/financial-express-hindi/media/media_files/gGXYegZm1O0kkOf0dTKx.jpg)
Investment Declarations : इनवेस्टमेंट डिक्लेरेशन भरने के दौरान सही इनकम टैक्स रिजीम का चुनाव जरूरी है. तभी आप कानूनी तौर पर इनकम टैक्स का बोझ कम कर सकते हैं.
Selecting correct Income Tax Regime while filing Investment Declaration: ज्यादातर नौकरीपेशा टैक्सपेयर्स को अप्रैल के महीने में इनवेस्टमेंट डिक्लेरेशन भरना होता है. यानी उन्हें अपने एंप्लॉयर को बताना होता है कि नए वित्त वर्ष के दौरान वे टैक्स बचाने के लिए किस तरह के निवेश करने जा रहे हैं. कर्मचारियों के इसी इनवेस्टमेंट डिक्लेरेशन के आधार पर एंप्लॉयर उनका टीडीएस (TDS) काटकर वेतन का भुगतान करते हैं. इनवेस्टमेंट डिक्लेरेशन भरने की इस पुरानी प्रक्रिया में पिछले कुछ वर्षों से एक नई चीज जुड़ गई है - इनकम टैक्स रिजीम का चुनाव. इनकम टैक्स का बोझ कम करने के लिए सही टैक्स रिजीम का चुनाव करना बेहद जरूरी है.
क्यों जरूरी है सही इनकम टैक्स रिजीम का चुनाव?
भारत सरकार ने सबसे पहले 2020-21 के केंद्रीय बजट में एक नई इनकम टैक्स रिजीम शुरू की थी, जिसे वित्त वर्ष 2023-24 से ही डिफ़ॉल्ट रिजीम बनाया जा चुका है. यानी अगर आप पुरानी टैक्स रिजीम का ऑप्शन चुनने का डिक्लेरेशन जमा नहीं करते, तो आपको अपने आप ही नई टैक्स रिजीम में डाल दिया जाएगा. नई टैक्स रिजीम में टैक्स के स्लैब रेट कम हैं, लेकिन उसमें ओल्ड रिजीम में मिलने वाली अधिकांश टैक्स छूट उपलब्ध नहीं हैं. लिहाजा, टैक्सपेयर्स के लिए सोच-समझकर सही टैक्स रिजीम का फैसला करना जरूरी है, वरना उन्हें आर्थिक नुकसान उठाना पड़ सकता है.
अपने लिए कैसे चुनें सही टैक्स रिजीम?
किस टैक्सपेयर के लिए कौन सी टैक्स रिजीम बेहतर है, इसका फैसला उनकी टैक्सेबल इनकम, इनवेस्टमेंट और खर्चों को अच्छी तरह समझने के बाद ही किया जा सकता है. लेकिन सबसे पहले दोनों टैक्स रिजीम की खूबियों के बारे में जानना जरूरी है.
न्यू टैक्स रिजीम की खूबियां
न्यू टैक्स रिजीम में टैक्स के 5 स्लैब दिए गए हैं, जो इस प्रकार हैं :
3 लाख रुपये तक की सालाना आय पर कोई इनकम टैक्स नहीं है.
3 लाख से 6 लाख रुपये तक की सालाना आय पर 5 फीसदी इनकम टैक्स लगता है.
6 लाख से 9 लाख रुपये तक की सालाना आय पर 10 फीसदी टैक्स लगता है.
9 लाख से 12 लाख रुपये तक की सालाना आय पर 15 फीसदी आयकर लगता है.
12 लाख से 15 लाख रुपये तक की सालाना आय पर 20 फीसदी टैक्स लगता है.
15 लाख रुपये से ज्यादा सालाना आमदनी पर 30 फीसदी टैक्स लगता है.
सालाना 7 लाख रुपये तक की आय टैक्स-फ्री
नई टैक्स रिजीम में टैक्स फ्री इनकम भले ही 3 लाख रुपये हो, लेकिन असल में जिन लोगों की सालाना आय 7 लाख रुपये तक है, उन्हें कोई टैक्स नहीं देना पड़ता. ऐसा इसलिए क्योंकि इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 87A के तहत 7 लाख रुपये की सालाना आय पर टैक्स में रिबेट का लाभ मिलता है. इसका मतलब ये है कि 7 लाख रुपये तक की सालाना आय पर जो इनकम टैक्स बनता है, उसे सरकार रिबेट देकर माफ कर देती है. इतना ही नहीं, अगर टैक्सपेयर नौकरीपेशा व्यक्ति है, तो उसे 50 हजार रुपये के स्टैंडर्ड डिडक्शन का लाभ भी मिलता है. इसे मिलाकर नए नियमों (Income Tax Rules) के तहत सैलरीड लोगों की सालाना 7.5 लाख रुपये तक की आमदनी टैक्स फ्री हो चुकी है.
ओल्ड रिजीम के टैक्स स्लैब
पुरानी टैक्स रिजीम में अब भी पुराने टैक्स स्लैब ही लागू हैं. इसके तहत :
2.5 लाख रुपये तक की सालाना आय पर कोई टैक्स नहीं लगता.
