है.
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ईज ऑफ डुइंग बिजनेस और कंज्यूमर पर फोकस
आरबीआई ने ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के लिए भी 7 बड़े कदम उठाए हैं. इसमें बैंकों को करेंट अकाउंट खोलने और मैनेज करने में अधिक फ्लेक्सिबिलीट देने का प्रस्ताव शामिल है. एक्सपोर्टर्स के लिए फॉरेन करेंसी अकाउंट्स में रकम वापस लाने की समयसीमा एक महीने से बढ़ाकर तीन महीने कर दी गई है.
साथ ही, बेसिक सेविंग्स बैंक डिपॉजिट अकाउंट (BSBDA) रखने वाले ग्राहकों को अब बिना किसी एक्स्ट्रा फीस के डिजिटल बैंकिंग सुविधाएं भी मिलेंगी. शिकायतें दूर करने के काम को और असरदार बनाने के लिए ओम्बड्समैन सिस्टम (Obbudsman) को भी मजबूत किया जा रहा है.
कैपिटल मार्केट, बैंकिंग सेक्टर और आम निवेशकों के लिए पर असर
आरबीआई के ये कदम कैपिटल मार्केट, बैंकिंग सेक्टर और आम निवेशकों, सभी के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं. शेयर और IPO में निवेश को बढ़ावा मिलेगा, वहीं इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स को सस्ता फाइनेंस उपलब्ध होगा. ग्राहकों के लिए बैंकिंग सेवाएं आसान होंगी और कारोबारियों के लिए पूंजी जुटाना सरल. आने वाले समय में इन सुधारों का असर बाजार की रफ्तार और देश की अर्थव्यवस्था दोनों पर दिखाई देगा.