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Sebi New Proposal : सेबी ने इनवेस्टमेंट एडवाइजर्स (IA) और रिसर्च एनालिस्ट्स (RA) के लिए लागू नियमों में अहम बदलाव का प्रस्ताव किया है. (File Photo : Reuters)
Sebi New Proposal for Investment Advisers and Research Analysts : सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (SEBI) ने इनवेस्टमेंट एडवाइजर्स (IA) और रिसर्च एनालिस्ट्स (RA) के लिए लागू मौजूदा नियमों में एक अहम बदलाव का प्रस्ताव किया है. सेबी ने प्रस्ताव दिया है कि IA और RA को अपनी अनिवार्य डिपॉजिट रिक्वायरमेंट्स (deposit requirements) को पूरा करने के लिए लिक्विड म्यूचुअल फंड्स में निवेश करने की छूट दी जा सकती है. सेबी का यह प्रस्ताव 9 मई 2025 को जारी किए गए कंसल्टेशन पेपर का हिस्सा है, जिस पर 29 मई 2025 तक लोगों से सुझाव मांगे गए हैं.
FD में आ रही परेशानी दूर करने के लिए प्रस्ताव
फिलहाल IA और RA को एक तय रकम की फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) किसी शेड्यूल्ड बैंक में करनी होती है, जिस पर सेबी के प्रशासनिक निकाय (ASB) के पक्ष में लियेन (Lien) मार्क किया जाता है. लेकिन कई निवेश सलाहकारों ने सेबी को बताया कि एफडी बनवाने और लियेन की प्रक्रिया को पूरा करने के दौरान उन्हें कई व्यावहारिक दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें तमाम बैंकों में अलग-अलग नियम, डॉक्युमेंट्स मुहैया कराने में देरी होने और बैंक स्टाफ के पास जानकारी की कमी जैसी अड़चनें शामिल हैं.
लिक्विड फंड में निवेश भी चलेगा
इन दिक्कतों को दूर करने के लिए अब सेबी ने प्रस्ताव दिया है कि IA और RA, बैंक एफडी के विकल्प के तौर पर लिक्विड म्यूचुअल फंड यूनिट्स में भी निवेश करके अपनी डिपॉजिट रिक्वायरमेंट पूरी कर सकते हैं, बशर्ते कि उन पर कम से कम 1 साल के लिए लियेन मार्क हो. लिक्विट फंड्स की ये यूनिट्स डिमैट या स्टेटमेंट ऑफ अकाउंट (SOA) फॉर्मेट में हो सकती हैं.
कैसे होगा डिपॉजिट वैल्यू का कैलकुलेशन?
सेबी के प्रस्ताव के मुताबिक लिक्विड म्यूचुअल फंड की यूनिट्स की कीमत उनके NAV (Net Asset Value) के आधार पर तय होगी, जिसमें से एक निर्धारित हेयरकट और एग्जिट लोड घटाया जाएगा. इस वैल्यू की हर साल समीक्षा होगी. अगर वैल्यू तय न्यूनतम सीमा से नीचे जाती है, या ग्राहकों की संख्या बढ़ती है, तो सलाहकार को अतिरिक्त यूनिट्स जोड़कर डिपॉजिट को फिर से पूरा करना होगा.
डिजिटल तरीके से फंड में निवेश और लियेन
सेबी का मानना है कि लिक्विड म्यूचुअल फंड्स का संचालन पूरी तरह डिजिटल होने के कारण यह विकल्प फिजिकल एफडी की तुलना में अधिक आसान होगा और इस पर तेजी से अमल किया जा सकेगा. साथ ही, यह सिक्योरिटी मार्केट की पारदर्शिता और एफिशिएंसी को भी बढ़ाएगा. अगर यह प्रस्ताव लागू होता है, तो यह इनवेस्टमेंट एडवाइजर्स और रिसर्च एनालिस्ट्स के लिए एक फ्लेक्सिबल और व्यावहारिक विकल्प बन सकता है.