2,50,001 रुपये से 5 लाख रुपये तक की सालाना आय वालों को 2.5 लाख रुपये से ऊपर की रकम पर 5 फीसदी टैक्स भरना होता है.
5,00,001 रुपये से 10 लाख रुपये तक की सालाना आमदनी वालों को 12,500 रुपये + 5 लाख से उपर की रकम पर 20 फीसदी की दर से टैक्स भरना होता है.
10 लाख रुपये से ज्यादा सालाना आय वालों को 1,12,500 रुपये + 10 लाख से ऊपर की रकम पर 30 फीसदी की दर से टैक्स देना होता है.
ओल्ड टैक्स रिजीम में टैक्स रिबेट का लाभ 5 लाख रुपये तक की सालाना आय पर मिलता है. यानी इतनी सालाना आमदनी पर लगने वाला टैक्स सरकार माफ कर देती है.
इसके अलावा सैलरीड लोगों को 50 हजार का स्टैंडर्ड डिडक्श का फायदा भी मिलता है.
Also read : PPF अकाउंट में 5 अप्रैल से पहले करें निवेश, वरना हो सकता है हजारों का नुकसान!
ओल्ड रिजीम में डिडक्शन और एग्जम्पशन का लाभ
नई टैक्स रिजीम में भले ही टैक्स के स्लैब रेट कम हों और लेकिन तमाम बदलावों के बावजूद कई फायदे अब भी सिर्फ पुरानी टैक्स रिजीम में ही उपलब्ध हैं. यही वजह है कि HRA से लेकर सेक्शन 80सी समेत तमाम डिडक्शन और एग्जम्पशन का लाभ लेने वालों को अब भी पुरानी टैक्स रिजीम आमतौर पर ज्यादा फायदेमंद लगती है. हालांकि हर टैक्सपेयर को सही रिजीम का चुनाव अपनी आमदनी और संभावित निवेश पर अच्छी तरह विचार करने के बाद ही करना चाहिए, लेकिन यहां हम कुछ ऐसी जानकारी दे रहे हैं, जो सही फैसला और टैक्स प्लानिंग (Tax Planning) करने में आपकी मदद कर सकती है.
आपके लिए कौन सी टैक्स रिजीम सही है?
अगर आपकी सालाना आय 7 लाख रुपये तक है तो आपके लिए नई टैक्स रिजीम (New Tax Regime) बेहतर है, क्योंकि उसमें आपको कोई टैक्स नहीं देना होगा.
अगर आप नौकरीपेशा हैं, तो 50,000 रुपये के स्टैंडर्ड डिडक्शन को जोड़ने के बाद आपकी 7.5 लाख रुपये तक की सालाना आय टैक्स-फ्री है.
7.50 लाख रुपये से ज्यादा सालाना आमदनी वाले नौकरीपेशा लोगों को टैक्स रिजीम का चुनाव करने से पहले अपने टैक्स सेविंग इनवेस्टमेंट और डिडक्शन्स को चेक कर लेना चाहिए.
अगर आपने टैक्स बचाने के लिए कोई निवेश नहीं किया है और न ही किसी तरह का डिडक्शन क्लेम करने की हालत में हैं, तो आपके लिए नई टैक्स रिजीम बेहतर है, क्योंकि उसमें टैक्स की दरें कम हैं और किसी टैक्स सेविंग इनवेस्टमेंट की जरूरत नहीं है.
अगर आप इनकम टैक्स बचाने के लिए सिर्फ 80C का लाभ लेने वाले हैं, तो भी इस बात की काफी संभावना है कि नई टैक्स रिजीम ही आपके लिए बेहतर होगी.
अगर आप 80C के अलावा होम लोन पर मिलने वाली टैक्स छूट का भी लाभ लेते हैं, तो आपके लिए पुरानी टैक्स रिजीम बेहतर साबित हो सकती है.
ऐसा इसलिए क्योंकि पुरानी टैक्स रिजीम में आप सेक्शन 80C के तहत 1.5 लाख रुपये की लिमिट में होम लोन के प्रिंसिपल री-पेमेंट पर टैक्स छूट लेने के साथ ही इंटरेस्ट री-पेमेंट पर भी 2 लाख रुपये तक की टैक्स छूट ले सकते हैं. इस तरह आपको सीधे-सीधे 3.5 लाख रुपये का टैक्स डिडक्शन मिलता है, जो नई टैक्स रिजीम में उपलब्ध नहीं है.
अगर आप किराए के मकान में रहते हैं और उसके एवज में अच्छी-खासी रकम पर HRA के तहत टैक्स छूट लेते हैं, तो भी पुरानी टैक्स रिजीम आपके लिए बेहतर हो सकती है.
नई टैक्स रिजीम में LTA और प्रोफेशनल टैक्स पर मिलने वाली टैक्स छूट का लाभ भी नहीं मिलता है. लिहाजा इसका फायदा लेने वालों को भी पुरानी टैक्स रिजीम में बने रहने पर विचार करना चाहिए.