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Last minute tax planning : अगर आपको मौजूदा वित्त वर्ष के दौरान अपने निवेश पर इनकम टैक्स में छूट लेनी है, तो हर हाल में 31 मार्च 2024 या उससे पहले इनवेस्टमेंट करना जरूरी है. (Image : Pixabay)
Better Investment options for last minute tax planning : मौजूदा वित्त वर्ष के लिए टैक्स प्लानिंग करने और फिर चुने हुए विकल्पों में पैसे लगाने के लिए अब बेहद कम वक्त बचा है. अपने निवेश पर अगर आपको टैक्स छूट का लाभ लेना है, तो हर हाल में 31 मार्च 2024 या उससे पहले इनवेस्टमेंट करना ही पड़ेगा. इसे ही हम लास्ट मिनट या आखिरी वक्त में टैक्स प्लानिंग कह सकते हैं. आपको यह जरूरी काम करने में भले ही काफी देर हो चुकी हो, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप हड़बड़ी में कहीं भी सिर्फ इसलिए पैसे लगा दें, क्योंकि उस स्कीम में निवेश पर टैक्स छूट मिल रही है.
टैक्स प्लानिंग के तहत किए गए निवेश के फैसले भी हमेशा अपने कैपिटल की संभावित ग्रोथ और औसत रिटर्न को ध्यान में रखकर ही करने चाहिए. अगर आप इनकम टैक्स एक्ट (Income Tax Act) के सेक्शन 80C के तहत 1.5 लाख रुपये के निवेश की पूरी लिमिट को इस्तेमाल करना चाहते हैं, तो यह एक बड़ी रकम है. कुछ और प्रावधानों के तहत आप इससे ज्यादा रकम का निवेश भी टैक्स छूट के लिए कर सकते हैं. जाहिर है, इतने पैसे लगाने का फैसला काफी सोच-समझकर किया जाना चाहिए. हम आपको यहां कुछ ऐसे ही विकल्पों (Tax Saving Investments) के बारे में बताएंगे, जिनमें टैक्स प्लानिंग के लिहाज से निवेश समझदारी भरा फैसला साबित हो सकता है.
इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम (ELSS)
इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम यानी ELSS एक तरह के टैक्स सेविंग म्यूचुअल फंड हैं, जिनके जरिए इक्विटी में निवेश किया जा सकता है. आंकड़े बताते हैं कि अगर आप इनमें कम से कम 5 साल के लिए निवेश करें, तो टैक्स की बचत के साथ ही साथ आप बेहतर रिटर्न भी हासिल कर सकते हैं. हालांकि टैक्स सेविंग के लिहाज से ELSS का लॉक-इन पीरियड महज 3 साल ही है, लेकिन इक्विटी के जरिए बेहतर रिटर्न पाना है, तो आपको अपने निवेश को और ज्यादा वक्त देने के लिए तैयार रहना चाहिए.
पब्लिक प्रॉविडेंट फंड और एनएससी
हो सकता है कई निवेशक ELSS में निवेश करना इसलिए पसंद न करें, क्योंकि इक्विटी में पैसे लगाने पर कुछ न कुछ रिस्क तो रहता ही है. या फिर आप अपने निवेश का एक हिस्सा ELSS में लगाने के बाद बाकी रकम फिक्स्ड इनकम वाले विकल्पों में लगाना चाहते हों. ऐसे निवेशकों के लिए पब्लिक प्रॉविडेंट फंड (PPF) और नेशनल सेविंग सर्टिफिकेट (NSC) बेहद सुरक्षित और बेहतर विकल्प साबित हो सकते हैं. इनमें रिटर्न भले ही ELSS की तुलना में काफी कम मिलता हो, लेकिन पूंजी और रिटर्न की सुरक्षा के लिहाज से ये काफी बेहतर इनवेस्टमेंट ऑप्शन हैं. पोर्टफोलियो को स्थिरता देने के लिए भी उसका एक हिस्सा NSC और PPF में रखना बेहतर रणनीति हो सकती है.
नेशनल पेंशन सिस्टम (NPS)
नेशनल पेंशन सिस्टम (NPS - Tier I) टैक्स सेविंग के बेहतरीन विकल्पों में शामिल है. सबसे खास बात ये है कि अगर इस साल आपके टैक्स सेविंग इनवेस्टमेंट सेक्शन 80C की 1.5 लाख रुपये की मैक्सिमम लिमिट पूरी कर चुके हैं, तो भी आप NPS में 50 हजार रुपये का अतिरिक्त निवेश करके एक्स्ट्रा टैक्स सेविंग कर सकते हैं. यानी इसके इस्तेमाल से आपका टैक्स सेविंग इनवेस्टमेंट 1.5 लाख रुपये की जगह 2 लाख रुपये हो सकता है. NPS के बारे में और जानकारी के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं.
सीनियर सिटिजन्स सेविंग्स स्कीम (SCSS)
साठ साल से ज्यादा उम्र वाले लोगों के लिए सीनियर सिटिजन्स सेविंग्स स्कीम (SCSS) भी टैक्स बचाने का एक बेहतर विकल्प है. इस पर फिलहाल 8.2 फीसदी की दर से सालाना ब्याज मिल रहा है, जो फिक्स्ड रिटर्न वाली ज्यादातर टैक्स सेविंग स्कीम्स से अधिक है. पूंजी और रिटर्न पर सरकारी गारंटी होने की वजह से यह निवेश के सबसे सुरक्षित विकल्पों में भी शामिल है. हालांकि इसमें मिलने वाला ब्याज टैक्सेबल होता है, लेकिन सीनियर सिटिजन्स को एक वित्त वर्ष के दौरान 50 हजार रुपये तक के ब्याज पर टैक्स छूट मिलती है. इस स्कीम में अधिकतम निवेश की सीमा 30 लाख रुपये है. बुजुर्ग पति-पत्नी मिलकर इस स्कीम में कुल 60 लाख रुपये तक निवेश कर सकते हैं.
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कैसे बनाएं संतुलित पोर्टफोलियो
निवेश का फैसला करते समय कुछ बातों को ध्यान में रखना जरूरी है. पहली बात तो यह कि अगर आप अपने पोर्टफोलियो में सिर्फ PPF, NSC, और SCSS जैसे फिक्स्ड रिटर्न वाले निवेश को ही जगह देंगे तो महंगाई को एडजस्ट करने के बाद रिटर्न की औसत दर काफी कम रह जाएगी, जो हो सकता है रिटायरमेंट के बाद आपकी जरूरतों को पूरा करने के लिए काफी न हो. इसलिए आपको ELSS जैसी स्कीम पर भी विचार करना चाहिए. इसके साथ ही यह भी याद रखना चाहिए कि इक्विटी से जुड़े किसी भी निवेश में कुछ न कुछ जोखिम रहता है, इसलिए निवेश का फैसला करने से पहले अपने रिस्क प्रोफाइल को जरूर ध्यान में रखना चाहिए. बेहतर यही होगा कि आप फिक्स्ड रिटर्न वाले और मार्केट बेस्ड विकल्प - दोनों को अपने रिस्क प्रोफाइल के हिसाब से जगह देकर एक संतुलित पोर्टफोलियो बनाने का प्रयास करें. जरूरत पड़ने पर अपने निवेश सलाहकार की राय लें.