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नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, सर्विसेज सेक्टर के सामने तीन बड़ी चुनौतियां हैं — असंगठित नौकरियां, महिलाओं की कम भागीदारी और क्षेत्रीय असमानता, तथा अवसरों का असमान बंटवारा.
नीति आयोग (Niti Aayog) की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के सर्विसेज सेक्टर ने पिछले छह वर्षों में लगभग 4 करोड़ नई नौकरियां जोड़ी हैं. रिपोर्ट में बताया गया है कि एम्प्लॉयमेंट इलास्टिसिटी COVID-19 के बाद के दौर में 0.35 से बढ़कर 0.63 हो गई है, जो कंस्ट्रक्शन सेक्टर के बाद सबसे अधिक है.
रिपोर्ट के मुताबिक, सर्विसेज सेक्टर में करीब 18.8 करोड़ (188 मिलियन) लोग कार्यरत हैं और यह क्षेत्र राष्ट्रीय सकल मूल्य वर्धन (GVA) में आधे से अधिक का योगदान देता है. नीति आयोग ने कहा कि यह सेक्टर Covid 19 महामारी जैसे संकटों में भी बेहद लचीला और स्थिर साबित हुआ है.
हालांकि, नीति आयोग ने चेतावनी दी है कि संरचनात्मक सुधार के बिना सर्विसेज सेक्टर की संभावनाएं कम गुणवत्ता वाली नौकरियों के विस्तार के चक्र में फंस सकती हैं. यह बात नीति आयोग ने अपनी रिपोर्ट “India’s Services Sector: Insights from Employment Trends and State-Level Dynamics” में कही है. रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर आवश्यक सुधार नहीं किए गए, तो यह सेक्टर अपनी पूरी क्षमता का उपयोग नहीं कर पाएगा और रोजगार की गुणवत्ता पर नकारात्मक असर पड़ सकता है.
सर्विसेज सेक्टर में रोजगार हिस्सेदारी 2011–12 में 26.9% से बढ़कर 2023–24 में 29.7% हुई है. हालांकि, रिपोर्ट के अनुसार यह हिस्सा अभी भी वैश्विक औसत 50% से काफी पीछे है, जो दर्शाता है कि भारत में संरचनात्मक परिवर्तन (Structural Transition) की रफ्तार अभी धीमी है.
सर्विसेज सेक्टर में रोजगार का परिदृश्य एक दिलचस्प विरोधाभास दिखाता है. रिपोर्ट के अनुसार, हालांकि यह सेक्टर देश की लगभग एक-तिहाई वर्कफोर्स को रोजगार देता है, लेकिन अधिकांश नौकरियां पारंपरिक और कम उत्पादकता वाले क्षेत्रों जैसे ट्रेड (Trade) और ट्रांसपोर्ट (Transport) में केंद्रित हैं, जहां असंगठित रोजगार और असुरक्षा हावी है. वहीं आईटी (IT), वित्तीय सेवाएं, हेल्थकेयर और प्रोफेशनल सर्विसेज जैसे उच्च-मूल्य वाले सेक्टर आर्थिक दृष्टि से बड़ा योगदान देते हैं लेकिन इनमें काम करने वाले लोगों की संख्या अपेक्षाकृत बहुत कम है.
नीति आयोग की रिपोर्ट ने सर्विसेज सेक्टर से जुड़ी तीन प्रमुख चुनौतियों- व्यापक असंगठित रोजगार और कम गुणवत्ता वाली नौकरियां, गहरी लैंगिक और क्षेत्रीय असमानताएं और अवसरों में क्षेत्रीय असंतुलन (regional divergence) पर प्रकाश डाला है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि इन चुनौतियों का समाधान तभी संभव है जब सर्विसेज सेक्टर को भारत की रोजगार रणनीति का केंद्रीय स्तंभ माना जाए, न कि एक “शेष” या “पूरक” क्षेत्र के रूप में.
