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Reliance Oil Shock : रूसी तेल पर ट्रंप की पाबंदी से रिलायंस और नयारा पर दबाव (File Photo : Reuters)
Big blow to Reliance as US sanctions force cut in Russian oil imports : अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा रूस की दो सबसे बड़ी तेल कंपनियों पर लगाए गए नए प्रतिबंधों से भारत की सबसे बड़ी निजी कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड को बड़ा झटका लगा है. पीटीआई की एक रिपोर्ट में ये दावा सूत्रों से मिली जानकारी के आधार पर किया गया है. रिपोर्ट के मुताबिक अब रिलायंस अपने रूसी कच्चे तेल के आयात में कमी करने की तैयारी कर रही है. कंपनी पर असर इसलिए ज्यादा है क्योंकि रूस से आने वाले डिस्काउंटेड क्रूड का सबसे बड़ा खरीदार वही रही है.
ट्रंप प्रशासन ने रूस की रोसनेफ्ट ऑयल कंपनी (Rosneft Oil Company) और ल्युकॉयल (Lukoil OAO) पर यह कहते हुए प्रतिबंध लगाए हैं कि ये कंपनियां यूक्रेन में रूस की “वॉर मशीन” को फंड कर रही हैं. इस कदम के बाद अब कोई भी अमेरिकी या विदेशी कंपनी इन दोनों पर लगी पाबंदी का उल्लंघन करते हुए इनके साथ व्यापार करेगी तो उसके खिलाफ अमेरिका कार्रवाई कर सकता है.
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जामनगर रिफाइनरी पर पड़ेगा असर
रिपोर्ट के मुताबिक रिलायंस (RIL) की जामनगर रिफाइनरी, जो दुनिया की सबसे बड़ी सिंगल-साइट रिफाइनिंग यूनिट है, रोजाना करीब 1.7 से 1.8 मिलियन बैरल तेल प्रोसेस करती है. इसमें से करीब आधा हिस्सा रूस से आने वाले सस्ते तेल का होता है. कंपनी इस तेल को पेट्रोल, डीजल और एविएशन टर्बाइन फ्यूल में बदलकर यूरोप और अमेरिका जैसे बाजारों में एक्सपोर्ट करती है.
लेकिन अब जब अमेरिकी पाबंदियां लागू हो गई हैं, तो रिलायंस इंडस्ट्रीज (Reliance Industries) के लिए यह व्यापार मॉडल चुनौती बन सकता है. पीटीआई के मुताबिक सूत्रों ने बताया है कि रिलायंस ने रूस की Rosneft के साथ 25 साल का समझौता किया था, जिसके तहत वह रोजाना 5 लाख बैरल तक तेल खरीद सकती थी. अब इस कॉन्ट्रैक्ट को रोकने या घटाने की तैयारी चल रही है क्योंकि कंपनी का बड़ा बिजनेस हित अमेरिका से जुड़ा है.
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35 अरब डॉलर का कारोबार दांव पर
रिपोर्ट के मुताबिक फरवरी 2022 में यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से रिलायंस ने रूस से लगभग 35 अरब डॉलर का तेल खरीदा है. युद्ध से पहले यानी 2021 में यह आंकड़ा सिर्फ 85 मिलियन डॉलर था. युद्ध के बाद पश्चिमी देशों ने रूस से दूरी बनाई और भारत ने सस्ते दाम पर तेल खरीदने का फायदा उठाया.
लेकिन अब माहौल बदलता दिख रहा है. रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से दावा किया गया है कि अब “कंपनी अपने तेल स्रोतों का पुनर्मूल्यांकन (recalibration) कर रही है और यह प्रक्रिया तेज की जा सकती है,” सूत्रों ने बताया कि नए अमेरिकी प्रतिबंधों के तहत, रूस की दोनों कंपनियों के साथ सभी सौदे 21 नवंबर तक बंद करने होंगे. पीटीआई के मुताबिक उसने रिलायंस से इस मसले पर टिप्पणी मांगी है, लेकिन रिपोर्ट लिखे जाने तक उसके ईमेल्स का कंपनी ने कोई जवाब नहीं दिया था.
