/financial-express-hindi/media/media_files/vEApnPD2YvmT4lOm9goR.jpg)
Moody's Warns on Water shortage in India: जल संकट से जूझते दिल्ली में पीने का पानी लेकर पहुंचे वाटर टैंकर पर चढ़ी लोगों की भीड़ (24 जून 2024). (Photo : Reuters)
Moody's Report on Water shortage in India: मूडीज रेटिंग्स ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि भारत में पानी की बढ़ती किल्लत की वजह से देश में कृषि और उद्योगों के विकास पर बुरा असर पड़ने की आशंका है. साथ ही यह भारत की सॉवरेन रेटिंग के लिए भी नुकसानदेह है. मूडीज के मुताबिक पानी की कमी के कारण भारत में फूड इंफ्लेशन यानी खाने पीने की चीजों के दाम बढ़ सकते हैं और लोगों की आय में गिरावट आ सकती है, जिससे सामाजिक अशांति पैदा होने का डर है. इसके अलावा पानी की कमी उन सेक्टर्स की क्रेडिट हेल्थ के लिए भी ठीक नहीं है, जिनमें बहुत बड़े पैमाने पर पानी का इस्तेमाल होता है. इन उद्योगों में कोयला आधारित बिजली उत्पादन और स्टील प्रोडक्शन प्रमुख हैं. रिपोर्ट में बताया गया है कि क्लाइमेट चेंज के कारण आने वाले दिनों में भारत के लिए पानी की उपलब्धता बनाए रखने की चुनौती और बढ़ने के आसार हैं.
दिल्ली में जल संकट के बीच आई रिपोर्ट
मंगलवार को जारी मूडीज की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में पानी की सप्लाई में कमी की वजह से कृषि उत्पादन में दिक्कतें आती हैं, जिसका नतीजा खाने-पीने की चीजों की कीमतों में तेजी के रूप में देखने को मिल सकता है. मूडीज़ की यह रिपोर्ट ऐसे वक्त में सामने आई है, जब देश की राजधानी दिल्ली के कई इलाकों में लोगों को पानी की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है और यह मुद्दा राजनीतिक रस्साकशी का अखाड़ा बना हुआ है. यहां तक कि 21 जून से इसी मुद्दे पर भूख हड़ताल कर रहीं दिल्ली की जल मंत्री आतिशी को मंगलवार की सुबह ही तबीयत बिगड़ने के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया है. मूडीज ने कहा कि जून 2024 में पड़ी तेज गर्मी के दौरान दिल्ली और उत्तर भारतीय राज्यों में तापमान 50 डिग्री सेल्सियस के आसपास पहुंच गया, जिससे पानी की सप्लाई पर काफी बुरा असर पड़ा है.
देश में पानी की उपलब्धता और घटने की आशंका
रिपोर्ट के मुताबिक भारत में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता पहले से ही कम है. वहीं, तेज रफ्तार आर्थिक विकास, औद्योगीकरण और शहरीकरण की वजह से पानी की खपत तेजी से बढ़ रही है, जिसके चलते यह समस्या विकराल होती जा रही है. मूडीज ने भारत सरकार के जल संसाधन मंत्रालय के आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया है कि भारत में पानी की प्रति व्यक्ति औसत उपलब्धता 2021 में महज 1,486 क्यूबिक मीटर थी, जो 2031 तक घटकर 1,367 क्यूबिक मीटर रह जाने की आशंका है. मंत्रालय के मुताबिक पानी की प्रति व्यक्ति औसत उपलब्धता अगर 1,700 क्यूबिक मीटर से कम है, तो यह पानी की कमी की तरफ इशारा करता है, जबकि प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता अगर 1,000 क्यूबिक मीटर से नीचे चली जाए, तो यह जल संकट जैसी स्थिति है.
सामाजिक अशांति की तरफ ले जा सकता है जल संकट
रिपोर्ट में कहा गया है कि "पानी की सप्लाई में कमी से कृषि उत्पादन और औद्योगिक कामकाज में रुकावट आ सकती है, जिसके चलते फूड इंफ्लेशन बढ़ सकता है और जल संकट से प्रभावित व्यवसायों से जुड़े लोगों और समुदायों की आय में गिरावट आ सकती है. अगर ऐसा हुआ तो सामाजिक अशांति भी फैल सकती है. ऐसे हालात भारत के विकास को अस्थिर कर सकते हैं और अर्थव्यवस्था की झटकों को झेलने की क्षमता को कमजोर कर सकते हैं."
जलवायु परिवर्तन के कारण और बिगड़े हालात
जलवायु परिवर्तन के कारण सूखे, हीट वेव और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं में बढ़ोतरी इन हालात को और मुश्किल बना रही हैं. रिपोर्ट के मुताबिक इन तमाम वजहों से दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देश में पानी का संकट आने वाले दिनों में और गंभीर होने की आशंका है. रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में मानसून के दौरान होने वाली औसत बारिश लगातार कम हो रही है. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मीटियोरोलॉजी (Indian Institute of Tropical Meteorology) के मुताबिक 1950 से 2020 के बीच हिंद महासागर का तापमान 1.2 डिग्री सेल्सियस प्रति 100 वर्ष की रफ्तार से बढ़ा है. लेकिन 2020 से 2100 के दौरान इसमें 1.7 से 3.8 डिग्री तक और इजाफा होने की आशंका है. इस वजह से भारत में बारिश लगातार कम हो रही है और सूखे की स्थिति पहले से ज्यादा गंभीर होती जा रही है. 1971 से 2020 के औसत के मुकाबले 2023 में मानसून की बारिश 6 फीसदी कम रही. खासतौर पर अगस्त 2023 में तो बारिश काफी कम हुई. जबकि भारत में हर साल मानसून (Monsoon) की 70 फीसदी बारिश जून से सितंबर के बीच ही होती है.
वाटर मैनेजमेंट में बड़े पैमाने पर निवेश जरूरी
भारत के सामने मौजूद पर्यावरणीय जोखिम (environmental risk) पर केंद्रित मूडीज रेटिंग्स की इस ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि वाटर मैनेजमेंट में बड़े पैमाने पर निवेश करके पानी की कमी के संभावित रिस्क को कुछ हद तक कम किया जा सकता है. रिपोर्ट के मुताबिक भारत सरकार वाटर इंफ्रास्ट्रक्टर में निवेश कर रही है और रिन्यूएबल एनर्जी के विकास के लिए भी कोशिश कर रही है. ये कोशिशें लंबी अवधि में वाटर मैनेजमेंट में सुधार करके जल संकट के रिस्क को कम करने में मदद कर सकती हैं.