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Interest Rate Cut Debate: पीयूष गोयल ने आरबीआई को ब्याज दर घटाने की सलाह देकर मॉनेटरी पॉलिसी पर नई बहस छेड़ दी है. (Photo : PTI)
Will RBI Cut Interest Rates in December: क्या रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) को फूड इंफ्लेशन में आई तेजी के बावजूद ब्याज दरों में कटौती करनी चाहिए? क्या आरबीआई को यह समझने की जरूरत है कि फूड इंफ्लेशन यानी खाने-पीने की चीजों की कीमतों का ब्याज दरों से वैसा सीधा रिश्ता नहीं है, जैसा उसकी मॉनेटरी पॉलिसी में अब तक नजर आता रहा है? ये सवाल इसलिए, क्योंकि फूड इंफ्लेशन बढ़ने के बावजूद ब्याज दरों में कटौती की सिफारिश इस बार खुद केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने की है. ध्यान रहे कि पीयूष गोयल कॉमर्स यानी वाणिज्य मंत्रालय जैसे आर्थिक विभाग के कैबिनेट मंत्री हैं और आर्थिक मामलों के अच्छे जानकार माने जाते हैं. इसलिए उनके एक ताजा बयान ने अचानक ही इस बहस को तेज कर दिया है कि क्या आरबीआई को ब्याज दरें तय करते समय फूड इंफ्लेशन पर फोकस करने की मौजूदा रणनीति पर नए सिरे से विचार करना चाहिए?
RBI को ब्याज दर घटानी चाहिए : पीयूष गोयल
दरअसल, यह सारी बहस पीयूष गोयल के जिस बयान से शुरू हुई है, वह उन्होंने टीवी चैनल CNBC-TV18 के एक कार्यक्रम में दिया है. पीयूष गोयल ने गुरुवार को कहा, "मेरा साफ तौर पर मानना है कि उन्हें (आरबीआई को) ब्याज दरों में कटौती करनी चाहिए." उन्होंने यह भी कहा कि ब्याज दरों के बारे में फैसला करते समय फूड इंफ्लेशन पर विचार करने की थ्योरी पूरी तरह गलत (absolutely flawed) है. हालांकि पीयूष गोयल ने यह भी साफ कर दिया है कि यह सरकार की राय नहीं, बल्कि उनके निजी विचार हैं. लेकिन इसके साथ ही उन्होंने इसी साल जुलाई में पेश आर्थिक सर्वेक्षण में दिए गए उस सुझाव की याद भी दिलाई, जिसमें कहा गया था कि भारत के मॉनेटरी पॉलिसी फ्रेमवर्क में महंगाई दर को टारगेट करते समय फूड इंफ्लेशन को शामिल नहीं करना चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि खाने-पीने की चीजों की कीमतें डिमांड से ज्यादा सप्लाई से प्रभावित होती हैं. इसके साथ ही पीयूष गोयल ने यह भरोसा भी जाहिर किया है कि दिसंबर तक महंगाई दर काबू में आ जाएगी.
अक्टूबर में 6.2% रही खुदरा महंगाई दर
पीयूष गोयल का ये बयान इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि हाल ही में जारी आंकड़ों के मुताबिक अक्टूबर 2024 में देश की खुदरा महंगाई दर (retail inflation) बढ़कर 6.2% पर पहुंच गई है, जो पिछले 14 महीनों का सबसे ऊंचा स्तर है. इससे पहले सितंबर 2024 में खुदरा महंगाई दर 5.5% रही थी. मंगलवार को जारी इन आंकड़ों के मुताबिक फल-सब्जियों और खाद्य तेलों की कीमतों में आया उछाल खुदरा महंगाई में आई तेजी की प्रमुख वजह है. रिटेल इंफ्लेशन में आई इस तेजी की वजह से आरबीआई द्वारा आने वाले कुछ महीनों में ब्याज दरें घटाए जाने की संभावना बहुत घट गई है. अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी पड़ने की आशंकाओं के बीच इसे इकनॉमिक ग्रोथ के लिए अच्छा संकेत नहीं माना जा रहा है.
खुदरा महंगाई दर 4% तक रखने का टारगेट
आरबीआई के लिए सरकार ने खुदरा महंगाई दर को 4% तक सीमित रखने का टारगेट दिया है. इसके ऊपर-नीचे 2 फीसदी का टॉरलेंस लेवल भी घोषित है. यानी आरबीआई के लिए इंफ्लेशन को 2 से 6 फीसदी के बीच रखना जरूरी है. इस हिसाब से अक्टूबर की महंगाई दर टारगेट ही नहीं, टॉलरेंस लेवल से भी ज्यादा है. जाहिर है, ऐसे में दिसंबर में होने वाली मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी (MPC) की अगली बैठक के दौरान ब्याज दरों में कटौती की उम्मीद नहीं की जा रही. स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के एक ताजा रिसर्च पेपर में कहा गया है कि फरवरी 2025 की एमपीसी बैठक में भी ब्याज दरें घटाए जाने के आसार काफी कम हैं. रेटिंग एजेंसी क्रिसिल का भी मानना है कि ब्याज दरों में कटौती मौजूदा वित्त वर्ष के आखिरी दिनों में ही हो सकती है.
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पीयूष गोयल की राय को कितना महत्व देगा RBI?
आरबीआई गवर्नर शक्तिकांता दास ने हाल ही में कहा था कि महंगाई दर के मामले में 4% का लक्ष्य हासिल होने के बाद ही ब्याज दरों में कटौती पर विचार किया जा सकता है. लेकिन आरबीआई गवर्नर ने जब यह बात कही थी, तब तक वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल का ताजा बयान सामने नहीं आया था. पीयूष गोयल ने भले ही ब्याज दरों में कटौती के लिए फूड इंफ्लेशन को नजरअंदाज करने का बयान निजी हैसियत से दिया हो, लेकिन उन्होंने यह दलील जिस तार्किकता के साथ पेश की है, उससे उनकी बात में काफी वज़न आ गया है. अब देखना ये है कि शक्तिकांत दास और उनकी मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी एक बड़े मंत्री की वजनदार दलील पर सकारात्मक ढंग से विचार करते हैं या नहीं.