नीति आयोग का फोर-पिलर रोडमैप: औपचारिक रोजगार, महिला भागीदारी और टेक्नोलॉजी स्किलिंग पर जोर
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि इन चुनौतियों से निपटने के लिए फोर-पिलर रोडमैप अपनाना होगा. इसके तहत रोजगार का औपचारिककरण (Formalisation) तेज करना और स्व-नियोजित, गिग वर्कर्स तथा एमएसएमई (MSME) श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा के दायरे में लाना आवश्यक है ताकि नौकरी की गुणवत्ता में सुधार हो सके.साथ ही, महिलाओं और ग्रामीण युवाओं को उच्च-विकास वाले सर्विसेज सेक्टर में अवसर उपलब्ध कराने के लिए टार्गेटेड स्किल डेवलपमेंट, डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर और सुरक्षित गतिशीलता (Safe Mobility) पर जोर देने की आवश्यकता है.
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि टेक्नोलॉजी आधारित स्किलिंग में निवेश बढ़ाना चाहिए ताकि वर्कफोर्स को डिजिटलीकरण और ग्रीन इकॉनमी के दोहरे बदलावों के लिए तैयार किया जा सके. इसके अलावा, संतुलित क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा देने के लिए टियर-2 और टियर-3 शहरों में सर्विस हब्स स्थापित करने और राज्य-स्तरीय सेक्टोरल क्लस्टर्स को प्रोत्साहन देने की सिफारिश की गई है.
राज्यों में सर्विसेज सेक्टर से बढ़ी आय, विकसित भारत @2047 में निभाएगा अहम रोल
नीति आयोग की दूसरी रिपोर्ट “India’s Services Sector: Insights from GVA Trends and State-Level Dynamics” में राष्ट्रीय और राज्य-स्तरीय प्रवृत्तियों का विश्लेषण किया गया है. इस रिपोर्ट का उद्देश्य यह समझना है कि सर्विसेज आधारित विकास देश के विभिन्न क्षेत्रों में किस प्रकार आगे बढ़ रहा है और क्या जिन राज्यों में सर्विसेज सेक्टर की हिस्सेदारी शुरू में कम थी, वे अब अधिक विकसित राज्यों की बराबरी कर पा रहे हैं, जो संतुलित क्षेत्रीय विकास का एक महत्वपूर्ण संकेतक है.
रिपोर्ट में पाया गया है कि राज्यवार सकल मूल्य वर्धन (GSVA) में सर्विसेज सेक्टर की औसत हिस्सेदारी और राज्यों की प्रति व्यक्ति आय (Per Capita Income) के बीच एक मजबूत संबंध है. दिल्ली, चंडीगढ़, कर्नाटक, तेलंगाना और महाराष्ट्र जैसे विकसित सर्विस इकॉनमी (Developed Service Economies) वाले राज्य और केंद्रशासित प्रदेश सामान्यतः उच्च प्रति व्यक्ति आय दर्ज करते हैं, जो मुख्य रूप से आईटी, वित्तीय सेवाओं और प्रोफेशनल सर्विसेज जैसी गतिविधियों की वजह से हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि सर्विसेज और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के बीच मजबूत समन्वय स्थापित करने से देश के समग्र विकास पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है. आईटी-सक्षम लॉजिस्टिक्स, औद्योगिक क्लस्टर्स के लिए डिज़ाइन और आर एंड डी सेवाएं या एमएसएमई के लिए वित्तीय सहायता (Financial Intermediation for MSMEs) जैसे उपायों से सर्विसेज सेक्टर का विकासात्मक प्रभाव और भी बढ़ सकता है, जिससे अर्थव्यवस्था में मल्टीप्लायर इफेक्ट्स होंगे.
रिपोर्ट में यह भी रेखांकित किया गया है कि यदि सर्विसेज सेक्टर को प्रोडक्टिव, हाई-क्वालिटी और इंक्लूसिव जॉब्स का प्रेरक बनाया जाए, तो यह भारत के रोजगार परिवर्तन (Employment Transition) का केंद्रीय स्तंभ बन सकता है. नीति आयोग ने जोर देकर कहा है कि सर्विसेज सेक्टर भारत के “विकसित भारत @2047 (Viksit Bharat @2047)” के दृष्टिकोण को साकार करने में एक निर्णायक भूमिका (Pivotal Role) निभा सकता है.
Note: This content has been translated using AI. It has also been reviewed by FE Editors for accuracy.
To read this article in English, click here.
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