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नीतीश कुमार का बिहार में 20 साल का राजनीतिक सफर. Photograph: (PTI)
Bihar Elections 2025: “मैं लाउडस्पीकर नहीं हूँ, काम करने वाला हूँ,” नीतीश कुमार की यह आवाज़ 2000 के दशक की शुरुआत में भीड़ के बीच गूँजी. ये वही साल थे जिन्होंने उन्हें देश के राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण राज्य बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में परिभाषित किया.
जनता दल (यूनाइटेड) के नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) वह नेता हैं, जिन्होंने पिछले 20 वर्षों में हर बिहार चुनाव में राजनीति को अपने इर्द-गिर्द केंद्रित किया. उन्होंने 24 नवंबर 2005 को बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली और उसके बाद राज्य के शीर्ष पद पर उनका सफर लगातार जारी रहा, हालांकि मई 2014 से फरवरी 2015 तक 9 महीने का छोटा अंतराल रहा.
नीतीश कुमार की छवि “काम करने वाले नेता” के रूप में बनी हुई है, जिन्होंने बिहार में विकास और शासन पर ध्यान केंद्रित करते हुए राजनीति को अपने अंदाज में संचालित किया.
अक्सर विपक्ष द्वारा ‘पल्टू राम’ (बार-बार पार्टी बदलने वाला) करार दिए जाने के बावजूद, नीतीश कुमार ने अपनी स्थिति मजबूत बनाए रखी और हमेशा अपने वोट बैंक को मज़बूत किया.
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एमपी से मुख्यमंत्री तक: नीतीश कुमार का सफर
भारत की राजनीति ने कई ऐसे नेताओं को पाला है, जिनकी राजनीतिक पृष्ठभूमि आंदोलनों से जुड़ी रही और जिन्होंने कुछ व्यक्तियों के पक्ष में परिस्थितियों को मोड़ दिया. ऐसे ही दो नेता हैं नीतीश कुमार और लालू यादव जो एक साथ उभरे, साथ काम किया, लेकिन बाद में अलग रास्ते पकड़ लिए.
नीतीश कुमार ने उन वरिष्ठ नेताओं से राजनीति की बारीकियाँ सीखी हैं, जिन्होंने देश की राजनीतिक बहस को बदल दिया. राम मनोहर लोहिया, एसएन सिन्हा, करपूरी ठाकुर और वीपी सिंह कुछ ऐसे नाम हैं, जिनके नेतृत्व में नीतीश कुमार ने राजनीति की कला में महारत हासिल की.
1974 से 1977 के बीच जयप्रकाश नारायण के आंदोलन (जेपी आंदोलन) में उनकी भागीदारी ने उन्हें कई प्रतिष्ठित नेताओं की नजरों में लोकप्रिय बना दिया. इसके बाद उन्होंने सत्येंद्र नारायण सिन्हा के नेतृत्व में जनता पार्टी में शामिल होकर राजनीतिक सफर को आगे बढ़ाया.
1985 में नीतीश कुमार ने हरनौत से अपनी पहली विधानसभा चुनाव लड़ाई लड़ी और विजयी हुए. समय के साथ, उन्होंने अपने आपको पिछड़ी जातियों के लिए आवाज़ उठाने वाले और धर्मनिरपेक्षता के समर्थक नेता के रूप में स्थापित किया.
साल 1995 में, नीतीश ने अपने राजनीतिक सफर को आगे बढ़ाने की योजना बनाई और तत्कालीन शीर्ष बीजेपी नेताओं एबी वाजपेयी और एलके आडवाणी के साथ उनके राजनीतिक उद्देश्य में शामिल हुए.
अगले साल, नीतीश कुमार ने बाढ़ से अपनी पहली लोकसभा सीट जीती. यहीं से उन्होंने केंद्रीय सरकार में कृषि मंत्रालय का कार्यभार संभाला, और इसके बाद के वर्षों में अन्य विभागों की जिम्मेदारियाँ भी निभाईं जिससे बिहार में उन्हें नए और प्रभावशाली नेता के रूप में स्थापित होने का मार्ग मिला.
नीतीश कुमार की राजनीतिक चालों पर करीब से नज़र रखने वाले नेता जग नारायण सिंह यादव अपनी हालिया किताब में लिखते हैं, “नीतीश कुमार के संसद में दिए गए भाषणों का व्यापक महत्व इस बात को दर्शाता है कि हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था कई बाधक तत्वों जैसे अलगाववाद, आतंकवाद, जातिवाद, क्षेत्रवाद और भ्रष्टाचार का सामना कर रही है. भ्रष्टाचार पर बहस में भाग लेते हुए नीतीश ने कहा कि सदन को एक प्रस्ताव पारित करना चाहिए, ताकि जीवन के सभी क्षेत्रों में व्याप्त भ्रष्टाचार के प्रति गंभीर चिंता व्यक्त की जा सके और सरकार से अनुरोध किया जा सके कि इस दुष्टता को समाप्त करने के लिए सबसे कठोर कदम उठाए जाएँ.”
नीतीश कुमार – रेल मंत्री के रूप में
नीतीश कुमार को तब लोकप्रियता मिली जब उन्हें 2001 से 2004 तक अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में रेल मंत्रालय (railway ministry) का कार्यभार दिया गया. उनका कार्यकाल विकासात्मक कदमों से भरा रहा, विशेष रूप से उन पहलुओं में जिन्हें उन्होंने “रेलवे की सामाजिक जिम्मेदारियाँ” कहा.
