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Historic Fall in Rupee: सोमवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 58 पैसे गिरकर 86.62 पर बंद हुआ. (Image : Indian Express)
Impact of Historic Fall in Rupee: भारतीय रुपया सोमवार, 13 जनवरी 2025 को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 58 पैसे गिरकर 86.62 के ऐतिहासिक निचले स्तर पर बंद हुआ. यह करीब दो साल में दर्ज की गई सबसे बड़ी गिरावट है. इस गिरावट के पीछे मजबूत अमेरिकी डॉलर और कच्चे तेल की कीमतों में तेजी मुख्य कारण रहे. अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में कटौती की रफ्तार धीमी करने का संकेत देने से डॉलर में मजबूती आई है. इसके साथ ही, विदेशी निवेशकों द्वारा भारतीय शेयर बाजार से पैसे निकाले जाने की वजह से भी रुपये पर अतिरिक्त दबाव पड़ा है.
आपकी जेब पर बढ़ सकता है बोझ
रुपये की कमजोरी का सीधा असर आम आदमी की जेब पर पड़ता है. इंपोर्ट की जाने वाली चीजों की कीमतें बढ़ जाती हैं. ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि डॉलर महंगा होने से इंपोर्ट की लागत बढ़ती है. मिसाल के तौर पर, अगर 100 डॉलर कीमत वाली किसी चीज के इंपोर्ट पर पिछले साल 8,300 रुपये खर्च होते थे, तो अब वही प्रोडक्ट खरीदने में 8,600 रुपये से ज्यादा लग जाएंगे. देश में कच्चे तेल, दवाओं के फॉर्मूलेशन समेत कई ऐसी चीजें हैं, जिन्हें बड़े पैमाने पर इंपोर्ट किया जाता है, लिहाजा उनकी लागत में बढ़ोतरी हो सकती है. कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने से पेट्रोल-डीजल महंगे हो जाते हैं और ट्रांसपोर्ट की लागत में इजाफा होता है. इस तरह रुपये में गिरावट से तमाम जरूरी चीजों की कीमतें यानी महंगाई बढ़ने का खतरा रहता है.
विदेश में पढ़ाई और यात्रा के खर्चों पर असर
रुपये की कमजोरी का असर विदेश में पढ़ाई करने वाले छात्रों और यात्रा करने वालों पर भी पड़ता है. डॉलर महंगा होने से विदेशी संस्थानों की ट्यूशन फीस और वहां रहने के खर्च समेत तमाम खर्चे बढ़ जाते हैं. विदेश यात्रा करने वाले लोगों को भी अधिक खर्च करना पड़ सकता है.
इंपोर्ट पर निर्भर बिजनेस के लिए बढ़ी चुनौती
जो बिजनेस अपने कारोबार के लिए इंपोर्ट पर अधिक निर्भर हैं, उनके लिए रुपये में गिरावट का मतलब इनपुट कॉस्ट यानी लागत में इजाफा है. इससे एक तरफ तो प्रॉफिट मार्जिन पर दबाव बढ़ता है और दूसरी तरफ प्रोडक्ट की कीमत बढ़ने पर कंपटीशन में पिछड़ने का डर रहता है. इंपोर्ट से जुड़ी लागत में होने वाले उतार-चढ़ाव किसी बिजनेस के लिए लागत, प्राइसिंग और मुनाफे की लॉन्ग टर्म प्लानिंग करना मुश्किल बना देते हैं.
एक्सपोर्ट करने वालों को हो सकता है लाभ
आईटी, फार्मा, और जेम्स एंड जूलरी जैसे एक्सपोर्ट पर फोकस करने वाले सेक्टर्स को कुछ हद तक रुपये की कमजोरी का फायदा भी मिल सकता है, क्योंकि उन्हें मिलने वाला पेमेंट डॉलर में आता है. लेकिन यह संभावित फायदा इस बात पर निर्भर है कि उनके प्रोडक्ट का कच्चा माल कहां से आता है और अगर उसे इंपोर्ट करना पड़ता है, तो एक्सपोर्ट किए जाने वाले फिनिश्ड प्रोडक्ट पर इंपोर्ट की बढ़ी हुई लागत का कितना असर पड़ता है.
घरेलू शेयर बाजार पर असर
रुपये की गिरावट की वजह से घरेलू शेयर बाजार पर नकारात्मक असर देखने को मिल सकता है. भारतीय करेंसी में लगातार गिरावट की आशंका होने पर अंतरराष्ट्रीय निवेशक रुपया आधारित एसेट्स से अपनी पूंजी निकालकर डॉलर आधारित निवेश की ओर रुख कर सकते हैं. इससे बाजार में अस्थिरता बढ़ सकती है. जबकि अमेरिकी शेयरों में निवेश करने वालों को डॉलर की मजबूती से फायदा हो सकता है.
निवेशकों को क्या करना चाहिए
रुपये में गिरावट के समय निवेशकों को अपनी निवेश रणनीति पर नए सिरे से विचार करना चाहिए. ऐसे दौर में आईटी और फार्मा जैसे एक्सपोर्ट ओरिएंटेड सेक्टर्स में निवेश बढ़ाना फायदेमंद हो सकता है. साथ ही, उन मजबूत कंपनियों में निवेश करना बेहतरह रहता है, जो विदेशी मुद्रा में होने वाले उतार-चढ़ावों का सामना बेहतर तरीके से कर सकती हैं. लॉन्ग टर्म निवेश पर ध्यान केंद्रित करना और फाइनेंशियल प्लानिंग को बदलते हालात के मुताबिक एडजस्ट करना भी महत्वपूर्ण है.