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नीति आयोग के सीईओ बीवीआर सुब्रमण्यम ने कहा है कि NSSO के ताजा सर्वेक्षण के आंकड़े देश में गरीबी की स्थिति का अनुमान लगाने में मददगार हैं. (Image : PIB)
NITI Aayog CEO on NSSO Survey : देश के टियर 2 और टियर 3 शहरों में रहने वाले लोग अब अपनी आमदनी का जितना हिस्सा भोजन पर खर्च करते हैं, उससे ज्यादा कपड़ों, मनोरंजन और अन्य चीजों पर खर्च कर रहे हैं. यह जानकारी नेशल सैंपल सर्वे ऑफिस (NSSO) की एक ताजा रिपोर्ट में सामने आई है. इस रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय परिवारों का घरेलू खर्च पिछले 10 वर्षों में दोगुने से अधिक हो गया है. यह जानकारी अगस्त 2022 से जुलाई 2023 के बीच किए गए सर्वेक्षण के आंकड़ों में कही गई है. हालांकि सरकार ने 2017-18 के सर्वेक्षण के नतीजों को आंकड़ों में गड़बड़ी की बात कहकर जारी नहीं किया था.
गरीबी की स्थिति के आकलन के लिए अहम हैं ऐसे सर्वेक्षण : सुब्रमण्यम
सर्वेक्षण के नतीजों की चर्चा करते हुए नीति आोग के सीईओ बीवीआर सुब्रमण्यम ने कहा कि कंज्यूमर एक्सपेंडीचर सर्वे देश में गरीबी की स्थिति का आकलन करने के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण हैं. उन्होंने कहा कि ताजा सर्वेक्षण में सामने आए आंकड़ों से हम यह आकलन भी कर सकते हैं कि देश में गरीबी उन्मूलन के लिए किए जा रहे उपाय कितने सफल रहे हैं.
10 साल में तेजी से बढ़ा MPCE : सर्वे
ताजा सर्वे के आंकड़ों के मुताबिक साल 2022-23 के दौरान देश के शहरी क्षेत्रों में रहने वालों का औसत प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग खर्च (Monthly Per Capita Expenditure - MPCE) बढ़कर 6,459 रुपये हो जाने का अनुमान है. जबकि 2011-12 में यह औसत 2,630 रुपये था. इसी दौरान देश के ग्रामीण इलाकों में रहने वालों का औसत प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग खर्च 1,430 रुपये से बढ़कर 3,773 रुपये हो जाने का अनुमान है.
बजट में खाने-पीने के खर्च का प्रतिशत घटा
सर्वे में एक दिलचस्प जानकारी यह भी सामने आई है कि भारतीय परिवारों के बजट में खाने-पीने की चीजों पर होने वाले खर्च की हिस्सेदारी प्रतिशत के तौर पर कम हुई है, जबकि कपड़ों, टीवी और मनोरंजन के साधनों पर होने वाला खर्च पहले से ज्यादा हो गया है. सर्वे के मुताबिक यह ट्रेंड टियर 2 और टियर 3 शहरों में ज्यादा प्रमुखता से नजर आता है, जहां लोग गैर-जरूरी खर्चों को बुनियादी जरूरतों पर तरजीह दे रहे हैं. NSSO के इस सर्वे में शामिल आंकड़े कुल 2,61,746 घरों से जुटाए गए हैं, जिनमें 1,55,014 घर गांवों के और 1,06,732 घर शहरी इलाकों के हैं.
गांवों में घटकर 46.4% हुआ खाने-पीने का खर्च
रिपोर्ट से पता चलता है कि 2011-12 से 2022-23 के दौरान कुल उपभोग (total consumption) में खाने-पीने पर होने वाले खर्च का हिस्सा ग्रामीण इलाकों में 53% से घटकर 46.4% हो गया है, जबकि गैर-खाद्य खपत 47 फीसदी से बढ़कर 53.6 फीसदी हो गई. इसी दौरान शहरी इलाकों में भी भोजन पर होने वालाे खर्च की हिस्सेदारी 42.6% से घटकर 39.2% रह गयी है. सर्वे के मुताबिक शहरों में गैर-खाद्य सामग्री पर प्रति व्यक्ति मासिक खर्च 3,929 रुपये रहा. जबकि गांवों में गैर-खाद्य के अलावा सर्वाधिक 285 रुपये खर्च यात्रा पर और 269 रुपये मेडिकल पर रहा.
अलग-अलग क्षेत्रों, आय वर्ग के आंकड़ों में अंतर
NSSO के सर्वे के आंकड़े यह भी बताते हैं कि लोगों की खर्च करने की आदतें अलग-अलग इलाकों और इनकम ग्रुप्स में अलग-अलग हैं. मिसाल के तौर पर शहरी इलाकों में खाने-पीने की चीजों पर प्रति व्यक्ति औसत मासिक खर्च 2,530 रुपये है, वहीं गांवों में यह खर्च महज 1,750 रुपये है. यानी गांवों और शहरी इलाकों के घरों में खाने-पीने की चीजों पर होने वाले खर्च में भारी अंतर है. इसी तरह, गांवों में प्रति व्यक्ति औसत मासिक खर्च दूध और दूध से बनी चीजों पर 314 रुपये और अनाज पर 185 रुपये रहा. शहरों में यह खर्च औसतन 466 और 235 रुपये रहा. लेकिन पेय पदार्थों और प्रोसेस्ड फूड पर खर्च इससे भी ज्यादा हो गया है. गांवों में इन चीजों पर महीने का प्रति व्यक्ति औसत खर्च 363 रुपये और शहरों में 687 रुपये है.