नयारा एनर्जी पर भी बढ़ा दबाव
रिलायंस के अलावा गुजरात स्थित नयारा एनर्जी (Nayara Energy) पर भी अमेरिकी प्रतिबंधों का सीधा असर पड़ेगा. इस कंपनी में Rosneft की करीब 49.13% हिस्सेदारी है और यह अब तक पूरी तरह से रूसी तेल पर निर्भर रही है. यूरोपीय यूनियन (EU) पहले ही इस कंपनी पर पाबंदी लगा चुका है. अब उसे भी अपने तेल स्रोत बदलने पड़ सकते हैं.
पीटीआई के मुताबिक इस मामले में अब तक नयारा की ओर से भी कोई टिप्पणी नहीं आई है, लेकिन कंपनी को वैकल्पिक स्रोतों की तलाश करनी पड़ सकती है.
सरकारी तेल कंपनियों को फिलहाल राहत
रिपोर्ट के मुताबिक रिलायंस और नयारा के मुकाबले सरकारी तेल कंपनियों जैसे इंडियन ऑयल (IOC), बीपीसीएल, एचपीसीएल और एमआरपीएल की स्थिति थोड़ी बेहतर है. ये कंपनियां रूस से सीधा तेल नहीं खरीदतीं, बल्कि यूरोप या दुबई स्थित इंटरमीडिएट ट्रेडर्स के जरिए ऑयल मंगाती हैं. चूंकि इन ट्रेडर्स पर अमेरिकी प्रतिबंध नहीं हैं, इसलिए फिलहाल इनके लिए तेल खरीद में कोई रुकावट नहीं आने की उम्मीद है.
फिर भी ये कंपनियां अपने सभी कॉन्ट्रैक्ट्स की जांच कर रही हैं ताकि यह तय किया जा सके कि उनमें Rosneft की कोई सीधी हिस्सेदारी न हो.
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ट्रंप की पाबंदियां ‘आधे मन से उठाया गया कदम’
रिपोर्ट के मुताबिक इंडस्ट्री से जुड़े एक सूत्र ने कहा कि, “ट्रंप प्रशासन का यह कदम आधा-अधूरा है. महीनों से अमेरिका के नेता एनर्जी सेक्टर पर सख्त कार्रवाई की मांग कर रहे थे, लेकिन जिन कंपनियों का असली व्यापार बड़ा है, वे अब भी इस दायरे से बाहर हैं.”
एक अन्य सूत्र ने कहा, “अगर ये पाबंदियां इतनी सख्त होतीं, तो अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें 5 से 10 डॉलर प्रति बैरल तक बढ़ जातीं. लेकिन कीमतें सिर्फ 2 डॉलर ही बढ़ीं, जिससे साफ है कि बाजार को भी लगता है कि रूसी तेल की सप्लाई पूरी तरह बंद नहीं होगी.”
भारत के लिए बैलेंस बनाए रखने की चुनौती
भारत सरकार का अब तक इस मामले में यही कहना रहा है कि वह किसी भी अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन नहीं कर रही, क्योंकि रूसी कच्चे तेल पर सीधी पाबंदी नहीं हैं. सरकार का कहना है कि रूस से तेल खरीदने का फैसला भारत के राष्ट्रीय हितों और बाजार की परिस्थितियों पर आधारित है.
हालांकि डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने हाल के एक बयान में दावा किया है कि भारत ने रूस से तेल खरीदना बंद करने पर सहमति जताई है, जबकि भारत सरकार की तरफ से साफ किया गया है कि उन्होंने ऐसा कोई वादा नहीं किया है. इस बीच यूरोपीय संघ ने भी जनवरी 2026 से रूसी कच्चे तेल से बने फ्यूल पर बैन लगाने का फैसला किया है, जिससे रिलायंस जैसी कंपनियों को अपने एक्सपोर्ट पर भी फिर से विचार करना पड़ सकता है.