उन्होंने विकलांग यात्रियों, पत्रकारों और राष्ट्रपति पुलिस पदक पाने वालों के लिए विशेष रियायतें दीं. इसके अलावा, वरिष्ठ नागरिक की उम्र सीमा 65 साल से घटाकर 60 साल कर दी गई, दूसरी श्रेणी की टिकट पर मिलने वाली छूट 25% से बढ़ाकर 30% कर दी गई, और विकलांगों के लिए यह सुविधा अब एसी 3-टियर और चेयर कार में भी उपलब्ध कराई गई.
नितिश कुमार – बिहार के मुख्यमंत्री
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2000 के घटनाक्रम का परिणाम यह हुआ कि नितिश कुमार, जो अब 74 साल के हैं, बाद में उन नेताओं में शामिल हुए जिनके मुख्यमंत्री कार्यकाल देश में सबसे लंबे रहे. 2005-2010 के अपने कार्यकाल के दौरान, नितिश कुमार अक्सर कहते थे, “बिहार को बदनाम करने वालों को मैं अपने काम से जवाब दे रहा हूँ.”
2014 में इस्तीफा: नितिश ने राजनीति से ऊपर सिद्धांत को रखा
2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी की लहर भाजपा के पक्ष में चली. नितिश कुमार की जदयू (JDU) ने 2013 में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार नामित किए जाने के बाद दशकों पुराने संबंध भाजपा (BJP) से तोड़ दिए थे, और इसके परिणामस्वरूप आम चुनाव में जदयू केवल 2 सीटें जीत सकी, जबकि भाजपा ने 40 में से 22 सीटें जीतीं.
पार्टी के खराब प्रदर्शन की जिम्मेदारी लेते हुए नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. इसके नौ महीने बाद 2015 में, उन्होंने RJD और कांग्रेस के समर्थन से फिर से मुख्यमंत्री की शपथ ली. इस गठबंधन ने चुनाव जीत लिया, नीतीश मुख्यमंत्री बने और तेजस्वी यादव उपमुख्यमंत्री बने. लेकिन दो साल बाद, 2017 में, नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की वजह से RJD-JDU गठबंधन छोड़ दिया.
अपने फैसले को सही ठहराते हुए तब उन्होंने कहा था, “राजनीति में किसी से दोस्ती या दुश्मनी नहीं होती, सिर्फ राजनीति होती है."
जब नीतीश कुमार के प्रधानमंत्री बनने की चर्चा बढ़ी
लोकसभा चुनाव 2024 बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए एक नया सफर था. विपक्ष ने मिलकर बीजेपी की सरकार का मुकाबला करने का फैसला किया. 2022 से RJD और कांग्रेस के साथ जुड़कर, नीतीश ने इस बड़े गठबंधन का नेतृत्व किया. 2023 में विपक्ष का यह बड़ा ब्लॉक- इंडिया बना और नीतीश ने इसे सही दिशा दी.
उनकी नेतृत्व क्षमता की प्रशंसा हुई, क्योंकि उन्होंने हर विपक्षी पार्टी के पास जाकर उन्हें प्रधानमंत्री मोदी की सरकार के खिलाफ एकजुट किया. यह काम मुश्किल था, फिर भी कुमार ने 20 से अधिक पार्टियों को इस मेगा गठबंधन में शामिल होने के लिए राजी किया. कई लोग कहते हैं कि उन्होंने इस ग्रैंड अलायंस का अनौपचारिक संयोजक बनकर खुद को प्रधानमंत्री का असली चेहरा बना लिया.
लेकिन इसके बाद इंडिया ब्लॉक के लिए एक समस्या आ गई. नीतीश कुमार ने वही किया जो वे अक्सर करते हैं – उन्होंने अपनी राय बदल दी. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस्तीफा दे दिया, RJD के नेतृत्व वाले गठबंधन को छोड़ दिया और इंडिया ब्लॉक से अलग हो गए. उन्होंने कहा कि “काम सही तरीके से नहीं चल रहा है.” यानी उन्होंने NDA के खिलाफ बनाए अपने गठबंधन को छोड़ दिया.
बिहार में नीतीश फैक्टर
दूसरी तरफ, वे काफी लचीले भी रहे हैं. 2024 में NDA में लौटने के बाद, नीतीश ने वादा किया कि अब वे फिर से पार्टी नहीं बदलेंगे, जबकि पिछले 15 सालों में वे इसे अक्सर करते रहे हैं.
इन टूट-फूट और मेल-मिलाप के बावजूद, नीतीश कुमार फिर से सत्तारूढ़ गठबंधन का मुख़्य चेहरा बने हुए हैं. बड़ा सवाल यह है कि क्या वे अब भी बिहार चुनावों में X फैक्टर बने हुए हैं?
इसका फैसला बिहार के लोगों के हाथ में है. उनका वोट ही इस भ्रम को साफ़ करेगा, जब 14 नवंबर को चुनाव के नतीजे घोषित होंगे.
Note: This content has been translated using AI. It has also been reviewed by FE Editors for accuracy.
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