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Viral Video Impact : हिमाचल की बाढ़ में बहते लट्ठों के वायरल वीडियो पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकारों को भेजा नोटिस. (Image : Viral Video Screen Shot)
Supreme Court on Himachal Pradesh Flood Viral Video : बाढ़ के दौरान बहते लकड़ी के लट्ठों के वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहे हैं. इन चौंकाने वाले दृश्यों ने न सिर्फ आम लोगों को हैरान किया, बल्कि सुप्रीम कोर्ट का भी ध्यान खींच लिया. अदालत ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए खुद संज्ञान लिया और केंद्र सरकार के साथ कई राज्य सरकारों को नोटिस भेज दिया है. पहाड़ी इलाकों में अवैध रूप से पेड़ काटे जाने और उसके कारण बढ़ते बाढ़ और भूस्खलन के खतरे को देखते हुए यह कदम उठाया गया है. अब देखना ये है कि सुप्रीम कोर्ट के इस सख्त रुख के बाद केंद्र और राज्यों की सरकारें पहाड़ों में जंगलों की अंधाधुंध कटाई को रोकने के लिए क्या कदम उठाती हैं.
वायरल वीडियो से सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा मुद्दा
सुप्रीम कोर्ट ने 4 सितंबर 2025 को इस मामले पर खुद से संज्ञान लिया. चीफ जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस विनोद चंद्रन ने कहा कि “बाढ़ में भारी संख्या में लकड़ी के लट्ठे बहते हुए नजर आए हैं, जो पहाड़ों पर बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई का संकेत है.” अदालत ने केंद्र सरकार, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA), पर्यावरण मंत्रालय, जल शक्ति मंत्रालय, राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) और हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब व जम्मू-कश्मीर प्रशासन को इस मामले में नोटिस भेजकर जवाब मांगा है.
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मंत्री ने अफसरों को ठहराया जिम्मेदार
हिमाचल प्रदेश के उद्योग मंत्री हर्षवर्धन चौहान ने इस पूरे घटनाक्रम के लिए भारतीय वन सेवा (IFS) अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया. उनका कहना है कि अधिकारी अब शायद ही कभी जंगलों में जाकर निरीक्षण करते हैं. उन्होंने कहा, “आजकल लगता है कि IFS अधिकारी और डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर (DFOs) न तो जंगलों में जाते हैं और न ही नियमित निरीक्षण करते हैं. पूरा काम गार्ड्स के भरोसे छोड़ दिया गया है. अधिकारियों को जंगलों में कटाई की स्थिति और उसके असर पर नजर रखनी चाहिए. यह बेहद गंभीर मुद्दा है और तत्काल ध्यान देने की जरूरत है.”
उन्होंने वायरल वीडियो में दिख रहे विशाल लकड़ी के लट्ठों को “चौंकाने वाला दृश्य” बताया और कहा कि इसकी गहन जांच होनी चाहिए.
एक सोशल मीडिया यूजर ने ऐसा ही एक वायरल वीडियो शेयर करते हुए इस दृश्य की तुलना सुपरहिट फिल्म 'पुष्पा' से की है.
Pushpa 3.0 is everywhere in Himachal pic.twitter.com/5Rq8HbwhTq
— Siddharth Bakaria (@SidHimachal) September 5, 2025
पहले भी उठा है जंगल कटाई का मुद्दा
इससे पहले जून में कांग्रेस नेता और ठियोग से विधायक कुलदीप सिंह राठौर ने भी वन विभाग की लापरवाही पर सवाल उठाए थे. उन्होंने मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू से जांच कराने और जिम्मेदारी तय करने की मांग की थी. उसी दौरान मंडी जिले के पंडोह डैम में भी हजारों लकड़ी के लट्ठे बहते हुए नजर आए थे. बताया गया कि ये लट्ठे 25 जून को बादल फटने और बाढ़ के बाद गदसा और सैंज घाटियों से बहकर आए थे.
जुलाई में मुख्यमंत्री सुक्खू ने पोंग डैम में लकड़ी बहने की घटनाओं पर CID जांच के आदेश दिए थे, लेकिन जांच अभी लंबित है. इसी तरह रावी नदी में भी लट्ठे बहने की घटना सामने आई, जिस पर विभाग ने अवैध कटाई से इनकार कर दिया.
सुप्रीम कोर्ट के कदम का स्वागत
पर्यावरण कार्यकर्ताओं और विशेषज्ञों ने सुप्रीम कोर्ट के इस मामले में अपनी पहल पर दखल देने का स्वागत किया है. उनका कहना है कि यह कदम सरकारों पर दबाव बनाएगा ताकि वे हिमालय के नाजुक पर्यावरण को बचाने के लिए ठोस नीतियां बनाएं.
विशेषज्ञ मानते हैं कि पेड़ों की कटाई सीधे तौर पर बाढ़ और भूस्खलन जैसी आपदाओं को बढ़ा रही है. एक रिपोर्ट में पहले ही चेतावनी दी गई थी कि इस क्षेत्र में 4,400 से ज्यादा पेड़ अवैध रूप से काटे गए हैं.
पर्यावरण के जानकारों का कहना है कि चेनाब घाटी सबसे बड़े संकट से गुजर रही है, जहां लंबे समय से जंगलों की अंधाधुंध कटाई हो रही है. हाल में मानसून की बारिश के कारण आई बाढ़ और जमीन खिसकने की घटनाओं में 90 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है और हजारों लोग बेदखल हो गए हैं.
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अधिकारियों की दलील और हकीकत
वन विभाग का दावा है कि बाढ़ और बादल फटने से उखड़े हुए पेड़ और उनकी लकड़ियां बहकर डैम तक पहुंचे हैं. प्रधान मुख्य वन संरक्षक समीर रस्तोगी की रिपोर्ट में बताया गया कि पेड़ करीब 27 किलोमीटर तक बहते हुए मंडी के पंडोह डैम में जाकर फंसे. लेकिन पर्यावरण के जानकारों का मानना है कि इसके पीछे अवैध कटाई की बड़ी भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता.
वायरल वीडियो ने एक बार फिर इस हकीकत को उजागर किया है कि पहाड़ी इलाकों में जंगलों की कटाई कितना गंभीर संकट बन चुकी है. सुप्रीम कोर्ट का दखल उम्मीद जगाता है कि अब शायद इस समस्या पर गंभीरता से कार्रवाई की जाएगी. वरना बाढ़ और जमीन और चट्टानें खिसकने से होने वाली आपदाएं भविष्य में और भी भयानक रूप ले सकती हैं.